गुरदासपुर. फसल के अवशेष को बिना आग लगाए संभालने की बड़ी चुनौती को हल करने के लिए गुरदासपुर के एक युवा परमिंदर सिंह ने बड़ी पहल की है। उक्त युवक एक ऑटोमोबाइल वर्कशॉप का मालिक और इंजीनियर है जहां कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद उसने पराली को प्रोसैस कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करने का प्रयास किया है।

परमिंदर सिंह ने कहा कि इस पहल से जहां मिट्टी, वायू और जल प्रदूषण से बचा जा सकेगा, वहीं राज्य सरकार व किसानों को भी फायदा होगा क्योंकि पराली जो आज किसानों के लिए समस्या बन गई है, आय का एक अच्छा स्रोत बन जाएगी।

 उन्होंने कहा कि बेशक वह खुद खेती नहीं करते लेकिन किसानों की जरूरत और मजबूरी को समझते हैं। इसलिए उन्होंने पिछले 5 सालों में पूरी लगन से काम किया है और बची हुई पराली का इस्तेमाल कर अपने स्तर पर कई चीजें बनाई हैं। परमिंदर ने इस काम के लिए मशीनें भी तैयार की हैं। इन मशीनों का उपयोग कर पराली से डाऊन सीलिंग पैनल व टाइलें बनाई जाती हैं। इन पैनलों और टाइलों का उपयोग अस्पतालों, बड़ी इमारतों, कार्यालयों आदि में किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने पराली से पैकेजिंग उत्पाद भी विकसित किए हैं लेकिन उनका मुख्य लक्ष्य पराली से बनी टाइल्स को बड़े पैमाने पर बाजार में लाना है। इस काम के लिए उन्हें एक बड़ी इंडस्ट्री की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि बाजार में उपलब्ध जिप्सम टाइल्स की तुलना में पराली से बनी टाइल्स काफी मजबूत और बेहतर होती हैं। खास बात यह है कि पराली से बनी टाइलें वॉटरप्रूफ होने के साथ ही हीटप्रूफ भी हैं। इस काम को बड़े पैमाने पर ले जाकर पराली से बनी टाइल्स को दुबई जैसे देशों में एक्सपोर्ट किया जा सकता है। वहीं जो उत्पाद तैयार किए हैं, उनका परीक्षण भी किया जा चुका है और खास बात यह है कि जिन राज्यों में गर्मी ज्यादा होगी, वहां पराली से बनी टाइल्स व पैनल की मांग भी ज्यादा होगी।परमिंदर ने कहा कि जिप्सम टाइल्स काफी महंगी हैं और अगर मिट्टी जैसी जिप्सम टाइल्स अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिक सकती है तो पराली से बनी टाइल्स क्यों नहीं बिकेंगी। इस तरह का उद्योग अब तक पूरे भारत में मौजूद नहीं है और इसलिए उन्होंने अपने उत्पादों के लिए ट्रेडमार्क और पेौंट के लिए भी आवेदन किया है।