बिलासपुर- शहर में नवनिर्मित नगर घड़ी चौक में लगे तड़ित चालक को लेकर सियासत जोरों पर है. कांग्रेस पार्षद दल के प्रवक्ता शैलेंद्र जायसवाल ने इसे त्रिशूल बताते हुए भाजपा पर शहर का भगवाकरण करने का आरोप लगाया था.इस पर जवाब देते हुए भाजयुमो ने कहा है कि शैलेन्द्र जायसवाल का कम ज्ञान,कांग्रेस के लिए फज़ीहत है.भाजयुमो के रोशन सिंह ठाकुर और भाभा लाला ने विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि वो एक कहावत है ना कि “अधजल गगरी छलकत जाए” कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस के नवजात,बुद्धिहीन नेता शैलेंद्र जायसवाल का है, जिनके ज्ञान का तो भगवान को ही मालूम है, लेकिन दिखावे और खुद को बड़ा नेता साबित करने के लिए बोलना ज़रूरी है.
भाजयुमो नेताओं ने कहा कि मामला ऐसा है कि कल सूबे के मुखिया डाॅ.रमन सिंह जी तथा स्थानीय मंत्री अमर अग्रवाल जी ने शहरवासियों को “नगर घड़ी” समर्पित किया, जो अब शहर की नई पहचान है. उसमें हमेशा की तरह इन महाशय को खामियां नज़र आने लगी और खुद को बड़ा नेता साबित करने के लिए भिड़ गए सोशल मीडिया में कचरा फैलाने कि नगर घड़ी के उपर त्रिशूल लगा है.जो गलत है,भाजपा वाले इससे हिंदू धर्म का प्रचार कर रहें हैं वगैरह वगैरह.निगम की नेतागिरी करने वाले इन महाशय (शैलेंद्र जायसवाल) के ज्ञान का स्तर देखिए कि इन्हें यह तक मालूम नहीं है कि किसी भी बड़े तथा उंचाई वाले भवनों में आकाशीय बिजली के घात से बचाने “तड़ित चालक” लगाया जाता है जिससे उस भवन और आस-पास की सुरक्षा की जा सकें.
भाजयुमो नेताओं ने कहा कि खामी निकालने के लिए जब कुछ नही मिला तो अब उस तड़ित चालक को ही निशाने में लेकर हमेशा की तरह कुछ भी उल-जलूल शुरू. अब इतने अल्पज्ञानी को कांग्रेस ने अपने पार्षद दल का प्रवक्ता बना दिया है जो आज भी कांग्रेस भवन में दरी उठाने की मानसिकता से उपर नहीं उठ पाया है,ये तो पार्टी की फज़ीहत ज़रूर कराएगा ही. खैर दूसरी पार्टी की मदद से पार्षद बनें शैलेंद्र को सलाह है कि जितना समय वो इन आधारहीन विषयों को मुद्दा बनाने में समय जाया करते है, उतना समय अपने वार्ड में दे दें तो शायद वार्डवासियों का भला हो जाए.
भाभा लाला ने शैलेन्द्र पर तंज कसते हुए कहा कि शैलेंद्र जायसवाल को आखिर त्रिशूल से दिक्कत ही क्या है? त्रिशूल उन्हें ही क्यों इतना चुभ रहा है! यह समझ से परे है.बल्कि उन्हें तो खुश होना चाहिए कि आस्था और सम्मान का प्रतीक त्रिशूल नगर घड़ी का गौरव बढ़ा रहा है.लेकिन पूरे कांग्रेसियों को तुष्टीकरण की राजनीति की आदत सी हो गई है.जब से आधारशिला से अपना आधार खत्म करके पैराशूट के गोद में बैठे हैं, तब से बयानवीर बनने का शौक चढ़ा है.आखिर शैलेंद्र जायसवाल के हिसाब से त्रिशूल की जगह क्या होना चाहिए?