अमृतांशी जोशी, भोपाल। दिहाड़ी मजदूरों के सुसाइड मामले में मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) देश में तीसरे नंबर पर है। मध्यप्रदेश में पिछले एक साल में 4567 दिहाड़ी मजदूर (Labour) ने खुद की जान ली है। पहले नंबर पर तमिलनाडू, दूसरे पर महाराष्ट्र और तीसरे पर मध्यप्रदेश है। यह खुलासा एनसीआरबी (National Crime Records Bureau) की रिपोर्ट में हुआ है।इस आंकड़े पर अब सियासत भी शुरू हो गई है. कांग्रेस भी हमलावर हो गई है. जबकि मजदूर काम नहीं मिलने के कारण आत्महत्या करने की बात कह रहे हैं.
नहीं मिल रहा काम, मज़दूर परेशान
रोजी मजदूरों ने बताया कि जब घर और जेब में पैसा नहीं होता तो आत्महत्या की स्थिति बन ही जाती है. दिन का 400 रुपये मिलता है और एक हफ़्ते में एक बार काम मिलता है. जैसे तैसे घर का काम चलता है. पैसा नहीं मिलता, तो घर पर लड़ाइयाँ होती है. आत्महत्या करने की इच्छा होती है. बस परिवार का सोच कर रुक जाते है.
मजदूर आत्महत्या के मामले में हर साल बढ़ रहा ग्राफ
मध्यप्रदेश में साल 2017 में 3039 मजदूरों ने आत्महत्या की. साल 2018 में 3521, साल 2019 में 3964, साल 2020 में 4945, साल 2021 में 4657 मजदूरों ने मध्यप्रदेश में आत्महत्या की है. देश भर में भी आत्महत्या के मामले में मध्यप्रदेश तीन नंबर पर है. 2021 में 14965 लोगों ने की आत्महत्या, 2021 में प्रदेश में कुल सरकारी कर्मचारियों 145 ने आत्महत्या की. इसमें भी देश में तीसरे नंबर पर एमपी है. 2021 में कुल 414 बेरोज़गार लोगों ने आत्महत्या की है. 2021 में दिहाड़ी रूप से काम करने वाले 554 किसानों ने आत्महत्या की. इसमें भी देश में तीसरे नंबर पर एमपी है. एक लाख से कम सैलरी वालों ने भी एमपी में 9744 ने आत्महत्या की है.
आंकड़ों को लेकर कांग्रेस हुई हमलावर
कांग्रेस नेता अब्बास हफ़ीज़ का कहना है कि मध्य प्रदेश की सरकार एक तरह से नाकामी के रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बना रही है. सरकार जिस तरीक़े से हर मोर्चे पर नाकाम हुई है, उसी तरह उन्होंने दिहाड़ी मज़दूर को भी बदहाल कर दिया है. साथ ही बेरोज़गार युवा भी परेशान रहे हैं. असुरक्षित वातावरण ऐसे लोगों के लिए पैदा हो चुका है. तीसरे स्थान पर हमारा आना कोई नई बात नहीं है. यह मज़दूरों का बुरा हाल है. आम जनता है तो उससे भी ज़्यादा बुरा हाल है. अब सरकार को बाहर करने का संकल्प इसलिए लोगों ने उठाया है. नया सवेरा आएगा, नई सरकार आएगी. प्रदेश के मज़दूरों को हाल बदलेंगे और पूरे प्रदेश के हाल में ज़रूर बदलेंगे.
मजदूरों के हाल पर कार्मिक संगठन का बयान
मज़दूर संगठन नेता अशोक पांडेय का कहना है कि मध्य प्रदेश में मज़दूरों को जो वास्तविक सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलना चाहिए, वो नहीं मिल रहा है. चाहे वो मनरेगा में काम करता हो या कहीं और. इतनी कम मज़दूरी है, 230 रूपए मज़दूरी मनरेगा की है. काम ऐसा नहीं है कि महीने भर मिलता है. काम ना मिलने पर भत्ता देने का वादा किया गया था, वो भी पूरा नहीं किया गया है. सामाजिक सुरक्षा के लाभ भी नहीं मिल पा रहे हैं. सरकार ने पेंशन देने का वादा किया था, वो पेंशन भी आज तक नहीं मिला. साढ़े 24,000 मज़दूर मध्य प्रदेश में आठ साल में हत्या आत्महत्या कर चुके हैं. सरकार को एक जाँच कमेटी बनाना
चाहिए. आख़िर पता लगाएं कि आख़िर इतने मज़दूर हत्या आत्महत्या कर क्यों रहे हैं ?
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