अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार के दिन ट्रंप प्रशासन को बड़ी राहत देते हुए अमेरिका में रह रहे लाखों प्रवासियों की अस्थायी कानूनी स्थिति खत्म करने की अनुमति दे दी। ये प्रवासी वेनेजुएला, क्यूबा, हैती और निकारागुआ जैसे देशों से हैं। इस फैसले से निर्वासन की प्रक्रिया तेज हो सकती है और ट्रंप की सख्त आप्रवासन नीति को बल मिल सकता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन चार देशों के पांच लाख से अधिक प्रवासियों के लिए मानवीय पैरोल सुरक्षा को बरकरार रखा था। इसके तहत इन लोगों को अमेरिका में रहने और काम करने की अस्थायी अनुमति दी गई थी। इस फैसले के खिलाफ पहले एक संघीय अदालत ने रोक लगाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब उस रोक को हटा दिया है।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने ट्रंप प्रशासन को एक अन्य मामले में लगभग 350,000 वेनेजुएला के प्रवासियों के लिए अस्थायी कानूनी स्थिति को रद्द करने की भी अनुमति दी है।

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SC के फैसले से निर्वासन के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या पहुंची 10 लाख

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अमेरिका में निर्वासन के दायरे में आने वाले लोगों की कुल संख्या को लगभग दस लाख तक पहुंचा दिया है। बता दें कि, अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर आने वाले प्रवासियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, पिछली बाइडेन प्रशासन ने 2022 के अंत और 2023 की शुरुआत में क्यूबा, हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के लोगों के लिए पैरोल कार्यक्रम बनाया, जिसके तहत उन्हें कुछ प्रोसेस से गुजरने के बाद दो साल तक अमेरिका में काम करने की इजाजत दी गई। इस प्रोग्राम ने लगभग 5,32,000 लोगों को निर्वासन से बचाया था।

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क्या है अमेरिका का ‘पैरोल’ नियम

‘पैरोल’ अमेरिकी कानून के तहत एक अस्थायी राहत है, जो गंभीर मानवीय कारणों या सार्वजनिक हित के तहत दी जाती है। बाइडेन प्रशासन ने इसका इस्तेमाल अवैध आव्रजन रोकने के लिए किया था। इसका फायदा खासकर उन लोगों को होता था जो हवाई मार्ग से आते हैं, सिक्योरिटी चेक पास करते हैं और जिनके पास अमेरिका में कोई वित्तीय प्रायोजक होता है।

लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल की शुरुआत में ही इस पैरोल प्रोग्राम को खत्म करने की बात कही और मार्च में होमलैंड सुरक्षा विभाग ने इसे रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। सरकार का कहना है कि इससे तेज निष्कासन की प्रक्रिया आसान होगी। वादियों ने अदालत में दलील दी कि इस तरह का फैसला अवैध है। इससे उन्हें गंभीर नुकसान होगा, क्योंकि उनकी शरण और अन्य राहत की अर्जियां लंबित हैं।

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