प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति किसी वयस्क व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी भी स्थान पर जाने और अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने या फिर अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने से नहीं रोक सकता है. क्योंकि ये अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 से के तहत आता है.
न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने एक वयस्क महिला को उसके चाचा के घर भेजने के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट की भी आलोचना की. दरअसल करीब एक साल की एक महिला ने अप्रैल 2024 में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार अपनी मर्जी और इच्छा के अनुसार अपनी पसंद के एक वयस्क व्यक्ति से विवाह किया था. जिसके संबंध में तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड ने विवाह प्रमाण पत्र भी जारी किया था. महिला द्वारा शादी करने के फैसले से उसके चाचा खुश नहीं थे.
महिला के चाचा ने दर्ज कराई थी एफआईआर
महिला के चाचा ने उसके पति के खिलाफ धारा 363 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज कराई. इसके बाद, पुलिस ने न केवल उसके पति को गिरफ्तार किया, बल्कि महिला को भी हिरासत में लेकर उसके चाचा को सौंप दिया. पुलिस ने जब महिला को धारा 164 सीआरपीसी के तहत उसका बयान दर्ज कराने के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, तो उसने स्पष्ट रूप से कहा कि उसने याचिकाकर्ता से अपनी मर्जी से शादी की है और उसके पति को इस मामले में झूठा फंसाया गया है.
कोर्ट ने कहा किसी बालिग को साथ रहने से नहीं रोक सकते
महिला ने यह भी आशंका जताई थी कि उसे मार दिया जाएगा क्योंकि उसके चाचा उसे धमका रहे थे. इसके बावजूद, संबंधित मजिस्ट्रेट ने उसे उसके चाचा के घर भेजने का निर्देश दिया. एफआईआर को चुनौती देते हुए, याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया. इस पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और उन्हें साथ रहने या शादी करने का अधिकार है.
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