(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

ठाकुर का जलवा

मध्य प्रदेश की सियासत में बड़े ठाकुर साहब का जलवा 20 साल से हमेशा कायम रहा है। 15 साल से बड़े ठाकुर साहब अपने समर्थकों टिकिट दिलाने में हमेशा कामयाब रहे है। इस बार आलाकमान ने ठाकुर को साहब को ही मैदान में उतार दिया। ठाकुर साहब के चाहने वालों को लगा की ठाकुर तो गियो लेकिन ठाकुर साहब मंजे हुए खिलाड़ी ठहरे। कोच से खिलाड़ी की भूमिका में आने के बाद ठाकुर ने सही खेल दिखाया। ठाकुर साहब ने मैदान में आने के बाद विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दिया है। ठाकुर साहब न केवल अपने सर्मथकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे, बल्कि पार्टी के अंदर विरोधियों के टिकट काट कर उन्हें भी ठिकाने लगा दिया।

हमे तो अपनों ने लूटा

मध्य प्रदेश विधानसभा में एक मंत्री जी का टिकट कट गया। टिकट काटे जाने के पीछे की कहानी भी जबरदस्त है। दरअसल मंत्री जी के टिकट काटे जाने के पीछे एक केंद्रीय मंत्री की लॉबी ने पूरा काम किया। इन मंत्री को अपने साथ ही एक केंद्रीय मंत्री के बढ़ते कद ने परेशान कर दिया था। जिसके बाद इन्होंने दूसरे केंद्रीय मंत्री के कट्टर समर्थक मंत्री के खिलाफ स्थानीय बीजेपी के सभी दावेदारों को इकट्ठा कर ये भरोसा दिलवाया की अगर सिटिंग मंत्री का टिकट काटा जाएगा, तो सभी दावेदार जिसे टिकट मिलेगा उस चेहरे के साथ में होंगे, आखिरकार यह दांव सफल रहा।

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मंत्री नहीं बनने का अब तक दर्द, निपट गए नेताजी

कांग्रेस के अंदर टिकट को लेकर नेताओं के बीच जबरदस्त खींचतान देखने को मिली, लेकिन ग्वालियर-चंबल में एक बड़े नेता कमलनाथ सरकार में मंत्री नहीं बनाने से इतने नाराज थे की उन्होंने इस बार चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। लिखित चुनाव लड़ने से इनकार के बाद नेताजी को बुलाया गया और समझाया गया एक बार चुनाव लड़ लें फिर नेताजी ने अपने सही वक्त को भापते हुए बड़े नेताओं के सामने दो सीट देने की पेशकश कर दी। काफी मंथन के बाद नेताजी को दोनों टिकट दिए गए, जिसमें से एक उन्होंने अपने करीबी को दिलाया और दूसरा अपने पास रखा, लेकिन मंत्री नहीं बनाने की लड़ाई में बीजेपी से कांग्रेस में आए एक नेता जी निपट गए।

नो-ड्यूज में जुटे रहे नेता

दिल्ली में बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के ठीक पहले दिनभर प्रदेश में नो-ड्यूज का दौर चलता रहा। राजधानी भोपाल से लेकर प्रदेश के कई जिलों में मजबूत दावेदार बिजली-पानी से लेकर अन्य पेंडिंग बिल नो-ड्यूज कराते रहे। बिल जमा करने के लिए ऐसे दावेदारों कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई। साथ ही बैंकिंग खानापूर्ति भी पूरी की। साहब अब टिकट मिले न मिले, इस बात की भी चिंता थी क्योंकि उनका नाम था ही नहीं खैर आखिरकार नेताजी ने राहत की सांस ली उनका टिकट जो फाइनल हो गया, नेताजी उत्तर से दक्षिण में आ गए है।

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दक्षिणायन का सता रहा है डर

राजधानी भोपाल में मध्य विधानसभा से दावेदारी ठोक रहे दावेदार करीब 6 महीने पहले दक्षिणायन हो गए थे। करीब आधा दर्जन नेताओं ने 6 महीने तक जमीन पर काम कर खुद को पहले की अपेक्षा अधिक मजबूत कर लिया है। अब हालात ऐसे हैं कि ये दावेदार चुनाव न भी लड़े तो कम से कम 2-5 हजार वोट झटकने की हैसियत में पहुंच चुके हैं। अब टिकट वितरण में पार्टी को डर ये सता रहा है कि टिकट मिलने के बाद पर दूसरे-तीसरे-चौथे नेताजी वोट कटिंग कर सकते हैं।

चर्चा जोरों पर है

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस को सत्ता में वापसी की पूरी उम्मीद है। टिकट वितरण के बाद हालात कुछ और नजर आ रहे है। टिकट वितरण से पहले तमाम सर्वे कांग्रेस के पक्ष में थे, लेकिन टिकट वितरण के बाद कांग्रेस में मचे असंतोष ने पार्टी की मुश्किलें खड़ी कर दी है। बची कसर बड़े नेताओ की कुर्ता फाड़ सियासत ने पूरी कर दी। प्रदेश में बढ़ते असंतोष के बीच कांग्रेस ने तीन सीटों पर उम्मीदवार भी बदले। ऐसे में चर्चा जोरों पर है कि अगर असंतोष नहीं थमा तो कांग्रेस कुछ सीटों पर और उम्मीदवार बदल सकती है।

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