चुनाव आयोग और अफसर

चुनाव आयोग की बैठक में कलेक्टरों-एसपी को हटा देने की धमकी जिस तरह से दी गई, अफसरों ने यकीनन सोचा होगा कि इतनी धमकी तो सरकार ने भी कभी नहीं दी. आईएएस-आईपीएस अफसरों का चार्म कलेक्टर-एसपी बनने में ही है. कई जिलों में अफसरों को हाल में ही तैनाती मिली है. अब ऐसे में आयोग के फरमान के बीच कुछ ऊपर नीचे हो जाए, तो फजीहत होना लाजिमी है. सो अफसरों में डर तो बैठ गया है. बैठक के दौरान चुनाव आयोग किसी चिन्हांकित जिले के कलेक्टर-एसपी को करीब-करीब फटकार लगाने की शक्ल में जब कोई हिदायत देता तो बाकी जिलों के कलेक्टर-एसपी खुद ब खुद समझ जाते कि यह हिदायत उनके लिए भी है. खैर, चुनाव आयोग ने ट्रांसपेरेंसी बरतने पर जोर दिया है. आयोग का तेवर देखने वाले अफसर बताते हैं कि आमतौर पर ऐसा होता नहीं है. एक अफसर ने आयोग के रवैये पर अपनी टिप्पणी में कहा कि- लगता है कि अब आयोग में हर कोई टी एन शेषन बनना चाहता है.

सेंट्रल एजेंसी

चुनाव आयोग तीन दिनों तक राजधानी में रहा. कई बैठके हुई. इस बीच सबसे ज्यादा चर्चा सेंट्रल एजेंसियों के साथ हुई बैठक को लेकर रही. खबर है कि आयोग ने इंकम टैक्स, ईडी, डीआरआई जैसी कई एजेंसियों के अफसरों के साथ अलग से बैठक की. कहा तो यह भी जा रहा है कि इस बैठक में एजेंसियों को जमकर फटकार लगाई गई है. यह मालूम नहीं कि फटकार कि वजह क्या है. मगर कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में राज्य में एजेंसियों का दखल और ज्यादा बढ़ता दिख सकता है. सुना तो यह भी गया है कि एजेंसियों की इस बैठक के दौरान एक्साइज के अफसर भी थे. इन अफसरों को खूब फटकारने की चर्चा है. वैसे भी चुनाव और शराब का गहरा संबंध है.

अफसरों की शिकायत

इधर बीजेपी ने चुनाव आयोग से छत्तीसगढ़ में प्रभावशाली पदों में तैनात आईएएस, आईपीएस अफसरों को हटाने की मांग कर दी है. आयोग को सौंपे गए पत्र में करीब एक दर्जन अफसर हैं. पत्र में कुछ घपलों घोटालों का जिक्र है. बीजेपी ने अपने पत्र में इन अफसरों को कांग्रेस का ‘हाथ’ बताया है. यानी कि इन अफसरों पर आरोप यह लगाया है कि ये कांग्रेस के लिए काम करते हैं. रमन सरकार में एक मंत्री थे, जो विधानसभा में खुलकर यह कहते थे कि जो अफसर आज हमारे साथ हैं, कल आपके साथ होंगे. जाहिर है, जिसकी सरकार उसके अफसर. अब सरकार कांग्रेस की है, तो अफसरों का हाव भाव, चाल चलन भी तो रूलिंग पार्टी की तरह होगा. ना हुआ तो ठिकाने लगा दिए जाएंगे. मन से ना सही, तन से अफसरों का सरकार के साथ दिखते रहना जरूरी है. बीजेपी अपने नेता की इन बातों को भूलती नजर आई. खैर, चिंता की बात यह है कि आयोग का मिजाज कुछ बदला बदला दिखता है. आने वाले दिनों में इन में से कई अफसरों को लेकर आयोग तबादले का डंडा चला दे तो कोई बड़ी बात नहीं.

ठेकेदार-मुंशी

बस्तर के एक जिले में लोग कहने लगे हैं कि विधायक ठेकेदार और कलेक्टर उनके मुंशी बन गए हैं. कोई यूं ही कुछ नहीं कहता, कहने की वाजिब वजह भी होगी ही. इस ठेकेदार-मुंशी की जोड़ी को लेकर यह सुना गया है कि डीएमएफ से जुड़ा कोई भी ठेका हो. ठेकेदार-मुंशी बैठकर तय करते हैं. कौन सा काम किसे देना है. किस काम के ऐवज में क्या समझौते करने हैं. वगैरह-वगैरह. मसला सिर्फ डीएमएफ तक खत्म नहीं हो जाता. ट्राइबल लैंड को नान ट्राइबल को ट्रांसफर किए जाने के मामले में तो खूब बड़े सौदे की खबर है. ठेकेदार मसौदा बनाते हैं, मुंशी को अपने दस्तखत की एक चिड़िया बिठानी होती है. खूब याराना चल रहा है.

टेकाम को दिल्ली का ‘टेका’

आईएएस की नौकरी छोड़ नीलकंठ टेकाम बीजेपी के हो गए. कुछ महीने पहले उन्होंने वीआरएस के लिए राज्य सरकार को आवेदन दिया था. मगर उनका आवेदन धूल खाते पड़ा था. इस बीच खबर आई कि केंद्र सरकार ने उनके वीआरएस को मंजूर कर लिया. टेकाम केंद्र सरकार के अफसर थे, सो केंद्र ने रिलीव कर दिया. ढाई हजार समर्थकों के साथ नीलकंठ टेकाम बीजेपी में शामिल हो गए. टेकाम कहते हैं, बीते तीन साल से वह शंट थे. सरकार में कोई बड़ी भूमिका नहीं थी. इस बीच सोचने का मौका मिला और फैसला ले लिया. वैसे कहा जा रहा है कि टेकाम के वीआरएस की मंजूरी के लिए प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने खुद दिल्ली बात की और वीआरएस मंजूर कराया. ओपी चौधरी के बाद गणेश शंकर मिश्रा, आर एस त्यागी, एसएसडी बड़गैय्या और अब नीलकंठ टेकाम जैसे ब्यूरोक्रेट बीजेपी में शामिल हो गए हैं. कुछ सिस्टम में रहकर बीजेपी की आइडियोलाजी को पुष्पित पल्लवित कर रहे हैं.