नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति  डोनाल्ड ट्रम्प  ने भारत को एसटीए- 1 (स्ट्रैटजिक ट्रेड ऑथराइजेशन-1) का दर्जा दिया है. अमेरिकी सरकार द्वारा दिया जाने वाला ये बेहद खास दर्जा है. इसकी अहमियत का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि एशिया में सिर्फ जापान और दक्षिण कोरिया को ही ये दर्जा मिला हुआ है. यहां तक अमेरिका के करीबी देश माने जाने वाले इजरायल को भी ये दर्जा नहीं मिला है.

यह दर्जा मिलने बाद भारत को अमेरिका से हाईटेक्नोलॉजी प्रोडक्शन जैसे अंतरिक्ष और रक्षा सेक्टर में मदद मिल सकेगी। अमेरिका का भारत को एसटीए-1 दर्जा देना चीन को जवाब माना जा रहा है। चीन बीते दो साल से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की एंट्री की राह में लगातार रोड़े अटका रहा है। चीन का तर्क है कि जब तक भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं कर देता, तब तक उसे एनएसजी की सदस्यता नहीं मिलनी चाहिए।

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शर्त रखी थी कि किसी देश को एसटीए-1 का दर्जा तभी दिया जाएगा जब वह चार प्रमुख संगठनों- एनएसजी, मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर), वासेनार अरेंजमेंट (डब्ल्यूए) और ऑस्ट्रेलिया ग्रुप (एजी) का सदस्य हो। ट्रम्प प्रशासन ने भारत को एसटीए-1 दर्जा देने के लिए पूर्व नियम में ढील दे दी। वहीं, भारत एनएसजी के सिवाय अन्य तीन समूहों की सदस्यता हासिल कर चुका है।

विदेश मंत्रालय के अधिकारयों का कहना है कि अमेरिका के इस फैसले के बाद भारत को एनएसजी से बाहर रखने का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि अमेरिका एनएसजी का सबसे अहम सदस्य है और वह संवदेनशील तकनीकी के अंतरराष्ट्रीय कारोबार की निगरानी का सबसे बड़ा समर्थक देश भी है। यही नहीं एनएसजी के तहत जितना भी संवदेनशील तकनीक का हस्तांतरण होता है उसमें अमेरिका की हिस्सेदारी बेहद ज्यादा है। भारत को अब ये सारी तकनीक एनएसजी में शामिल हुए ही हासिल होगी क्योंकि अमेरिका ने उसे विशेष दर्जा दे दिया है।