अभिषेक सेमर, तखतपुर। बिलासपुर जिले का तखतपुर आजादी के बाद से लेकर क्षेत्र में राजनीतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, शिक्षा, खेल कूद जैसे समावेशी क्षेत्र में अग्रणी रहा है. लेकिन दौर बदलते चले गए पर विकास का मॉडल सिकुड़ता चला गया. यहां से कई ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (फ्रीडम फाइटर) निकले. जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ो आंदोलन और भारत से अंग्रेजी हुकूमत को वापस भेजने के लिए अपनी खून और जान की बलिदान दी है. इसे भी पढ़ें : सांसद और विधायक के पत्रों पर हमलावर कांग्रेस को सीएम साय के मीडिया सलाहकार पंकज कुमार झा ने दिया करारा जवाब, कहा- मंथरा की तरह कुचक्र रचते रहने से…

इसके अलावा राजनीतिक दल में बहुत सी हस्तियों ने अपना विशेष योगदान तखतपुर क्षेत्र को दी है. वहीं तखतपुर क्षेत्र में सर्वाधिक बार विधायक, सांसद मनहरण लाल पांडेय ने अविभाजित मध्य प्रदेश में मंत्री भी रहे हैं. इसके बावजूद भी तखतपुर की विकास की गति में कदमताल ना कर पाना आज लोगों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. अब तक लोगों का सपना यही था कि वह अपने जीवनकाल में क्षेत्र में रेल देख सके, लेकिन शायद यह आने वाली पीढ़ी के लिए भी सपना ही रहेगा. हकीकत के लिए अभी दिल्ली दूर है.

यदि क्षेत्र में रेलवे की सुविधा होती तो क्या होता, रेल होता तो यहां से लोग किसी प्रदेश या देशभर में लंबे दूरी की यात्रा कम पैसे में कर सकते थे. लोगों को किसी जगह की यात्रा करने के लिए यहां से बिलासपुर या रायपुर का मुख नहीं देखना पड़ता. बल्कि यहीं से अपनी यात्रा का प्रारंभ कर आनंद ले सकते थे. लेकिन अभी रेलवे की यात्रा करने के लिए उन्हें यहां से 30 किलोमीटर बिलासपुर और 80 किलोमीटर भाटापारा तथा 120 किलोमीटर दूर रायपुर दूर जाने को मजबूर होना पड़ता है. इससे रेलवे की यात्रियों को दोहरा नुकसान का सामना करना पड़ता है.

पहले तखतपुर से बिलासपुर भाटापारा रायपुर जाने के लिए सड़क मार्ग से उन्हें किराया चुकाना पड़ता है. उसके बाद रेलवे में सफर करने के लिए रेलवे में किराया देना पड़ता है. अगर यह तखतपुर में रेलवे होती तो एक खर्चे में ही सीमित हो सकता था. इसके अलावा छोटे-छोटे गांव जैसे उस्लापुर से सकरी, काठाकोनी, देवरी, खमरिया, जरौंधा, जरहागांव, दशरंगपुर, धरमपुरा, गिद्धा, मुंगेली, फास्टरपुर, कुंडा, पंडरिया, कवर्धा, तमाम स्टेशन के यात्रियों के अलावा स्थानीय स्तर पर रोजगार ऑटो रिक्शा टैक्सियों को रोजगार छोटे-मोटे सब्जी बाजार वालों को रोजगार क्षेत्र में बड़े उद्योग की स्थापना जैसी तमाम सुविधाएं मिल सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं होने से लोगों को निराशा मिल रही है.

इसके अलावा भी रेलवे की जमीन पर हो रहे कब्जे से भी रेलवे को मुक्ति मिल सकती थी. यदि रेलवे इन क्षेत्रों पर प्रस्ताव लेकर आए भी तो सालों से काबिज और कुंडली मार के बैठे कब्जाधारी रेलवे को आदेश को खारिज कराने और इस प्रस्ताव को कैंसिल कराने के लिए पूरी ताकत से भी कोर्ट या इधर-उधर से भी अपना एप्रोच लगा सकते हैं. इससे तखतपुर अपने विकास से भी कोसों दूर नजर आ रहा है.

अंग्रेज होते तो मिल जाती रेलवे की सौगात..

