छत्तीसगढ़ में एक ओर जहां जमीन अधिग्रहण के मुआवजे लिए लोग सालों से भटक रहे हैं, तो दूसरी राजस्व अमले के अधिकारी-कर्मचारी लाखों घोटाला सरकारी राशि हड़प रहे हैं। प्रदेश में एक ऐसा ही मामला उजागर हुआ भू-अर्जन घोटाले का। मामला रायपुर जिले में आरंग ब्लॉक के समोदा बैराज डूबान क्षेत्र के प्रभावितों के दिए जाने वाले 36 लाख के राशि का। यह राशि ग्रमीणों की जगह पटवारी और कोटवार ने अपने हड़प ली। कैसे हुआ यह आखिर 36 लाख घोटाला पढ़िए …
इससे पहले कि घोटाले की पृष्ठभूमि तैयार होने वाली जगह पर आपको लेकर जाए। सबसे पहले इन धूंधले दस्तावेजों को देख लीजिए। ये राजस्व विभाग के सरकारी दस्तावेज है। जो आरटीआई के जरिए मिली है। ये दस्तावेज ही मुआवजे के 36 लाख की राशि घोटाले का प्रमाण है। जिसके खुलासे के बाद आरंग के रास्जव अमले में हड़कंप मच गया है। अब उस समोदा बैराज को भी देख लीजिए। जिससे जुड़ा हुआ यह घोटाला है। जिसके डूबान क्षेत्र के प्रभावितों के लिए मुआवजे की राशि जारी हुई। लेकिन इसमें 36 लाख की राशि का राजस्व विभाग के पटवारी और कोटवार ने अपने नाम करा ली। पूर्व जिला पंचायत सदस्य और आरटीआई कार्यकर्ता परमानंद जांगड़े ने जब शिकायत की तब जाकर मामले का खुलासा हुआ।
दरअसल समोदा बैराज के तीसरे चरण के लिए प्रभावितों को मुआवजे के लिए शासन राशि जारी की। इसमें समोदा गाँव के कोटवार दीपिका देवदास को मिली सरकारी सेवा जमीन में से सवा 3 एकड़ जमीन को निजी बताकर 36 लाख रुपये का मुआवजा ले लिया गया। 2 साल पहले मुआवजे के लिए पटवारी गज्जू साहू ने सर्वे का काम किया था। और कुटरचित दस्तावेज के जरिए कोटवारी शासकीय जमीन को निजी बता दिया गया। ग्रमीणों को जब पता चला तो वे भी चौक गए थे। गांव के देवनारायण और मोहम्मद सलाम कहते हैं कि पूरी तरह से सुनियोजित तरीके इस पूरे घोटाले को अंजाम दिया गया है।
मामले का खुलासा होते ही आरंग ब्लॉक के एसडीएम-तहसील कार्यलय में हड़कंप मच गया। ग्रमीणों की शिकायत के बाद तत्काल एसडीएम ने जांच के आदेश दे दिए। यही नहीं कोटवार के बैंक खाते भी सील कर दिए गए। और तो और कोटवार और पटवारी से वसुली के आदेश भी जारी कर दिए । एसडीएम सुनील नायक का कहना है फिलहाल 15 दिनों के भीतर पटवारी से जवाब मांगा गया है। वसुली भी किया जा रहा। जांच के बाद तथ्य सामने आएंगे तो उसके आधार पर एफआईआर दर्ज किया जाएगा।
हालांकि शिकायत करने वाले आऱटीआई कार्यकर्ता और ग्रामीण कोटवार और पटवारी के खिलाफ हो रही वसुली तक की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं है। उनका आरोप है कि भू-अर्जन कानून के तहत मुआवजा के प्रकरण तैयार करना बहुत कठिन रहता है। और यह प्रकिया तहसीलदार से लेकर एसडीएम तक गुजरती है। ऐसे में इसमें अधिकारियों की मिलीभगत भी हो सकती। लिहाजा कोटवार और पटवारी को तत्काल निलंबित कर उचित कार्रवाई करनी चाहिए।