रायपुर। छत्तीसगढ़ में 21 किसान संगठन एक बार राज्य सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने की तैयारी में है. किसानों सगंठनों ने किसान पंचायत राजधानी में बुलाने की तैयारी कर ली है. किसान पंचायत को किसान सम्मेलन का नाम दिया गया है. इस सम्मेलन में प्रदेश भर से हजारों किसानों के साथ देश के कुछ प्रसिद्ध समाजसेवी, किसान आंदोलनकारी नेता और कृषि विशेषज्ञ भी शामिल हो रहे हैं.
दरअसल छत्तीसगढ़ के विभिन्न किसान संगठनो के द्वारा सम्पूर्ण कर्ज माफ़ी, स्वामीनाथन आयोग की प्रमुख सिफारिश लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य, पिछले दो वर्षो का धान का 300 रूपये बोनस, सहित जबरन भूमि अधिग्रहण को बंद करने, पांचवी अनुसूची, पेसा और वनाधिकार मान्यता कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांगो पर 8 जनवरी 2018 को गाँधी मैदान रायपुर में एक दिवसीय किसान संकल्प सम्मलेन का आयोजन किया जा रहा हैं. इस सम्मलेन कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र शर्मा, किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड हन्नान मोल्ला, स्वराज आंदोलन के नेता योगेन्द्र यादव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द्र नेताम शामिल होंगे.
किसान नेता सुदेश टेकाम ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश का किसान और कृषि दोनों ही गहरे संकट में है. वर्ष 2003 से लगभग 6 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की हैं. ‘धान का कटोरा’ कहे जाने वाले हमारे छत्तीसगढ़ में भी किसानों की आर्थिक स्थिति लगातार बदहाल होती जा रही हैं, जिससे पिछले कुछ वर्षो से किसान आत्महत्याएं बढ़ी हैं. बेतहाशा बढ़ती लागतें एवं फसलों के सही दाम नहीं मिलने के कारण कड़ी मेहनत के बाद भी 99 फीसदी किसान और ज्यादा गरीब व क़र्ज़ के जाल में फंसते जा रहे हैं.
भारत में किसानों की हालत सुधारने और कृषि संकट से उबरने के लिए स्वामीनाथन आयोग का गठन हुआ. जिसने 2006 में अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को सौंपी. इसमें इतिहास में पहली बार किसान के श्रम को भी एक मूल्य की तरह देखा गया और फसलों के मूल्य निर्धारण में इसे लागत में जोड़ने की सिफारिश की गयी. भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने एवं किसानों को बोनस देने का वादा किया था, परंतु 2014 में केन्द्र में सरकार बनाने और छत्तीसगढ़ में तीसरी बार सत्ता में आने के बाद भी उसने अपना वादा पूरा नहीं किया.
किसान नेता सुदेश टेकाम यह भी आरोप है कि इस वर्ष छत्तीसगढ़ में गंभीर सूखे की स्थिति हैं, किसान को कर्ज चुकाना तो दूर की बात हैं उसे अपना जीवन यापन करना भी मुश्किल हो रहा हैं. इन परिस्थितियों में भी राज्य सरकार किसानों को राहत देने की बजाए उद्योगपतियों को हजारों करोड़ की सब्सिडी दे रही है. पिछले वर्ष ही में कोयला खनन के क्षेत्र में मौजूदा सरकार ने राज्य सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व में से ही केवल 4 चुनिन्दा खनन कंपनियों को 3000 करोड़ रूपये की छूट स्टाम्प ड्यूटी में दी गई. सिर्फ चुनावी फायदे के लिए 2100 करोड़ रूपये मोबाइल वितरण के लिए आवंटित किया गया. इतना ही नही प्रदेश के 20 हजार गाँव को मिलने वाले 14 वें वित्त आयोग की राशि में अवैधानिक ढंग से कटौती करते हुए 600 करोड़ रूपये मोबाइल टावर लगाने टेलीकाम कम्पनियों को दिया जा रहा हैं.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला का आरोप है कि घने वन क्षेत्रों के आदिवासी किसानों को खनन, बांध व उद्योग के नाम पर विस्थापित किया जा रहा हैं. पांचवी अनुसूची, पेसा एवं वनाधिकार मान्यता कानून के प्रावधानों का उल्लंघन कर आदिवासियों के जंगल, जमीन को विधिविरुद्ध तरीके से पूंजीपतियों को दिए जाने का कार्य स्वयं राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा हैं. यहाँ तक कि वर्ष 2013 में बने भू –अधिग्रहण व पुनर्वास कानून में राज्य सरकारों द्वारा कंपनियों के पक्ष में संशोधन करते हुए उसे कमजोर करने के प्रयास किये जा रहे हैं. कल ही विधानसभा में एक और आदिवासी किसान विरोधी निर्णय लिया गया जिसमे आदिवासियों की जमीनों खरीदने के छत्तीसगढ़ भू –राजस्व संहिता में संशोधन किया गया. राज्य सरकार के इस निर्णय से आदिवासियों की जमीनों का हस्तांतरण कार्पोरेट को होगा जिसमे सरकार एक एजेंट के रूप में भूमिका निभाएगा. छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन इस अवैधानिक संशोधन को शीघ्र वापिस लेने की मांग करता हैं.