कौन है वो?
अब तक ईडी दूरबीन लेकर गली-गली खाक छानती रही, अब इधर राज्य की पुलिस है, जो यह पता करने में जुटी है कि ईडी के किस अफसर के ठिकाने से बड़ी रकम चुरा ली गई. दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के एक बयान के बाद से ईडी अफसरों के होश फाख्ता हैं. मुख्यमंत्री ने अपने बयान में जब से यह बताया कि ईडी के एक अफसर के पैसे चुरा लिए गए, जिसकी रिपोर्ट तक नहीं लिखवाई गई, तब से हर किसी की बेसब्री बढ़ गई है कि मोटा भाई के बनाए किले में सुराख करने का साहस कौन सा अफसर जुटा सकता है? वैसे गलियारे में यह चर्चा सुनी गई है कि रकम करीब पचास लाख रुपए की थी. अब हकीकत का तो अता-पता नहीं. चोरी हुई भी है या नहीं. मगर इसका जिक्र होना भी ईडी के रसूख के लिए ठीक नहीं. एक जांच अफसर के ठिकाने से 50 लाख रुपए चोरी होने की खबर सुर्खियों में तो रहेगी ही. बहरहाल पुलिस की परेशानी यह है कि ढूंढे भी तो किसे..
सीडी का शोर..
कांग्रेस की टिकट जारी होने और प्रत्याशियों के नामांकन दाखिले के बाद आरोपों की बौछार लगने के संकेत हैं. सुनते हैं कि इस दफे सीडी नहीं सीडियां निकलने वाली है. बीते पांच सालों में नेताओं ने जनता के बीच रहकर राजनीतिक जमीन की जितनी सिंचाई नहीं की है, उससे ज्यादा अपने प्रतिद्वंदियों की हरकतों पर निगरानी की है. मंत्री से संत्री तक रडार पर हैं, तो विपक्षी नेताओं की हरकते भी कैमरे पर कैद हैं. राज्य में सीडी और सियासत का यह पहला प्रयोग है भी नहीं. पिछली सरकार में आई एक सेक्स सीडी सीबीआई जांच तक जा पहुंची थी. फिलहाल सीडी का शोर जोर का है. देखते हैं कितनों की कलई खुलती है..
कांग्रेस की टिकट
कांग्रेस के एक बड़े नेता अक्सर कहते थे कि इस पार्टी में मौत और टिकट का कोई भरोसा नहीं. बीजेपी जहां 85 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार चुकी हैं, वहीं कांग्रेस मंथन में जुटी रही. टिकट को लेकर पार्टी में खूब कचकच हुआ. रायपुर में बैठकों के कई दौर खत्म हुए. दिल्ली दरबार भी सजा. इन बैठकों से ही कैंडी क्रश की सियासी तस्वीर बाहर आई. बयानों का खूब दौर चला. बहरहाल, जितनी बड़ी पार्टी उतने ज्यादा दावेदार. दावेदारों की भीड़ ज्यादा थी, ज्यादा बैठके होनी ही थी. दिल्ली में हुई बैठक से एक चर्चा बाहर आई, कहा गया कि निगम, मंडल और आयोग में जिन विधायकों को कुर्सी दी गई, उनमें से ज्यादातर का पत्ता काट दिया जाएगा. चंद चेहरे होंगे, जिनके नसीब में टिकट लिखी होगी. यह एक तरह का नया फार्मूला दिखता है, मगर कहते हैं कि फार्मूले से ज्यादा कांग्रेस के भीतर पसरी हुई गुटबाजी का नतीजा है. नेताओं में सरहदें खींच गई हैं. सभी जानते हैं कि निगम,मंडल, आयोग में किस खेमे के विधायक काबिज रहे. सूबे में कांग्रेस मजबूत है. अब सवाल उठ रहा है कि इस मजबूती को टिकट वितरण कमजोर ना कर दे.