अंग्रेज तो भारत छोड़कर चले गए. लेकिन रेल का विस्तारीकरण अब भी कुछ इलाकों में बचा हुआ है. रेल लाइन का इंतजार कर रहे रेल यात्रियों के लिए एक बुरी खबर यह है कि तखतपुर क्षेत्र में रेल लाइन का विस्तारीकरण अंग्रेजों के जमाने में होने वाला था, लेकिन वह सपना अब तक अधूरा बना हुआ है. उम्मीद लगाई जा रही थी कि देश भर में रेल विस्तारीकरण हर क्षेत्र जिला एवं शहर की तरफ बढ़ते चले गया और उसका जाल भी इसी के साथ भारतीय रेलवे के द्वारा बिछाया गया.

लेकिन 75 साल बीत जाने के बावजूद रेल लाइन की पटरी का एक कदम भी बिलासपुर से तखतपुर की तरफ नही बढ़ा है. जबकि बिलासपुर से तखतपुर होते हुए कवर्धा और डोंगरगढ़ रेल लाइन को जोड़ने को लेकर चर्चाएं सुर्खियां बटोरती जरूर रही हैं. पिछले दो दशकों से इस क्षेत्र में रेल की विस्तारीकरण को भी लेकर चुनावी मुद्दा लोकसभा चुनाव में जरूर बनाया गया, लेकिन उसे पर अमलीजामा अब तक नहीं पहनाया जा सका है.

75 बरस बाद भी तखतपुर को रेल लाइन विस्तारीकरण की नहीं मिली सौगात..

आजादी के 75 साल होने के बाद भी अब तक तखतपुर को रेल लाइन की सौगात नहीं मिल पाई है, जबकि 2016 के बजट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ने रेल बजट में उस्लापुर से कवर्धा होते हुए डोंगरगढ़ तक की स्वीकृति दी थी, लेकिन अब तक कार्य प्रारंभ नहीं हो सका है, और ना ही आने वाले सालों में भी कार्य शुरू होने की कोई सुगबुगाहट है!

इसके लिए जिम्मेदार कौन है, जबकि तखतपुर की आवाम ने भाजपा और कांग्रेस दोनों पर ही अपनी तक़दीर अजमा चुकी है, केंद्र और राज्य सरकार पर उम्मीद की निगाह टिका बैठी है. चुनावी सरगर्मी में जनप्रतिनिधियों के इशारों पर रेलवे के अधिकारी बीच-बीच में सर्वे को लेकर एक आभामंडल जरूर तैयार करते हैं. लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म हो जाता है यह उल्टे पांव वापस लौट जाते हैं.

दरअसल हम बातचीत कर रहे हैं बिलासपुर जिले के बड़े आबादी वाले नगर तखतपुर क्षेत्र की जो की बिलासपुर से छोटे स्टेशनों से होते हुए तखतपुर और यहां से मुंगेली, लोरमी, पंडरिया, कवर्धा, होते हुए डोंगरगढ़ रेल लाइन विस्तारीकरण की. रेलवे की जमीन इन क्षेत्रों में पर्याप्त चिन्हित है लेकिन अब तक रेलवे के द्वारा इसकी शुरुआत नहीं की गई है. मालूम हूं कि 2014 में लखन लाल साहू बिलासपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर आए उन्होंने भी रेल की पटरी और रेलवे की विस्तारीकरण को लेकर सपना दिखाया था. कम मूवी हुआ भी 2016 के बजट में इस रेल लाइन की बजट में स्वीकृति मिली.

कुछ सर्वे का काम भी इस क्षेत्र में हुआ, लेकिन ऐन केन प्रकारण हवाला देकर चल गया 2018 में फिर छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार आ गई तो यह तो कह दिया रेलवे के द्वारा कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच संबंध में स्थापित नहीं हो पाने की कारण जमीन अधिग्रहण जैसी तमाम अनुमति राज्य सरकार से नहीं मिल सकी तो वहीं राज्य सरकार कहती रही कि हम इसके लिए तैयार हैं किंतु केंद्र से कोई पहल नहीं हो रही की हम इसके लिए तैयार हैं किंतु केंद्र से कोई पहल नहीं हो रही है. इस तरह 2018 से 2023 तक यह प्रकरण पूरे ठंडा बस्ती में पड़ा रहा. 2019 में बिलासपुर लोकसभा सीट से अरुण साहब ही इन्हीं मुद्दों को लेकर चुनाव जीते थे.

