विक्रम मिश्र, लखनऊ. दलित समाज के वोटबैंक की जब भी चर्चा होती है बसपा सुप्रीमो मायावती और उभरते हुए चेहरों में उनके भतीजे आकाश आनंद के अलावा आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण का ही नाम याद आता है. लेकिन हरियाणा चुनाव में इन दोनों के फ्लॉप शो और भाजपा की तीसरी बार सरकार बनाने के पीछे का बहुत गहरा समीकरण नजर आता है.
बसपा और आजाद समाज पार्टी दोनों युवा दलित नेता हरियाणा विधानसभा अपने स्थानीय गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में थे। जिसका परिणाम भी आ गया है.
मायावती के बाद सबसे ज्यादा आकाश की रैलियां हरियाणा में होती हैं. आकाश की रैलियों में यूपी लोकसभा में जिस तरह आक्रामक रवैय्या था ठीक वैसा ही रवैया हरियाणा में भी देखने को मिला।लेकिन तेवर का कोई फायदा नहीं मिल सका है.
शून्य से शिखर तक जाना है लेकिन?
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हरियाणा चुनाव में बसपा और आईएनएलडी के बीच हुए गठबंधन के तहत मायावती को हरियाणा चुनाव में लड़ने के लिए 37 सीट पर चुनाव लड़ रही थी. जबकि आईएनएलडी ने 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. लेकिन बसपा को मात्र एक दशमलव सात तीन फीसदी वोट बैंक का ही साथ मिला. हालांकि उम्मीद बहुत थी जबकि मायावती की रैलियों के साथ आकाश आनंद की रैलियों से भी ऐसा माना जा रहा था कि वहां युवा जुड़ेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
रावण का दावा भी फेल
दूसरे दलित नेता चंद्रशेखर की बात करें तो उनके साथ भी कयास थे कि वो कुछ सुरक्षित सीट पर कमाल कर सकते हैं. लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं हुआ. जेजेपी के साथ आजाद समाज पार्टी भी 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. लेकिन सिर्फ मैदान में ही चुनाव लड़ रही थी परिणाम में जनता ने इन्हें भी नकार दिया है.
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