‘सियासत के राम’
पूर्व मुख्यमंत्री डाॅक्टर रमन सिंह समेत राजनांदगांव जिले की विधानसभाओं के बीजेपी प्रत्याशियों का नामांकन दाखिल करने गृहमंत्री अमित शाह और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजनांदगांव आ रहे हैं. नामांकन दाखिल करने के बाद एक सभा भी होगी. अमित शाह ने छत्तीसगढ़ चुनाव का प्रबंधन अपने हाथ ले रखा है. शाह की मौजूदगी समझ आती है, मगर योगी आदित्यनाथ रमन सिंह के ‘लकी चार्म’ की तरह लगते हैं. 2018 के चुनाव के वक्त भी योगी आदित्यनाथ रमन के नामांकन दाखिले के लिए राजनांदगांव पहुंचे थे. तब उन्होंने राज्य की सियासत में ‘राम’ की एंट्री कराई थी. अब राज्य की सियासत का आधार ही ‘राम’ है. तब सियासी ‘राम’ सिर्फ बीजेपी के थे, अब कांग्रेस के भी हो गए हैं. बीजेपी के ‘श्री राम’ हैं, कांग्रेस के ‘सियाराम’. सियासत में ‘राम’ के महत्व को देशभर में कांग्रेस की किसी सरकार ने बखूबी समझा, तो वह राज्य की भूपेश सरकार ही रही.
आयोग का डंडा
आचार संहिता लगने के तीसरे दिन ही चुनाव आयोग ने दो जिलों के कलेक्टर और तीन जिलों के एसपी समेत दो एडिशनल एसपी पर डंडा चला दिया. तत्काल हटाने का फरमान सुनाया गया. नई पोस्टिंग के लिए आयोग ने तीन-तीन नाम का पैनल मंगाया. कलेक्टरों के लिए दो अलग-अलग पैनल भेजे गए थे. बिलासपुर के पैनल में भीम सिंह, यशवंत कुमार और रितेश अग्रवाल का नाम था. रायगढ़ के पैनल में सारांश मित्तर, कार्तिकेय गोयल और अवनीश शरण का नाम भेजा गया था, लेकिन चुनाव आयोग ने एक ही पैनल से नाम चुन लिया. अवनीश बिलासपुर और कार्तिकेय रायगढ़ के कलेक्टर बना दिए गए. इस बदलाव में सबसे दिलचस्प नाम रामगोपाल गर्ग का रहा. सरगुजा में प्रभारी आईजी की हैसियत से काम कर चुके गर्ग को पहले राज्य शासन ने रायगढ़ डीआईजी बनाया और अब चुनाव आयोग ने दुर्ग का एसपी. कई जिलों के एसपी नीचे काम करते थे, जाहिर है थोड़ा मलाल तो होगा ही. इधर जितेंद्र शुक्ला कोरबा और मोहित गर्ग राजनांदगांव एसपी बनाए गए. एक वक्त ऐसा भी आया था जब जितेंद्र शुक्ला प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते थे. हालांकि कलेक्टर-एसपी को हटाने का मसला यहां खत्म होता नजर नहीं आ रहा. संकेत हैं कि चुनाव आयोग आने वाले दिनों में कुछ और अफसरों पर भी अपनी नजरें इनायत करेगा.
होड़
चुनाव आयोग की फुल बेंच जब रायपुर आई थी, तब बीजेपी ने आधा दर्जन कलेक्टरों और एसपी के साथ मंत्रालय-पीएचक्यू के अफसरों को हटाने की मांग की थी. इस आरोप के साथ कि ये सब अफसर कांग्रेस के एजेंट के रुप में काम कर रहे हैं. दो जिलों के कलेक्टर, तीन जिलों के एसपी समेत अन्य अफसरों को हटाने के पीछे का आधार इसे ही बताया जा रहा है. कुछ अफसर हटाए गए. कुछ नए लाए गए. मगर अब बीजेपी के भीतर इसे लेकर क्रेडिट लेने की होड़ मच गई है. 24 अगस्त को बीजेपी ने जब चुनाव आयोग की फुल बेंच के सामने शिकायत रखी थी, तब शिकायत करने वालों में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, सांसद सुनील सोनी और कार्यालय प्रभारी नरेशचंद्र गुप्ता थे. मगर सुना जा रहा है कि संगठन में मैसेज देने के इरादे से कई और नेता है, जो क्रेडिट लेने की होड़ में जुट गए हैं. बीजेपी में इसे लेकर मामला गर्म हो चला है.
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