सट्टेबाज…

इन दिनों चर्चा में सिर्फ सट्टेबाज छाए हुए हैं. राज्य के सट्टेबाजों ने खूब सुर्खियां बटोरी. देश-दुनिया में अपना कारोबार फैलाया. खुद कमाया और नेताओं-अफसरों की जेबें भी खूब भरी. पुलिस के कुछ अफसरों ने तो दर्जी से कहकर अपनी पैंट की जेब की गहराई बढ़ा ली. राजधानी से लेकर सुदूर जिलों के अफसर इन्हीं सट्टेबाजों के खैरख्वाह बनते दिखे. पिछले दिनों उत्तर छत्तीसगढ़ के एक जिले में सट्टेबाजों के खिलाफ पुलिस ने मोर्चा खोल दिया. कुछ हिरासत में लिए गए. हिरासत में लिए गए सट्टेबाजों के तार राजधानी से जुड़े मिले. उस जिले की पुलिस ने राजधानी में आमद दी और एक सट्टा कारोबारी को उठा लिया. जब पुलिस ने सट्टा कारोबारी को उठाया, तब शायद उन्हें मालूम नहीं था कि वह किस शाखा की डंगाल है. मगर उठा तो लिया था. जब इतना साहस कर ही लिया. तब उस जिले के कप्तान साहब ने एक कदम आगे चलना ही बेहतर समझा. सुनते हैं कि 55 लाख में सौदा तय हुआ. इस सौदे की शर्त बस इतनी थी कि उसे सींखचों में ना डाला जाए. बताते हैं कि सट्टा कारोबारी सींखचों की बजाए अस्पताल दाखिल करा दिया गया. अगले दिन कोर्ट से जमानत मिल गई. कप्तान साहब की जेब भारी हो गई. वैसे कप्तान साहब ऐसे इकलौते खिलाड़ी नहीं है. कई जिलों के कप्तानों के बीच एक किस्म की प्रतियोगिता चल रही है. कौन किससे आगे….

मंत्री का ‘हाथ’, ‘साइकिल’ के साथ !

एक मंत्री का ‘हाथ’, ‘साइकिल’ के साथ. यहां ‘साइकिल’ से आशय समाजवादी पार्टी से कतई नहीं है. दरअसल कहा जा रहा है कि मंत्री जी ओहदा संभालते-संभालते साइकिल के कारोबार में हिस्सेदार बन गए हैं. अब यह अफवाह है या इसमें सच्चाई है, यह मालूम नहीं. मगर सुनते हैं कि पिछली सरकार में सरकारी योजना के तहत साइकिल सप्लाई करने वाले एक कारोबारी ने सरकार बदलने के बाद मंत्री जी को अपने कारोबार में हिस्सेदारी दी है. कारोबारी ने पंजाब से साइकिल के पार्ट्स लाकर उसे एसेंबल कर अपनी खुद की एक नई ब्रांड बना ली थी. पिछली सरकार के दौरान जब साइकिल बांटने की योजना लाई गई, तब इस कारोबारी ने असेंबल की गई साइकिल की खूब सप्लाई की थी. सरकार बदली, तो हालात बदल गए. जाहिर सी बात है नए दोस्त बनाने ही थे.

कमाऊ पूत

एक जिले के पुलिस कप्तान से ज्यादा ताकतवर वहां का एसडीओपी है. ये एसडीओपी कप्तान साहब का ‘कमाऊ पूत’ है. कप्तान की शह पर सारे आड़े तिरछे काम इसी के हिस्से है. इस कमाऊ पूत की पोस्टिंग जिला मुख्यालय से बाहर है, मगर साइबर सेल का प्रभार इसे इसलिए सौंपा गया है, जिससे उसकी मौजूदगी जिला मुख्यालय में बनी रहे. कहते हैं कि यह कप्तान की नाक का बाल है. जिले में थानेदारों की पोस्टिंग हो या फिर पुलिस से जुड़े अहम फैसले. चलती एसडीओपी की ही है. थानेदार भी उसके आगे पीछे घूमते हैं कि ठीक ठाक थाना मिल जाए. कप्तान की दिलचस्पी इतनी भर है कि उन्हें ज्यादा मेहनत ना करनी पड़े. वह मर्यादा में रहना जानते हैं. कप्तान साहब के हिस्से का सारा दाग धोने के लिए है ना ‘कमाऊ पूत’

