रायपुर. अंबेडकर अस्पाल के डॉक्टरों ने भिलाई-दुर्ग के रहने वाले 27 वर्षीय युवक को नया जीवनदान दिया है. वो इसलिए क्योंकि उसके हार्ट के ऊपर लगभग 5 किलो वजन का ट्यूमर था. जिसे ऑपरेट करने निकालने में प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों ने हाथ लगाने से भी इंकार कर दिया. उसे सरकारी अस्पताल में ऑपरेट किया गया.

पं. जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से सम्बद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में गुरुवार को करीब 5 घंटे की सफल सर्जरी के बाद एक मरीज के दिल के ऊपर स्थित 5 किलो का ट्यूमर निकाला. 27 वर्षीय यह मरीज अभी पूरी तरह स्वस्थ्य है और एसीआई के पोस्ट आॅपरेटिव इंटेसिव केयर यूनिट में भर्ती है. आईटीआई पास युवक भिलाई का रहने वाला है और भिलाई स्टील प्लांट में कॉन्ट्रेक्टर का कार्य करता है. एसीआई के कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में हुए इस सर्जरी में काफी जटिलताएं थीं जिन्हें डॉ. साहू ने चुनौती के तौर पर स्वीकार करते हुए अपनी टीम के साथ सफल सर्जरी करते हुए इनआॅपरेबल ट्यूमर को निकाला. चिकित्सकीय भाषा में मरीज की इस बीमारी को ‘मैलिग्नैन्ट टेरेटोमा आॅफ एन्टेरियर मेडिस्टेनम’ कहते हैं. सामान्य भाषा में ‘दिल के ऊपर का ट्यूमर’ कहते हैं.यह सर्जरी छत्तीसगढ़ की पहली सर्जरी का दावा डॉक्टरों ने किया है, जिसमें हार्ट के ऊपर 5 किलो वजनीय ट्यूमर को सफल ऑपरेशन कर निकाला हो.

ऑपेशन करने वाले डॉक्टरों की टीम

सांस लेने में तकलीफ, छाती में भारीपन की शिकायत के साथ पहुंचा मरीज

विगत 6 महीने से मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती थी और छाती में भारीपन रहता था. कभी कभी चेहरे में सूजन भी आ जाता था. निजी अस्पतालों में इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वहीं मरीज के शरीर में धीरे-धीरे ट्यूमर का आकार बढ़ता जा रहा था लेकिन मरीज को इस बात की खबर ही नहीं लगी। 31 जुलाई यानी मंगलवार को मरीज एसीआई में आया. बुधवार को मरीज का सीटी स्कैन रेडियोडायग्नोसिस विभाग के डॉ. आनंद जायसवाल ने किया. सीटी स्कैन रिपोर्ट देखने के बाद गुरुवार को यानी 2 अगस्त को मरीज की सर्जरी की गई.
 
दिल तक पहुंच चुकी थी ट्यूमर की नसें
ट्यूमर का फैलाव इतना ज्यादा था कि उसकी नसें दिल व फेफड़ें की नसों से इस कदर आपस में उलझी हुई थीं कि ट्यूमर को निकालना बहुत मुश्किल काम था क्योंकि इससे दिल की नसें कभी भी फट सकती थी. ट्यूमर ने राइट एट्रियम और राइट वेंट्रिकल (दाया आलिंद और दायां निलय) यानी दिल के दो हिस्सों से निकलने वालीं नसें और फेफड़ों तक जाने वाली नसों को अपनी चपेट में ले लिया था इसलिए ट्यूमर को निकालना ही अंतिम विकल्प था.
निकाला गया ट्यूमर
सर्जरी के स्टेप 
कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के साथ डॉ. निशांत चंदेल ने इस जटिल सर्जरी को स्टेप बाई स्टेप करते हुए छाती से बेहद ही सावधानीपूर्वक ट्यूमर को बाहर निकाला. सबसे पहले स्टर्नम (छाती के ऊपर स्थित लम्बी हड्डियां) को काटकर छाती को खोला गया। ट्यूमर को सर्जरी करते हुए बाहर निकाला गया। दिल और फेफडे़ से लगे नसों को रिपेयर किया गया. दिल को सुरक्षित रखने वाली झिल्ली का (पेरिकार्डियम) पुनर्निर्माण किया गया। स्टेपलर और स्टील वायर की मदद से छाती को बंद किया गया.
डॉ. कृष्णकांत साहू के मुताबिक यह बेहद कठिन व चुनौतीपूर्ण सर्जरी थी. ऐसे केस को इनआॅपरेबल केस कहा जाता है. ऐसे केस में जोखिम या रिस्क बहुत होता है जिसके कारण ज्यादातर लोग ऐसे ट्यूमर को आॅपरेट नहीं करना चाहते. इससे मरीज की जान जाने का भी खतरा रहता है. हमने मरीज के परिवार वालों को आॅपरेशन के रिस्क के बारे में बता दिया था लेकिन उनको विश्वास था कि यहां के डॉक्टर इस केस को सफलतापूर्वक आॅपरेट कर लेंगे और वही हुआ.