वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद भी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में यह पढ़ाई का माध्यम नहीं बन सका. पिछले 22 साल से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लड़ाई लड़ रहे 81 वर्षीय बुजुर्ग नंद कुमार शुक्ल ने अपनी वेशभूषा को भी छत्तीसगढ़ी कर लिया है.

आप देख सकते हैं कि एक हाथ में लाठी रखे हुए, सिर पर टोपी और कपड़ों पर भी छत्तीसगढ़ी लिखा हुआ. इसी वेशभूषा में रहकर शुक्ल छत्तीसगढ़ी की लड़ाई लड़ रहे हैं.

बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2007 में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला. बावजूद इसके प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम छत्तीसगढ़ी भाषा नही बन सका. विडंबना ये है कि इसे कक्षा पहली और दूसरी में एक सम्पूर्ण विषय तक नहीं माना गया.

हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी भी पढ़ाई जा रही है. इसमें दिक्कत ये है कि शिक्षक पहले हिंदी पढ़कर उसका छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करवाते हैं. यानी सीधे छत्तीसगढ़ी नहीं पढाई जा रही. एक किताब में दो भाषा समाहित कर दी गई है.

छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संस्थापक नंद किशोर शुक्ल का कहना है कि शिक्षा से विकास के द्वार खुलते हैं, शिक्षा माध्यम छत्तीसगढ़ी होना चाहिए किंतु मानसिकता की बात है. अंग्रेजी की तरह हिंदी को मातृभाषा की जगह प्रयुक्त किया जा रहा है. होना यह चाहिए की त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाए.

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus