नई दिल्ली. तृणमूल कांग्रेस की महिला सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता को निरस्त कर दिया गया है. संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में उनकी संसद सदस्यता खत्म हो गई है. इस मामले में उन्हें लोकसभा की आचार समिति ने दोषी पाया और लोकसभा में उनकी सदस्यता को समाप्त करने की सिफारिश की थी. भाजपा सांसद विनोद सोनकर की अध्यक्षता वाली एथिक्स कमेटी ने इस रिपोर्ट को 8 दिसंबर को लोकसभा के पटल पर रखा. इस रिपोर्ट पर चर्चा के बाद ध्वनि मत से महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता को समाप्त कर दिया गया. इस फैसले से महुआ मोइत्रा नाखुश हैं,लेकिन संसद के कई ऐसे नियम हैं जिस कारण सांसदों की लोकसभा की सदस्यता खत्म हो जाती है. इससे पहले राहुल गांधी को सजा सुनाए जाने के बाद लोकसभा से उनकी सदस्यता को भी रद्द कर दिया गया था.
लेकिन यह कोई पहली कार्रवाई नहीं है. आज हम आपको विस्तार से बताते है कि पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में पहली कार्रवाई कब हुई थी और 18 साल पहले भाजपा के 6 सांसद समेत 11 सांसदों को भी क्यों निष्काषित किया गया था. हालांकि इनमें से 10 सांसद लोकसभा और एक सांसद राज्यसभा से थे. उस समय केंद्र में यूपीए सरकार थी.
स्टिंग ऑपरेशन से हुआ था खुलासा
12 दिसंबर 2005 को स्टिंग ऑपरेशन दुर्योधन से सियासी भूचाल आ गया था. इसमें सांसदों को पैसे के बदले में सदन में सवाल पूछने का इच्छुक दिखाया गया था. इनमें भाजपा के छह सांसद छत्रपाल लोधा (ओडिशा), अन्ना साहेब एमके पाटिल (महाराष्ट्र), चंद्र प्रताप सिंह (मध्य प्रदेश), प्रदीप गांधी (छत्तीसगढ़), सुरेश चंदेल (हिमाचल) और जी महाजन (महाराष्ट्र), बसपा के तीन सांसद नरेंद्र कुशवाहा, लाल चंद्र कोल और राजाराम पाल (यूपी) थे. इसके अलावा राजद के मनोज कुमार और कांग्रेस के रामसेवक सिंह थे. बता दें कि भाजपा के छत्रपाल राज्यसभा सांसद थे
72 साल पहले हुई पहली बार कार्रवाई
महुआ लोकसभा की 12वीं सदस्य हैं, जिन्हें अनैतिक आचरण के कारण सदस्यता गंवानी पड़ी है. कांग्रेसी सांसद एसजी मुगदल पहले सांसद थे, जिनकी 1951 में घूस लेकर सवाल पूछने के मामले में सदस्यता गई थी. मुदगल ने एक बिजनेसमैन से संसद में सवाल पूछने के बदले 5 हजार रुपये लिए थे.