गरियाबंद। कुल्हाड़ी घाट पंचायत के 139 कमार परिवार ने आजीविका के खातिर पक्का मकान, बिजली, पानी और सड़क जैसे सुविधा को त्याग कर पहाड़ों पर ही बसना मुनासिब समझा. खच्चर में लादकर राशन ले जाने में 24 घंटे का वक्त लग जाता है. कृषि योग्य 350 एकड़ जमीन जहां धान के अलावा दलहन तिलहन की खेती भी होती है, मगर समर्थन मूल्य में नहीं बेच पाते. लेकिन फिर भी कई तकलीफों के बावजूद लोकतंत्र के प्रति इनका गहरा नाता रहा है और हर चुनाव में शत प्रतिशत मतदान करते हैं. Read More – CG BREAKING : प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष निलंबित, पार्टी विरोधी गतिविधियों में थे शामिल
दरअसल, गरियाबंद जिले के कमार बाहुल्य पंचायत कुल्हाड़ी घाट की ख्याति देश भर में है. 70 के दशक में कमार जनजाति के इस गांव में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी आए थे, तब से इसे राजीव गोद ग्राम का दर्जा प्राप्त है. इस पंचायत की कुल आबादी 1,476 है. इसमें 139 कमार परिवार के 413 लोग पहाड़ों के ऊपर बसे हैं. इनका रहवास 8 दशक पुराना है. हालांकि पिछले 10 सालों में 16 परिवार पहाड़ों से उतर कर नीचे बस गए, लेकिन ज्यादातर अब भी पहाड़ों पर बसे हैं.
ग्राम पंचायत सचिव प्रेम लाल ध्रुव ने बताया कि पहाड़ों में बसे लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने 2015 में विस्थापन की योजना बनाई गई. वित्तीय वर्ष 2015-16 में इंदिरा आवास योजना के तहत अलग-अलग स्थानों पर 77 आवास बनाए गए. बसाए गए नए मजरे टोले में सीसी सड़क, बिजली, पानी जैसे जरूरी सुविधाएं भी उपलब्ध कराया, नजदीकी स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई, उपचार के लिए उप स्वास्थ्य केंद्र के अलावा पंचायत स्तर पर रोजगार देने 129 परिवार के लिए जॉब कार्ड तक बनाया गया. कमार परिवार 13 माह तक बसे भी रहे फिर धीरे-धीरे नई बस्तियां वीरान हो गई. पक्की मकान छोड़ कमार दोबारा पहाड़ में बसने चले गए.
जिंदा बचते ही नहीं तो घर का क्या करते
वहीं, सुविधाओं को छोड़ फिर से पहाड़ों पर बसने का कमार जनजाती का अपना ही तर्क था. कमार जयलाल, मेहत्तर, दशरथ और मायाराम ने बताया कि उस मनरेगा में काम करने के बाद भी रोजी तत्काल नहीं मिलता था. परिवार चलाने रोजगार पर्याप्त नहीं था. नीचे रह कर बास बर्तन बनाने का परंपरागत काम नहीं कर सकते थे. बार-बार वन विभाग के लोग परेशान करते थे. 12 माह ऐसा रोजगार मांगे जिसे हम कर सकते थे. बास बर्तन के लिए कच्चा सामग्री उपलब्ध नहीं कराया जाता था. काम के अभाव में भूखे मरने की नौबत आ रही थी. इस पर कमारों ने दो टूक में कहा कि भूखे मर जाते, जिंदा नहीं बचते तो ये पक्की मकान और बाकी सुविधा किस काम का था.
खच्चर से ले जाते हैं राशन
कूल्हाडी घाट के आश्रित ग्राम ताराझर में ज्यादा परिवार रहते हैं. ओडिशा सीमा से लगे इस पहाड़ में ताराझर वार्ड 10 और कुरूवापानी वार्ड 11 के नाम पर बसा है, जहां 62 परिवार में 204 लोग मौजूद हैं. यह बसाहट पंचायत मुख्यालय से 24 किमी दूर पड़ता है. इसमें 18 किमी पहाड़ों में चढ़ना होता है. महीने के पहले शनिवार को 20 से 25 परिवार ही राशन लेने आते हैं, क्योंकि इस गांव में केवल 8 खच्चर मौजूद हैं, जो एक बार में अधिकतम 8 से 9 लोगों की राशन लाद सकते हैं.
