Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

‘काबिल भ्रष्टाचारी’

आइए महसूस कीजिए. मनरेगा मजदूरों की उन तस्वीरों को. जब चिलचिलाती गर्मी के दिनों में, लू के थपेड़ों के बीच, आग उगलते सूरज की तपिश से सुर्ख लाल होती उनकी चमड़ी को महज चंद रुपये ठंडक दे जाते थे. चंद रुपये ही थे, जो मरहम का काम करते. ये चंद रुपये ही थे, जो अथक मेहनत के बाद मजदूरों के हाथों में आते ही उनके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देते. कोई मजदूर इस बात से खिलखिला उठता कि उसके मासूम बच्चे की भूख मिटेगी, कोई मजदूर उन चंद रुपयों से अपनी बीमार पत्नी की दवा खरीदकर सुकून पाता. करीब दशक भर पहले मनरेगा मजदूरों के इन छोटे-छोटे सपनों का बड़ा हिस्सा चुराने वाला एक चोर हाल ही में एक संवैधानिक पद से रिटायर हो गया. तब मजदूरों के सपनों का हिस्सा चुराया था, आज अपने लालच से युवाओं के सपनों को रौंदने से गुरेज नहीं किया. युवा बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं, सबसे ‘काबिल भ्रष्टाचारी’ के खिलाफ. बहरहाल बात मनरेगा मजदूरों के हिस्से में डाका डालने की उठी, तो मालूम चला कि प्रभारी कलेक्टर रहते 50 करोड़ रुपये का भुगतान कर बड़ी गड़बड़ी करने का यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. जब मामला फूटा था, तब महज दो इंक्रीमेंट रोकने की मामूली सजा देकर तत्कालीन सरकार ने अफसर की कॉलर बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अफसर आल इंडिया सर्विस के थे, सो यूपीएससी को तय सजा की सूचना भेजी गई. बताते हैं कि यूपीएससी ने राज्य सरकार की भेजी फाइल यह कहते हुए लौटा दिया कि अफसर माइनर पनिशमेंट का नहीं, मेजर पनिशमेंट का हकदार है. सुनते हैं कि जब तक फाइल वापस आई, सूबे की सरकार बदल गई. फाइल सरकारी थी. सरकार नई थी. फाइल गुम हो गई. मजदूरों और युवाओं के सपनों को चुराने वाला चोर भी अब सरकार में नहीं है. 

‘रिटायर्ड IAS की उलझन’

हाल ही में रिटायर हुए एक आईएएस खुद सिस्टम में उलझ कर रह गए. रिटायर हुए तो जीपीएफ के चालीस लाख रुपए निकालने के लिए उन्हें खूब माथापच्ची करनी पड़ी. आल इंडिया सर्विस के अफसर थे, इसलिए अकाउंटेंट जनरल आफिस से क्लीयरेंस होना था. अकाउंटेंट जनरल ऑफिस ने जीपीएफ एफ्रुवल का आर्डर आभार पोर्टल पर अपलोड कर दिया. कुछ दिनों तक जीपीएफ की रकम खाते में ना आता देख रिटायर्ड आईएएस ने पूछताछ की, तब मालूम चला कि मंत्रालय के अकाउंट अफसर के पास आभार पोर्टल का आईडी-पासवर्ड नहीं है, जिससे वह पोर्टल से एकाउंटेंट जनरल का अप्रूवल आर्डर निकाल सके. रिटायर्ड अफसर के दबाव के बाद अकाउंट अफसर ने मामला जीएडी के मत्थे डाल दिया. वहां भी ढाक के तीन पात वाला हाल रहा. जीएडी ने भी हाथ खड़े कर दिए. थक हारकर रिटायर्ड अफसर ने अपने मातहत काम करने वाले एक कर्मचारी को अकाउंटेंट जनरल ऑफिस भेजा. आभार पोर्टल पर अपलोड आर्डर की स्क्रीन शाट मोबाइल पर ली गई. मंत्रालय जाकर उसका प्रिंट आउट दिया गया. तब जाकर प्रक्रिया आगे बढ़ी. बहरहाल खबर है कि रिटायर्ड आईएएस मोबाइल मैसेज की हर घंटी पर एक नजर दौड़ा आते हैं कि कहीं जीपीएफ का उनका पैसा तो नहीं आ गया. वैसे रिटायर्ड आईएएस सिस्टम के बड़े खिलाड़ी रह चुके हैं. जब रिटायरमेंट की दहलीज पर थे, तब अपने कारनामों को लेकर सुर्खियों में रहे. करोड़ों के टेंडर से लेकर पीएससी की परीक्षा में अपने बच्चों की भर्ती कराने तक की उपलब्धियां उनके हिस्से आईं. सरकार से अच्छे ताल्लुकात थे. रिटायरमेंट के दूसरे दिन ही पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई. खैर, अफसर का अपना रुआब था, तब भी जीपीएफ की रकम के लिए उन्हें जद्दोजहद करनी पड़ी. जरा सोचिए एक मामूली सरकारी कर्मचारी को कितनी मशक्कत करनी पड़ती होगी. 

‘जंगलराज’ !

