Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

गिरगिट

मंत्रालय में अफसरों की रायशुमारी चल रही थी. उनमें से किसी ने सवाल पूछा- सरकारी व्यवस्था में सबसे काबिल अफसर कौन होता है? एक ने कहा, जो स्मार्ट फिनिशर हो. दूसरे ने कहा, जो हार्ड वर्क के साथ-साथ स्मार्ट वर्कर हो. कुछ और अफसरों की ओपिनियन आनी बाकी ही थी, तभी तपाक से एक धीर गंभीर अफसर ने कहा- काबिल अफसर वहीं है, जिसमें गिरगिट के गुण हों. अपने भीतर कई तरह के रंगों को समेटा हुआ हो. भगवा का परचम लहराया तो घोर राइटिस्ट हो जाए. पंजा लगा तिरंगा लहराया, तो घोर लिबरल. हर आइडियोलॉजी में फिट बैठने वाला. वैसे ये बड़ा मुश्किल होता है कि अलग-अलग आइडियोलॉजी के साथ सामंजस्य बनाकर चला जा सके, लेकिन कई अफसर हैं, जो गुणी हैं. तरह-तरह के रंग अपने में समेटे हुए हैं. इसलिए काबिल अफसर वही है, जो गिरगिट की तरह रंग बदलने की कला में निपुण हो. सूबे में चुनाव है. गिरगिटिया अफसर चुनाव में मौसम वैज्ञानिक बन जाता है. कुछ वक्त पहले तक अफसरों का रुझान सत्ताधारी दल के साथ जुड़ा था. अब कुछ का डगमगाता दिखता है. कई अफसर हैं, जो मोदी-शाह पर ज्यादा भरोसा जताने लगे हैं. ईडी के साथ-साथ राज्य में मोदी-शाह के दौरे भी बढ़ रहे हैं. खास अफसरों का इमान डोल रहा है.

डंडा

अफसरों की बात चल ही रही थी कि जिक्र राज्य के चुनाव पर जा टिका. बात आगे बढ़ी और फिर गिरगिट की संज्ञा देने वाले अफसर ने कहा कि चुनाव आयोग ने जिस तरह से कलेक्टर-एसपी के कामकाज पर डंडा चलाया है, उससे अफसर सकते में आ गए हैं. यूपी के रास्ते चुनाव आयोग में कुर्सी पाने वाले एक आयुक्त टी एन शेषन की तरह बर्ताव कर रहे हैं. शेषन कहते थे कि वह नाश्ते में राजनीतिज्ञों को खा जाते हैं. अब के आयुक्त अफसरों को खाने की धमकी देते हैं. बहुत बुरा और रुखा व्यवहार था आयुक्त का. वैसे, चुनाव आयोग की बैठक के बाद कलेक्टर-एसपी के पर निकल आए हैं. बॉर्डर तो बॉर्डर शहरों के भीतर सख्ती बढ़ा दी है. कार उधेड़-उधेड़ कर देखी जा रही है. लाखों-करोड़ों की रकम जप्त की जा रही है. इससे व्यापारी सकते में हैं. नाराज व्यापारियों का एक दल चुनाव आयोग पहुंच गया. इस शिकायत के साथ कि जो हो रहा है उससे उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. रसीद दिखाने के बाद भी सामान जब्त हो रहा है. जब्त करने वाला खुद कहता है कि अफसरों का निर्देश है कि उन्हें ‘कार्रवाई दिखानी है’. व्यापारी को अब जब्त सामान छुड़ाने कोर्ट कचहरी भारी पड़ रही है. एक अफसर कहते हैं कि ये ‘डंडे’ का असर है. हालांकि सवाल यह भी है कि यह डंडा आयोग का है, या राज्य सरकार का.

थिरकन

यूएई में महादेव एप के संचालक सौरभ चंद्राकर की शादी में थिरकने वाले राज्य के अफसर-कारोबारी-नेताओं के इन दिनों होश फाख्ता हो गए हैं. इनका शरीर अब भी थिरक रहा है, मगर दहशत में कि कहीं ईडी की जांच का रडार उनकी ओर ना घूम जाए. दर्जनों अफसरों-कारोबारियों ने नागपुर से चार्टर्ड फ्लाइट में खूब उड़ान भरी थी. कई छिपते-छिपाते यूएई पहुंचे थे. अब जांच से अपना नाम छिपाने की जद्दोजहद में इधर उधर हाथ पैर मार रहे हैं. खैर, ईडी की कार्रवाई ईडी जाने. चर्चा शादी की होनी चाहिए. सौरभ पहला छत्तीसगढ़िया है, जिसकी शादी की चर्चा देश भर में हो रही है. देश की कुछ चर्चित शादियों में अब सौरभ की शादियों का जिक्र भी होगा. दो सौ करोड़ की शादी ने अच्छे-अच्छे सेठों की आंखें चौंधिया दी है. छत्तीसगढ़ियत का इकबाल हर कोई बुलंद कर रहा है. सरकार ने इसका माहौल बनाया. विपक्ष लूटने की कोशिश में जुटा और सौरभ ने बाजी मार ली.

