Relay cropping system Advantages : परंपरागत खेती के साथ ही किसान भाई सब्जियों की खेती कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं. ऐसे में किसान बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए रिले क्रॉपिंग सिस्टम को अपना सकते हैं. रिले क्रॉपिंग प्रणाली एक ऐसी तकनीक है. जिसके जरिये एक ही जमीन पर अलग-अलग सब्जियों की खेती की जा सकती है.

यह खेती की ऐसी खास तकनीक है. जिसको अपनाकर किसान अधिक पैदावार के साथ ही अपनी आमदनी में भी इजाफा कर सकते हैं. रिले क्रॉपिंग प्रणाली एक मल्टी क्रॉपिंग प्रणाली है. सब्जियों की मल्टी क्रॉपिंग खेती से अधिक उपज मिलती है. 

क्या है रिले क्रॉपिंग सिस्टम तकनीक (Relay cropping system Advantages)

रिले क्रॉपिंग (Relay Cropping) एक कृषि तकनीक है जिसमें दो फसलों की बुवाई और कटाई एक साथ या एक के बाद एक की जाती है ताकि संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके. इस प्रणाली में, पहली फसल की कटाई से पहले ही दूसरी फसल को बो दिया जाता है. इसके परिणामस्वरूप, दूसरी फसल को पहली फसल की कटाई से पहले ही कुछ नमी और पोषक तत्व मिल जाते हैं, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है.

रिले क्रॉपिंग सिस्टम तकनीक के फायदे

सब्जियों की मल्टीक्रॉपिंग खेती से अधिक उपज प्राप्त होती है. मल्टीक्रॉपिंग खेती से किसान की आय बढ़ सकती है. इस तकनीक को अपनाने से सालभर रोजगार प्राप्त किया जा सकता है यानी सालभर कमाई होगी. इस तकनीक को उपयोग में लेने से अधिक मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है. उर्वरक का संतुलित मात्रा में उपयोग होता है. फसल चक्र के माध्यम से मृदा को बनाए रखा जा सकता है. इस तकनीक से पानी की बचत के साथ ही मिट्‌टी की उर्वरता शक्ति को बनाए रखा जा सकता है. इस तकनीक से बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है, हालांकि फसल की अच्छी पैदावार किस्म का चयन, उचित बुअाेई का तरीका, संसाधनों का सही उपयोग, कीट प्रबंधन, समय पर कटाई जैसी बातों पर भी निर्भर करती है.

रिले क्रॉपिंग सिस्टम इन सब्जियों की करें खेती

ककड़ी और मिर्च : इस प्रणाली में नवंबर से मार्च और फरवरी से अक्टूबर में दो बार बुआई की जाती है. मिर्च फरवरी में मेड़ों पर लगाई जाती है.

मटर-लौकी : इस सिस्टम के तहत नवंबर से अप्रैल और फरवरी से अक्टूबर के बीच की जाती है. और फरवरी में तैयार क्यारियों के दोनों ओर 2.5 मीटर और 45 सेंमी. की दूरी पर पौधों की रोपाई की जाती है.

ककड़ी और लौकी : इस सिस्टम के तहत इन दो सब्जियों की खेती नवंबर से अप्रैल और मार्च से अक्टूबर के बीच की जाती है. यहां ध्यान देने वाली बात होगी कि मार्च में ककड़ी में तैयार पानी मेड़ों के वैकल्पिक किनारे पर 3 मीटर की दूरी पर लौकी लगाई जानी चाहिए.

आलू-प्याज : सितंबर से दिसंबर, दिसंबर से मई और जून-जुलाई में इन्हें लगाएं.

आलू- फूलगोभी-मिर्च : इन्हें अक्टूबर से दिसंबर, दिसंबर से मार्च, और मार्च से अक्टूबर में लगाया जा सकता है. 

आलू-भिंडी-फूलगोभी : इन्हें भी नवंबर से फरवरी, मार्च से जुलाई और जुलाई-अक्टूबर तक के लिए लगाएं.