सदाचार का ताबीज

सरकारी व्यवस्था में सदाचार की परिभाषा अलग होती है. शिक्षा विभाग के एक अफसर ने सदाचार का ताबीज पहन रखा है. इस ताबीज का असर यह है कि करोड़ों के घोटाले का आरोपी होने के बावजूद यह अफसर विभाग का लाडला बना बैठा है. अफसर पर लगे आरोपों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है. दो करोड़ 18 लाख रुपए का फर्नीचर घोटाला, दो करोड़ 35 लाख रुपए का बर्तन घोटाला, पैसे लेकर नियम विरुद्ध अनुकंपा नियुक्ति, ट्रांसफर पोस्टिंग में बड़ा घालमेल और ना जाने क्या-क्या. इस अफसर की शिकायत मुख्यमंत्री से भी हुई. मुख्यमंत्री सचिवालय ने जांच के लिए कह दिया. ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज करने के निर्देश भी जारी हुए. मगर सिस्टम है कि मानता नहीं. सदाचार के ताबीज की ताकत में बड़ा असर है. आचरण भ्रष्ट क्यों ना हो, सदाचारी दिखते रहना जरूरी है. सुनते हैं कि इस अफसर को प्रमोशन तो मिला ही, हाल ही में ठीक ठाक पोस्टिंग भी मिल गई है. अब तक जिला संभालते थे, अब संभाग की जिम्मेदारी है.

रमन की भूमिका?

बीजेपी की 21 नामों की सूची में सबसे अधिक चर्चित सीट खैरागढ़ की रही. इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के भांजे विक्रांत सिंह को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. विक्रांत जिला पंचायत उपाध्यक्ष हैं और लंबे समय से टिकट की दौड़ में रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि विक्रांत सिंह को टिकट देने की स्थिति में अब पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह और पूर्व सांसद अभिषेक सिंह को टिकट मिलेगी? रमन राजनांदगांव से विधायक है और पूर्व सांसद अभिषेक सिंह के नाम को लेकर चर्चा रही है कि वह कवर्धा या पंडरिया से चुनावी तैयारी कर रहे हैं. बीजेपी परिवारवाद की विरोधी रही है. ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाते रहे हैं. डॉक्टर रमन सिंह हो या उनके बेटे अभिषेक सिंह अगली सूची में उनका नाम टिकट में शामिल होने की स्थिति में बीजेपी से परिवारवाद के नाम पर राजनीतिक हमले करने का मौका छिन सकता है. बीजेपी में डॉक्टर रमन सिंह का कद बड़ा है. माना जा रहा है कि पार्टी हाईकमान ने उनके लिए कुछ बेहतर ही सोचा होगा.

आम आदमी पार्टी की गारंटी

छत्तीसगढ़ में अपनी संभावना देख रही आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल ने दस गारंटी दी है. 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली, बेहतर स्वास्थ्य-शिक्षा, रोजगार की गारंटी, बेरोजगारी भत्ता, महिलाओं को एक हजार रुपया, कर्मचारियों का नियमितीकरण वगैरह-वगैरह. इन सभी गारंटी के बूते आम आदमी पार्टी राज्य में सरकार बनाने के सपने सजा रही है. बीते कुछ महीनों में अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान का यह तीसरा दौरा है. केजरीवाल की छत्तीसगढ़ में दिलचस्पी की अपनी अलग कहानी है. बहरहाल आम आदमी पार्टी की तैयारियां देखिए. 90 विधानसभा सीटों के लिए पार्टी ने अब तक 22 इंचार्ज तैनात किया है. 11 लोकसभा सीटों के लिए 11 इंचार्ज जिसे प्वाइंट आफ कॉन्टैक्ट नाम दिया गया है. राज्य को चार जोन में बांटते हुए चार जोनल प्वाइंट आफ कॉन्टैक्ट तैनात किए गए हैं. चार सह प्रभारी हैं, जो राज्य के प्रभारी संजीव झा को रिपोर्ट करते हैं. संजीव झा की रिपोर्टिंग पार्टी के संगठन महामंत्री संदीप पाठक को होती है. संदीप पाठक सीधे अरविंद केजरीवाल को रिपोर्ट करते हैं. चुनाव के मैनेजमेंट के लिए दिल्ली और पंजाब की एक बड़ी टीम लगाई गई है, जो सोशल मीडिया कैंपेनिंग के जरिए पब्लिक परसेप्शन को बदलने के लिए काम कर रही है. आम आदमी पार्टी जिन राज्यों में गई वहां नुकसान कांग्रेस को ज्यादा हुआ. इंडिया गठबंधन में दोनों पार्टी एक मंच पर है, मगर राज्य के चुनाव में आमने-सामने. दिलचस्प बात यह भी है कि इस दफे अरविंद केजरीवाल हो या भगवंत मान दोनों नेताओं ने राज्य की कांग्रेस सरकार पर सीधी टिप्पणी नहीं की. ‘इंडिया’ बनने के बाद यह तस्वीर बदली है.