राशन लेने पहुंचे कृष्ण चंद्र और सुभाष ने बताया कि शनिवार हाट बाजार का दिन है. उनकी ओर से पहाड़ों में रहते हुए बनाए बास बर्तन को वो खच्चर में लाद कर सुबह 6 से 7 बजे निकलते हैं. उतरने में समय कम लगता है, 5 घंटे के भीतर वे कुल्हाड़ी घाट पहुंच जाते हैं. सवारी ढोने वाली वाहन खड़ी रहती है. राशन कार्ड की मुखिया महिलाएं बाद में बर्तन लेकर दोपहर के पहले बाजार पहुंच जाते हैं. हाथों हाथ उनका सामान बिक जाता है. दोपहर दो बजे तक उन्हें राशन मिल जाता है. खच्चर पहाड़ के नीचे वाले गांव जीडार में बंधा होता है. राशन ले जाने में उन्हे 24 घंटे से भी ज्यादा वक्त लग जाता है. शनिवार की सुबह 8 बजे निकलते हैं, शाम ढलने से पहले नीचे जीडार के मैदान में डेरा जमाया जाता है. युवकों की एक टोली राशन कार्ड धारी महिलाओं को लेकर राशन दुकान दोपहर के पहले पहुंच जाते हैं. राशन लाद कर स्थानीय ट्रांसपोर्ट साधन से शनिवार की शाम जीडार पहुंचते हैं. खड़ी चढ़ाई चढ़ एक दिन में लौटना संभव नहीं होता. ऐसे में राशन लेने वाले सभी को नाते रिश्तेदार के घर रात बिताना पड़ता है. परिवार अगली सुबह यानी रविवार को 10 बजे पहाड़ों की चढ़ाई शुरू करते हैं और शाम ढलते-ढलते 5 से 6 बजे तक अपने-अपने घर पहुंच जाते हैं
तीन गांव में 25 खच्चर मौजूद, राशन ढोने लेते हैं मामूली कीमत
ताराझर में मौजूद 12 खच्चर के अलवा 12 किमी चढ़ाई वाले गांव भालू डिगी में 10 और मटाल में 4 खच्चर मौजूद थे. सामान ढोने का हल निकालने 2009 में पहली बार खच्चर लाने वाले पदमन कमार बताते हैं कि, पहला खच्चर वे 9 हजार में खरीदे थे. अब कीमत 25 हजार पहुंच गया है. पहाड़ों में समान ढोने के लिए और कोई दूसरा विकल्प नहीं था. घोड़ी की कीमत कम होती है. दो साल पहले पदमन भालू डिगी को छोड़ कर कुल्हाड़ी घाट में परिवार के साथ बस गए. उनकी खेती नीचे भी थी. पदमन बताते हैं कि ऊपर में फसल को सहेज रखना आसान नहीं है. पिछले 6 साल से हाथी का आतंक है. दो साल पहले फसल के अलवा स्कूल और कइयों के झोपड़ी तोड़ डाले हैं. दो दिन तक चट्टान के ऊपर रतजगा करना पड़ा था. अब वो नीचे ही रहते हैं. पदमन बताते है कि खच्चर में एक बार में 70 से 90 किलो राशन लाद कर ले जाते हैं. भालू डिगी और मटाल एक दिन में आना जाना हो जाता है. दो से तीन लोगों का राशन एक साथ आ जाता है. इसके एवज में तीनों को मिलाकर 250 रुपए देने होते हैं. तारा झर में समान ढोने के लिए तीन गुना ज्यादा कीमत देना होता है. इसलिए अब दो से तीन परिवार मिल एक-एक खच्चर खरीदने का प्रचलन शुरू हो गया है.
योजनाओं का लाभ नहीं मिलने का मलाल नहीं, करते हैं शत प्रतिशत मतदान
पहुंच विहीन होने के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं के क्रियान्वयन में खाना पूर्ति होती है. कमार परियोजनाओं के तहत हितग्राहियों में नाम गिनाया जाता है, ऊपर तक पंहुचा की नहीं यह देखा नहीं जाता, इसलिए ज्यादातर लोगों का लाभ फाइलों तक सिमट कर रह जाता है. नल जल योजना की मंजूरी मिली है पर कोई काम करना नहीं चाहता. पक्की मकान किसी के पास नहीं है. गांव में 350 एकड़ कृषि योग्य राजस्व और वन अधिकार पट्टे वाली भूमि है. धान के अलावा दलहन तिलहन का भी उत्पादन करते हैं पर समर्थन मूल्य में नहीं बेच पाते. रास्ता सुगम नहीं इसलिए वनोपज संग्रहण कर सरकारी योजनाओं का लाभ नही ले सकते. योजना के नाम पर वहां पंचायत ने मनरेगा से अब तक 6 कुंआ का निर्माण कराया, 3 तालाब खोदे गए, सभी के कृषि भूमि, भूमि सुधार योजना के तहत सुधार लिया गया. तीनों गांव में 213 मतदाता हैं जो प्रत्येक चुनाव में शत प्रतिशत मतदान करते हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
मैनपुर एसडीएम हितेश पिस्दा ने कहा कि शासन प्रशासन की ओर से उन्हें पहाड़ों के नीचे बसाहट के लिए सारी सुविधा दिया गया था. ग्राम पंचायत के तहत चलने वाले सभी योजनाओं के तहत प्राथमिकता से लाभ दिया जाता है. उनके रोजगार के लिए रोजगार गारंटी के तहत पर्याप्त कार्य कराए जाते हैं. पहाड़ के तीन अलग-अलग हिस्से में इनकी बसाहट है, सड़क का प्रपोजल भी लगातार शासन को भेजा जाता है.
आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त नवीन भगत ने कहा कि केंद्र-राज्य सरकार के तहत बनी योजनाओं का लाभ कलस्टर बना कर लगातार दिया जाता है. हितग्राही मूलक कई कार्य भी हुए. मतदान के प्रति कमार जनजाति के लोगों की जागरूकता सभी के लिए प्रेरणा दायक है.
- छतीसगढ़ की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- दिल्ली की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- पंजाब की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक