रेलवे स्टेशन के अलग-अलग प्लेटफार्मों पर 28 युवक एक महीने तक रोजाना आठ घंटे आने-जाने वाली ट्रेनों और उनके डिब्बों की गिनती करते रहे. उन्हें बताया गया था कि यही उनका काम है. वे बेखबर थे कि वे नौकरी के नाम पर धोखाधड़ी का शिकार हो चुके हैं.

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) में दायर एक शिकायत के अनुसार, उन्हें बताया गया था कि यह यात्रा टिकट परीक्षक (टीटीई), यातायात सहायकों और क्लर्क के पदों के लिए उनके प्रशिक्षण का हिस्सा है. रेलवे में नौकरी पाने के लिए उनमें से प्रत्येक ने दो से 24 लाख रुपये के बीच रुपयों का भुगतान किया था. मामले की शिकायत पूर्व सैनिक 78 वर्षीय एम सुबुसामी ने दर्ज कराई थी. तमिलनाडु के विरुद्ध नगर निवासी बुजुर्ग ने बताया कि वह इलाके के युवाओं को नौकरी पाने में सहायता करता था. इस दौरान उसकी मुलाकात कोयम्बटूर निवासी शिवरमन से हुई. शिवरमन ने उसे बताया कि वह दिल्ली स्थित सांसद के आवास पर रहता है और उसकी वरिष्ठ मंत्रियों एवं अधिकारियों से जान पहचान है. उसने बुजुर्ग को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया.

कई युवकों ने नौकरी के लिए संपर्क किया सुबुसामी ने पुलिस को बताया कि वह पहले तीन युवाओं को लेकर दिल्ली आया था. आठ घंटे तक ट्रेन की गिनती का काम बताया शिकायत के अनुसार सभी युवकों को चिकित्सा जांच के लिए कनाट प्लेस स्थित सेंट्रल अस्पताल ले जाया गया. फिर उन्हें शंकर मार्किट स्थित जूनियर इंजीनयर ऑफिस में शैक्षणिक कागजातों के सत्यापन के लिए बुलाया. इन सभी को बड़ौदा हाउस ले जाया गया, जहां पर स्टडी मैटेरियल, किट, फर्जी प्रशिक्षण पत्र और नियुक्ति पत्र दिया गया.

 पीड़ित ने बताया कि टीटीई और क्लर्क के पद का नियुक्त पत्र देकर उन्हें जून और जुलाई में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर तैनाती दी गई. इन सभी को आठ घंटे तक रेलवे स्टेशन पर आन-जाने वाली ट्रेनों की गिनती करने की जिम्मेदारी दी गई.

जांच में कागजात नकली मिले तो की शिकायत

जब प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वे नियुक्ति के लिए कार्यालय गए तो उन्हें ठगे जाने का अहसास हुआ. उन्हें रेल अधिकारियों ने बताया कि उनके पास मिले सभी कागजात फर्जी हैं. इसके बाद बुजुर्ग पुर्व सैनिक ने आर्थिक अपराध शाखा में मामले की शिकायत दी.

सांसद के आवास पर मिला था आरोपी शख्स

बुजुर्ग ने बताया कि सांसद के आवास पर विकास राणा नाम का शख्स मिला था. उसने खुद को नॉर्दर्न रेलवे में उप निदेशक पर बताया. इसके बाद सभी युवकों ने राणा को रुपये दिए. विकास राणा पीड़ितों से हमेशा रेल इमारत के बाहर रुपये लेता था.