रुतबा

एक जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष की अपने इलाके में तूती बोलती है. एक, दो नहीं चार जिलों के कलेक्टरों का रुतबा भी इस अध्यक्ष के आगे फीका है. इन जिलों की सहकारी सोसायटियों में इस अध्यक्ष का एक छत्र राज है. दो सौ से ज्यादा सोसायटी है. कहते हैं कि इन सोसायटियों में तालपत्री से लेकर बारदानों में लगने वाले मुहर की स्याही तक का ठेका इसी अध्यक्ष के पास है. मगर अध्यक्ष के इन कारनामों को देखकर भी हर किसी ने आंख मूंद लिया है. बीते कुछ सालों में सोसायटियों में हुई खरीदी की जांच करा दी जाए, तो बड़ा मामला फूट सकता है. हर सोसायटी में डेढ़-दो लाख की खरीदी के एवज में चार-चार लाख रुपए का बिल बनाया जाता रहा है. अब इसके भुगतान का गुणा भाग करेंगे तो पाएंगे कि अध्यक्ष की बेहिसाब कमाई किसी विभाग के मंत्री के मुकाबले कहीं ज्यादा है. छोटे मोटे मंत्री इस हिसाब में पड़ जाएं, तो उन्हें खुद के मंत्री होने का मलाल हो जाएगा. बहरहाल, दुर्ग जिले में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष रहे एक बीजेपी नेता को 15 करोड़ के भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल की हवा खानी पड़ी है. देर सबेर कहीं अध्यक्ष को लेने के देने ना पड़ जाए.

मूड मैपिंग

रायगढ़ दौरे के दौरान पीएम मोदी का मूड फीका फीका रहा. मोदी का मूड मैपिंग करते हुए बीजेपी के एक सिंसियर नेता ने बताया कि रायपुर दौरे के दौरान जो संतुष्टि का भाव पीएम के चेहरे पर नजर आया था, इस बार के दौरे में वह गायब मिला. बकौल नेता, मोदी आए और गए. अधिकांश वक्त तक चुप्पी साधे रहे. नेताओं से कम बात की. अब पीएम की इस चुप्पी के मायने ढूंढें जा रहे हैं. रायगढ़ में पीएम के दौरे के ठीक दो दिन पहले दंतेवाड़ा में अमित शाह नहीं पहुंचे. बीजेपी के प्रभारी को ही परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना करना पड़ा. यहां महत्वपूर्ण झंडा दिखाना नहीं था. महत्वपूर्ण था अमित शाह का आना. मगर शाह नहीं पहुंचे. छत्तीसगढ़ को लेकर दिल्ली में तय हुई केंद्रीय चुनाव की बैठक भी टाल दी गई. चार्टर्ड प्लेन से राज्य के नेता दिल्ली बुलाए गए थे. जे पी नड्डा और शाह के बंगलों में छोटी-छोटी बैठकें हुई, लेकिन चुनाव समिति नहीं बैठी. स्थानीय नेता अब इन घटनाओं को एक सूुत्र में पिरो रहे हैं.

हाल ए कांग्रेस

टिकट को लेकर कांग्रेस में हलचल है. कांग्रेस के मौजूदा विधायकों को दो तरह का डर सता रहा है. एक टिकट कटने का डर और दूसरा टिकट मिल भी जाए तो अपनों के निशाने पर आने का डर. बस्तर की एक विधानसभा सीट को लेकर हुई दिलचस्प चर्चा सुनने को मिली. इस सीट के लिए मौजूदा विधायक समेत तीन नामों का पैनल तैयार किया गया है. विधायक की दावेदारी मजबूत है, लेकिन स्थानीय स्तर पर जिन दो नामों को पैनल में रखा गया है, उनकी मजबूती भी विधायक से कम नहीं है. चुनिंदा लोगों की एक बैठक में जब यह कहा गया कि मौजूदा विधायक को टिकट दिए जाने की स्थिति में तस्वीर कैसी बनेगी? पैनल में शामिल एक स्थानीय नेता पहले ठहरे और बड़े ही इत्मीनान से जवाब दिया, ”बाकी के दो दावेदारों को अपनी राजनीति खत्म थोड़े ही करनी है. हम विरोधी प्रत्याशी को जीता देंगे”. स्थानीय नेता के इस जवाब पर तुरंत किसी ने टिप्पणी दर्ज की गई. कांग्रेस को बीजेपी नहीं हराती. कांग्रेस को कांग्रेस ही हरा देती है.