रायपुर. पं. जवाहर लाल नेहरु स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से सम्बद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने छाती से सम्बन्धित “काइलोथोरेक्स” की जटिल सर्जरी करके पिथौरा, महासमुंद स्थित भरवामुड़ा गांव के एक 34 वर्षीय युवक को जीवन दान दिया.मरीज अभी स्वस्थ्य होकर डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है.एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व में हुये इस जटिल सर्जरी की खास बात यह रही कि पेट से छाती तक जाने वाली नली से लगातार स्त्रावित हो रहे दूधिया द्रव (काइल) के कारण खराब हो चुके फेफड़े को पूरी तरह बचा लिया गया.संभवतः राज्य के किसी भी चिकित्सालय में बड़े उम्र के लोगों में की जाने वाली “काइलोथोरेक्स” से सम्बन्धित यह पहली सफल सर्जरी है.

वन विभाग में पौधा लगाने का काम करने वाले 34 वर्षीय युवक की छाती में रोड ट्रेफिक एक्सीडेंट के दौरान चोट लग गई थी.चोट लग जाने के कारण छाती के अंदर से लगातार दूधिया रंग का द्रव “काइल” निकल रहा था.महासमुंद के जिला चिकित्सालय में दिखाने पर सर्जन ने भर्ती करने के बाद चेस्ट ट्यूब डाला.एक दिन में चेस्ट ट्यूब से डेढ़ से दो लीटर दूधिया द्रव का स्त्राव होता था.कुछ दिन बाद परिजन मरीज को वहां से एक निजी अस्पताल में ले गये.वहां एक सप्ताह भर्ती रहने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि छाती के अंदर की एक नली कट गई है लेकिन वे इलाज करने में असमर्थ हैं.इसी दौरान अपने परिचित की सलाह पर एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट लेकर आये.

डॉ. कृष्णकांत साहू ऑपरेशन को लेकर अनुभव बताते हुए कहते हैं कि जब मैंने देखा कि चार से पांच महीना पुराना केस है तो मुझे केस ज्यादा गंभीर लगा.मरीज अगस्त के दूसरे सप्ताह में अस्पताल में भर्ती हुआ और सभी जांच के बाद 14 अगस्त को ऑपरेशन करने का निर्णय लिया.मरीज का वजन 20 से 25 किलो तक घट गया था जिसे देखते हुए आईवीफ्लूड की सहायता से पैंरेंटल न्यूट्रिशियन देकर मरीज को आॅपरेशन के लायक फिट बनाया.

 एसीआई में राज्य की प्रथम काइलोथोरेक्स सर्जरी

 बड़े उम्र के लोगों की सफल सर्जरी का पहला केस

 

क्या है थोरेसिक डक्ट 

थोरेसिक डक्ट मानव शरीर की सबसे बड़ी लिम्फ नलिका है जिसके अंदर काइल नामक हल्का दूधिया रंग का तरल पदार्थ होता है जिसमें इमल्सीफाइड वसा और लिम्फ होता है.इन पोषक पदार्थों को हृदय तक पहुंचाने का कार्य थोरेसिक डक्ट करता है.किसी कारणवश थोरेसिक डक्ट के टूट जाने से प्लूरल केविटी (फुफ्फुसीय गुहा या जिसके अंदर फेफड़ा स्थित होता है) में काइल का रिसाव तेजी से होने लगता है जिसे चिकित्सकीय भाषा में ”काइलोथोरेक्स“ कहते हैं.चूंकि थोरेसिक डक्ट का कार्य पोषक पदार्थों का परिवहन करना है, अतः इसमें खराबी आ जाने के कारण शरीर को रक्त के माध्यम से मिलने वाला पोषक पदार्थ नहीं मिल पाता और तेजी से शरीर का वजन गिरने लगता है.

सर्जरी से पहले खिलाया आईसक्रीम 

डॉक्टर साहू के अनुसार दूधिया द्रव के लीकेज का पता लगाने के लिए मरीज को आॅपरेशन से एक घंटे पहले आइसक्रीम के साथ मेथिलीन ब्लू दिया गया था जिससे पता चल सके कि द्रव का लीकेज कहां से हो रहा है.ओटी में ले जाने के बाद दायें फेफड़े को खोला गया.फेफड़ा पूरी तरह से खराब हो गया था.दूधिया द्रव या काइल पूरी छाती में भर गया था जिसे साफ करके बाहर निकाला गया.जब काइल साफ हुआ तब समझ में आया कि छाती के अंदर थोरेसिक डक्ट में लीकेज है. थोरेसिक डक्ट को पहचान कर सामने लाया गया जो कि एक बहुत ही कठिन कार्य होता है क्योंकि थोरेसिक डक्ट इसोफेगस और एओर्टा के पीछे छिपा होता है और नली का व्यास 3 मिमी के आस-पास होता है.नली के लीकेज वाले पार्ट को सूचर से बांध दिया गया जिसे ”थोरेसिक डक्ट लाइगेशन“ कहा जाता है.लाइगेट करने के बाद लीकेज बंद हो गया अर्थात् काइल बहना बंद हो गया.उसके बाद यह टेस्ट किया गया कि फेफड़ा अभी भी काम कर रहा हैै कि नहीं? फेफड़ा पहले की तरह काम करना शुरू कर दिया था. ऑपरेशन के बाद मरीज को दो दिन तक वेंटिंलेटर पर रखा गया.उसके बाद उसकी स्थिति में सुधार आया.ऐसे केस में बीमारी की पुनरावृत्ति होने की संभावना ज्यादा रहती है इसलिए दुबारा परीक्षण करके देखा गया.ठीक होने के बाद मरीज को वसा युक्त भोजन दिया गया फिर दुबारा परीक्षण किया गया जिस पर पता चला कि डक्ट पूरी तरह ठीक है.इस प्रोसीजर को चिकित्सकीय भाषा में ‘थोरेसिक डक्ट लाइगेशन एंड डिकॉर्टिकेशन ऑफ राइट लंग्स’ कहा जाता है.

ये रही डॉक्टर्स की टीम 

डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी), डॉ. ओ. पी. सुंदरानी (निश्चेतना विशेषज्ञ), डॉ. रमेश (जूनियर रेसीडेंट-जनरल सर्जरी)