वन महकमे में सीनियर अफसर यह कहते सुने जा रहे हैं कि, ‘वाकई यहां जंगलराज है’. दरअसल उनकी नाराजगी जूनियर अफसर को शीर्ष पद पर बिठाने से बढ़ गई है. 1990 बैच के आईएफएस श्रीनिवास राव पहले पीसीसीएफ प्रमोट किए गए और बाद में हेड ऑफ फॉरेस्ट बन गए. सुधीर अग्रवाल, अनिल साहू सरीखे सीनियर अफसर मुंह ताकते रह गए. श्रीनिवास राव को हेड आफ फारेस्ट बनाए जाने की प्रक्रिया संबंधी दस्तावेज मांगने सुधीर अग्रवाल ने जब आरटीआई लगाया, तब सरकार में हड़कंप मच गया. कहा जा रहा है कि नियम कानून को खंगालने के बाद सरकार अपने निर्णय पर डट गई है. श्रीनिवास राव की नियुक्ति को जायज ठहराया जा रहा है. ये बात और है कि दीगर राज्यों में हुई इस तरह की नियुक्ति के विरोध में कैट में दायर अपील पर की गई सुनवाई का फैसला राज्य सरकार के खिलाफ ही रहा है. वन महकमे का एक बड़ा धड़ा इस बात से खुश था कि सुधीर अग्रवाल के उठाये गए कदम का लाभ उन्हें भी मिलेगा, मगर कहते हैं ना सरकार का हाथ जिसके सिर पर हो, मजाल है उसका बाल भी बांका हो जाए. 

‘काउंटडाउन’

आचार संहिता का काउंटडाउन शुरू हो गया है. आचार संहिता लगते ही प्रशासन पर सरकार का नियंत्रण खत्म हो जाएगा. चुनाव आयोग सर्वेसर्वा हो जाएगा. इस बीच इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि आयोग कई अफसरों पर नजरें टेढ़े किए हुए है. इन अफसरों के खिलाफ लंबी चौड़ी शिकायत आयोग को भेजी गई है. कुछ राजनीतिक शिकायत है, जिसमें अफसरों के कारनामों का ब्यौरा है. उन कारनामों का मजमून पढ़ लेंगे, तो मालूम चलेगा कि इसे तैयार करने वाला भी कोई अफसर ही है. खुन्नस निकालने का इससे अच्छा मौका भला और कब मिलता. आयोग में भी अफसर बैठे हैं, जाहिर है इतना तो समझते ही है कि इस तरह के शिकायतों का आधार क्या होता है. मंत्रालय के गलियारे से लेकर पीएचक्यू तक के अफसरों के नाम आयोग के पास है. करीब आधा दर्जन जिलों के कलेक्टर-एसपी भी हैं. देखना होगा कि पारदर्शी चुनाव प्रभावित करने का इन अफसरों पर लगाया गया आरोप कहां जाकर ठहरता है. वैसे कुछ कलेक्टर-एसपी हैं, जिनके हटने की संभावना खूब उबाल मार रही है. 

डांट डपट

बीजेपी की संभावित सूची ने खूब बवाल काटा. हल्ला यह भी उड़ा कि टिकट चयन की प्रक्रिया में शामिल रहे राज्य के नेताओं को खूब डांट डपट लगी है. इधर प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया से पूरी तरह किनारे किए गए नेता डांट डपट खाने वाले नेताओं के चेहरे की भाव भंगिमाओं को टटोल रहे हैं. माथे पर उभरी लकीरों को गिनने की उनकी रुचि बलवती हो गई है. उनके भाषण में शब्दों के लड़खड़ाने को यही नेता पकड़ पा रहे है. और यह कहकर माहौल बनाते भी दिख रहे कि ”यह सब डांट डपट का असर है”. खैर, इन सबके परे कुछ बुनियादी चर्चा भी उठी. चर्चा यह छिड़ी कि मोदी-शाह की बैठक की डिटेल्स लीक करने का साहस किसी नेता में नहीं है. इस लिहाज से संभावित सूची जारी कर बीजेपी कहीं टोह तो नहीं ले रही थी कि जिन चेहरों को कार्यकर्ताओं और जनता ने खारिज कर दिया है, उन्हें टिकट देकर किसी तरह का नुकसान उठाना ना पड़ जाए.

नई पार्टी

कांग्रेस से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने एक नई पार्टी बनाई ‘हमर राज’. अब एक दूसरी क्षेत्रीय पार्टी के अस्तित्व में आने की अटकलें हैं. इस पार्टी का नाम है, ‘छत्तीसगढ़ महतारी पार्टी’. पार्टी के गठन की सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी होने की चर्चा है. चुनाव में कई पार्टियां आती है और जाती है, लेकिन इस पार्टी का दिलचस्प पहलू यह है कि इस पार्टी को खड़ी करने में कुछ सीनियर अफसरों की बड़ी भूमिका है. कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ी अस्मिता इस पार्टी का मुख्य एजेंडा बताया जाता है. सूबे की सियासत में कांग्रेस-बीजेपी के वर्चस्व और संसाधनों से मजबूत आम आदमी पार्टी के बढ़ते दायरे के बीच यह पार्टियां कहां टिकेगी, फिलहाल यह सवाल है. वैसे पार्टी के गठन में अफसरों की भूमिका वाली राज्य की यह पहली पार्टी होगी, यह तय है. 

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