पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. तमाम बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बावजूद भी शत प्रतिशत परिणाम कैसे लाया जा सकता है, ये गरियाबंद के बीहड जंगल में संचालित कुल्हाडीघाट हाई स्कूल के शिक्षकों से बेहतर भला कौन जान सकता है. वो भी उस स्थिति में जबकि जिले का दसवीं बोर्ड परिणाम प्रदेश में निरासाजनक रहा हो.

गरियाबंद का कुलाहाडीघाट हाई स्कूल प्रदेश के उन गिने चुने सरकारी स्कूलों में शामिल है. जहां का दसवीं बोर्ड का परिणाम अव्वल रहता है, इस स्कूल का नाम प्रदेश के उन 61 स्कूलों में भी शामिल है. जिसका 2016-17 का दसवीं बोर्ड का रिजल्ट शत प्रतिशत था. यहीं नहीं 2017-18 का रिजल्ट भी जिलेभर में अव्वल रहा, कुलाहडीघाट जैसे स्कूल के लिए ये उपलब्धि और भी बड़ी हो जाती है. क्योंकि यहां सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है, स्कूल बीहड जंगल में संचालित है, कोई शिक्षक यहां आना नहीं चाहता है. 2011 से यहां हाई स्कूल संचालित है, मगर अब तक एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई है. मीडिल स्कूल में पदस्थ एक और प्रायमरी स्कूल में पदस्थ दो शिक्षक ही मिलकर 8 साल से हाई स्कूल संचालित कर रहे है. ऐसे में बोर्ड का परिणाम शत प्रतिशत लाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है. स्कूल के प्रभारी प्राचार्य नागेन्द्र सिंह इसे साथी शिक्षकों और स्कूली बच्चों की मेहनत का नतीजा बता रहे है.

शिक्षकों की मेहनत का असर यहां के बच्चों की सोच पर साफ नजर आने लगा है, बच्चों में विश्वास है कि वे फेल नहीं होंगे बल्कि अच्छे अंकों से पास होंगे. यही नहीं इसके लिए वे अपने शिक्षकों की बात मानते है. स्कूल के आलाव घर पर भी होमवर्क करते है, जिला शिक्षा विभाग कुल्हाडीघाट को जिले के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बता रहा है. गांव के लोग भी शिक्षकों के कामकाज से काफी प्रभावित है, उन्हे विश्वास है कि इन शिक्षकों के रहते उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित है. बच्चें भी अपने शिक्षकों की तारिफ करते नहीं थक रहे है.

ऐसा स्कूल जो बीहड जंगल में संचालित हो, जिस स्कूल के खुलने से लेकर आज तक एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई हो, जहॉ केवल आदिवासी बच्चे पढ़ते हो उस स्कूल का दसवीं बोर्ड परिणाम शत प्रतिशत आना कोई मामूली बात नहीं है. यह वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों और पढ़ने वाले बच्चों की लगन का नतीजा तो है ही साथ उन शिक्षकों और बच्चों के लिए भी प्रेरणादायक है जो हमेशा सुविधाओं का रोना रोकर बेहतर परिणाम से कोसो दूर हो जाते है.