रिपोर्ट- अमित श्रीवास्तव, कोरिया। बचपन में मैं 3 या 4 दिन स्कूल गई थी और तब मैंने स्कूल के शिक्षक को अपने पिता से यह कहते हुए सुना था कि जब इसे दिखाई ही नहीं देता तो इसे स्कूल लाने से क्या फायदा। उसके बाद से मैं स्कूल नहीं गई लेकिन घर में ही बड़े भाईयों और बड़ी बहन की आवाज सुनकर मुझे शब्द ज्ञान हुआ। मुझे दिखाई भले ही नहीं देता हो लेकिन मैं कभी किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती।
कोरिया जिला मुख्यालय से लगभग 8 किमी0 दूर ग्राम पंचायत बस्ती के हरिजन पारा में रहने वाली उर्मिला बाई की आँखे भले ही न हो लेकिन उसके हौसले से न केवल उसके परिवार के लोग बल्कि गाँव के लोगों को उस पर फक्र है । बस्ती में रहने वाले पन्ना लाल सोनवानी और कलावती सोनवानी के पांच बच्चों में सबसे छोटी उर्मिला बाई का जन्म 1980 में हुआ था। जन्म के समय ही परिजनों को यह आभास हो गया था कि उर्मिला को दिखाई नहीं पड़ता लेकिन फिर भी उन्होेनें हिम्मत नहीं हारी।
करती हैं सारे कार्य
समय के साथ ही साथ उर्मिला ने अपनी भाभियों और मां के साथ मिलकर घर के कामों में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। परिवार के साथ जंगल से लकड़ी लाना हो या फिर हैंडपंप से पानी भरकर लाना हो। उर्मिला अपनी मां और भाभी के साथ बराबर घर के काम में हिस्सा बंटाती है।
सरकारी मदद की है दरकार
दिव्यांग उर्मिला को ग्राम पंचायत से प्रतिमाह तीन सौ पचास रूपये पेंशन मिलती है। इसके अलावा उसे कोई मदद नहीं मिलती। हमारे संवाददाता ने आज जब उर्मिला से उसके घर जाकर मुलाकात की। इस दौरान गांव के लोगों के साथ ही ग्राम पंचायत सरपंच गोरे लाल भी मौजूद थे। सरपंच की मौजूदगी में उर्मिला ने कहा कि मात्र तीन सौ पचास रूपये में क्या होता है। उसने कई बार चावल के लिए आवेदन दिया लेकिन उसे खाद्यान नहीं दिया जा रहा हैैै। इस पर सरपंच ने तत्काल जानकारी लेकर खाद्यान की व्यवस्था कराने का आश्वासन दिया।
अगर राज्य सरकार की ओर से कोई सहयोग मिले तो उसके आगे की जिदंगी आराम से कट सकेगी। फ़िलहाल गांव में बनने वाले प्रधानमंत्री आवास में उसका रजिस्ट्रेशन कर दिया गया है, लेकिन उर्मिला का कहना है कि अगर उसे सरकार की ओर से कोई छोटी नौकरी दे दी जाये तो वह बिना किसी सहारे के अपनी आगे की जिंदगी गुजार सकेगी। ग्राम बस्ती में रहने वाले पन्ना लाल सोनवानी व उनकी पत्नी कलावती सोनवानी काफी बुजुर्ग हो गए हैं। अब ऐसे में सभी की निगाहें राज्य सरकार की ओर लगी हुई हैं।