वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में सुनवाई के दौरान माना कि मौत से पहले दिए गए बयान पर भरोसा किया जा सकता है। वहीं, इसके लिए शर्त है कि मरीज को डॉक्टर ने फिटनेस प्रमाण पत्र दिए हो कि वह बयान देने के लिए फिट है। साथ ही मरीज का बयान कार्यकारी मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में दर्ज होगा। इस टिप्पणी के साथ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने 18 वर्षीय लड़की को जलाकर मार डालने के लिए दो लोगों की सजा को बरकरार रखा है।
बता दें कि 16 अगस्त 2020 की रात बलौदा बाजार जिले के सुहेला में गंगा यादव की जलने से मौत हो गई थी। मामले में कहा गया कि यादव समाज भवन में हुए विवाद के बाद अजय वर्मा ने गंगा को आग लगा दी थी। वर्मा और सह-आरोपी अमनचंद रौतिया को बलौदा बाजार-भाटापारा ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोनों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
अभियोजन पक्ष की दलीलों का केंद्र गंगा का मृत्यु पूर्व बयान था, जिसे कार्यकारी मजिस्ट्रेट अंजलि शर्मा ने डॉ. दीपिका सिन्हा द्वारा यह प्रमाणित किए जाने के बाद दर्ज किया था। अपनी मौत से पहले बयान में गंगा ने कहा कि अजय वर्मा ने उस पर मिट्टी का तेल डाला और उसे आग लगा दी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि डॉ. सिन्हा के हस्ताक्षर वाले मृत्युपूर्व बयान ने रिकॉर्डिंग के दौरान उसकी मौजूदगी की पुष्टि की और उस समय गंगा के बोलने की क्षमता का समर्थन किया।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि एक ‘मरता हुआ आदमी शायद ही कभी झूठ बोलता है’ या दूसरे शब्दों में ‘सत्य मरते हुए आदमी के होठों पर होता है’। पीठ ने फोरेंसिक सबूतों का भी हवाला दिया कि जिसमें जले हुए कपड़े और केरोसिन के निशान वाली एक बोतल की बरामदगी शामिल है। हाईकोर्ट ने आरोपियों और बचाव पक्ष की दलीलों को खारिज कर दिया।
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