अरुण साव ने भी बड़े-बड़े सपने दिखाए की इस क्षेत्र से होकर डोंगरगढ़ जाएगी. पर इस मुद्दे पर भी कोई पहल नहीं किया. जबकि अरुण साव लोकसभा सदन में बाकायदा इन विषयों को प्रमुखता से उठाया था. रेलवे की अधिकारी इस पर काम करने के लिए डीपीआर बनाने का हवाला देकर समय को अपने हाथों में मसलते हुए गुजार दिए. आप 2024 के चुनाव के बावजूद भी बजट पेश हुआ इस पर भी रेलवे प्रबंधक के द्वारा किया है कहकर भी पुरानी डीपीआर और पुरानी पुस्तकों को खारिज कर दिया. बिलासपुर से उसलापुर तखतपुर होते हुए डोंगरगढ़ रेल लाइन पर कोई प्रस्ताव नहीं बनाया गया है. लिहाजा आने वाले सालों में भी कोई प्रयास होता हुआ भी नजर नहीं दिखाई देगा.

इससे तो यह साफ है कि इस क्षेत्र के लोग जो उम्मीद लगाए बैठे थे कि रेलवे उनके क्षेत्र से होकर गुजरेगी. छोटे व्यापारियों और कहीं ना कहीं रेल यात्रा से तखतपुर से मुंगेली कवर्धा को जोड़ा जाएगा जिससे शहर का विकास इन क्षेत्रों पर हो सकेगा लेकिन राजनीतिक दांव पेज और प्रशासनिक उठा पठक के बीच तखतपुर रेल लाइन का विस्तारीकरण भेट चढ़ गया रेलवे केंद्र सरकार की अधीन है, जब बजट ही नहीं बनेगा तो लोगों को खुली आंखों से सपना ही देखना पड़ेगा. जबकि तखतपुर और मां की जगह क्षेत्र पर रेल की शुरुआत होगी तो छोटे-छोटे गांव और बाकी अन्य क्षेत्र पर भी विकास हो पाता और लोगों को बड़ी सुविधा मिल सकती थी लेकिन रेलवे का रवैया साफ है कि अब रेलवे इस क्षेत्र में आने वाले दशकों कों भी आने वाले दसको में भी नजर नहीं आएगा.

यदि किसी प्रस्ताव में पारित हुआ भी यदि डीपीआर तैयार हुआ भी तो उसे अमेजॉन पहनने के लिए कम से कम 2 दशकों का समय लग सकता है रेलवे समय-समय पर इन क्षेत्र पर सर्वे जरूर कराती है. और जब सर्व होती है तब व्यापारी जो अभी रेलवे की जमीन पर खुटा गाड़ के बैठे हैं और उनके भी दिल की धड़कन तेज हो जाती है कि जैसे ही रेलवे के अधिकारी ठंड पड़ते हैं या व्यापारियों से मिलने मिलते हैं. उनके बाद व्यापारी भी चैन की सांस लेते हैं, इससे तो आप अंदाजा लगा सकते हैं, इससे तो आप अंदाजा लगा सकते हैं की क्षेत्र में रेलवे की जमीन पर कब्ज लगातार धड्डल्ले से चल रहा है, जिसको जहां जितनी जमीन मिल रहा है उतना वह काबिज होकर फल फूल रहा है.

लेकिन रेलवे के अधिकारियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है. रेलवे भी यह कहकर पल्ला झाड़ देता है कि इन कब्ज को हटाने को लेकर अभी कोई प्रस्ताव नहीं है. लिहाजा कोई भी रेलवे की जमीन पर कब्जा करें रेलवे को कोई फर्क नहीं पड़ता यह हम नहीं कह रहे हैं रेलवे का रवैया बयान हो रहा है. क्योंकि जितने भी कब्जाधारी लोग हैं वे अभी से नहीं बल्कि सालों से रेलवे की जमीन पर कुंडली मारकर बैठे हैं, जैसे कब्जा किया हुआ भूमि उनकी ही संपत्ति है. रेलवे भले ही आने वाले दिनों में कोई प्रस्ताव या योजना नहीं ले कम से कम अपने चिन्हांकित भूमि को बचाने की ठोस पहल करना चाहिए. नगर और क्षेत्र की लोग रेलवे के प्रयास और नेताओं के वादे को लेकर क्या सोच रहे हैं आखिरकार मोदी की गारंटी इस क्षेत्र के लोगों के सपनों को पूरा कर सकता है या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा.