आशुतोष तिवारी, जगदलपुर. बस्तर दशहरे का आगाज हो चुका है और इसके साथ ही इस भव्य और ऐतिहासिक पर्व की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं, जो पूरे 75 दिनों तक मनाया जाता है. इस पर्व की सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक परंपरा है रथ परिक्रमा. इस वर्ष भी रथ परिक्रमा के लिए रथ निर्माण की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है. इस रथ पर दंतेश्वरी देवी का छत्र स्थापित कर पूरे शहर की परिक्रमा करवाई जाती है. इस बार 8 चक्कों वाला विजय रथ तैयार किया जा रहा है, जो लगभग 30 फीट ऊंचा होगा. इतने विशाल रथ को खींचने के लिए 400 से अधिक आदिवासी लोगों की मदद की जरूरत होती है.

बस्तर का यह दशहरा न सिर्फ स्थानीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध है. हर साल इसे देखने के लिए देश-विदेश से सैकड़ों पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं. पर्व के अध्यक्ष और ग्रामीणों की उपस्थिति में मंगरमुंही की रस्म अदायगी के साथ रथ निर्माण कार्य की विधिवत शुरुआत हो चुकी है.

इस रथ निर्माण की प्रक्रिया बेहद खास और अनोखी होती है. इसका पूरा काम विभिन्न स्थानीय गांवों के विशेष वर्गों के बीच बांटा गया है. रथ निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सरई की लकड़ियों को एक विशेष वर्ग के लोग जंगलों से लाते हैं और फिर बडेउमर और झाडउमर गांव के आदिवासी ग्रामीण 15 दिनों में इन लकड़ियों से विशाल रथ का निर्माण करते हैं. हर साल की तरह इस साल भी बस्तर दशहरा के लिए एक बेहद विशेष-विशाल रथ का पूरे उत्साह के साथ निर्माण किया जा रहा है.