विक्रम मिश्र, लखनऊ। सत्ता के साथ विपक्ष के खिलाफ बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार हमलावर रुख अख्तियार करती है। जबकि अपने सोशल हैंडल से अलग अलग विषयों पर ट्वीट भी कर जनता से अपील करती है। लेकिन उत्तर प्रदेश के 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले ही बसपा के टॉप लीडरों का अपने प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार नहीं करने जाना, बसपा को रेस से बाहर कर रहा है। हकीकत यह है कि बसपा की फौज बिना फौज के पार्टी बन गई है।

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पार्टी प्रमुख मायावती और नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद के बिना ही लड़ेगी। पार्टी के दोनों शीर्ष नेता उपचुनाव में अपने प्रत्याशियों के लिए प्रचार नहीं करेंगे। लल्लूराम डॉटकॉम को मिली जानकारी के मुताबिक सब कुछ जिला इकाइयों के भरोसे छोड़ दिया गया है। हालांकि, महाराष्ट्र और झारखंड में दोनों नेताओं के प्रचार के विकल्प खुले रखे गए है।

यूपी में सिमटती जा रही बसपा

कभी यूपी में मजबूत रही बसपा एक दशक से यूपी में सिमटती जा रही है। भले साल 2019 में बसपा के दस सांसद थे। 2024 लोकसभा के परिणामों को देखते हुए कहा जा सकता है कि वह गठबंधन का ही असर था। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा का केवल एक ही उम्मीदवार (उमाशंकर सिंह विधायक रसड़ा) जीत सका था।

उपचुनाव से दूर रहने वाली बसपा के लिए उपचुनाव ज़रूरी

2024 लोकसभा के चुनाव में जब कोर वोट बैंक भी खिसका तो बसपा ने उपचुनाव में उतरने का फैसला किया। जिससे कि फिर से सियासी माहौल अपनी तरफ किया जा सके। पार्टी ने प्रत्याशी भी तय किए। लेकिन अब यह तय हो गया है कि पार्टी अपने नेता के बूते नहीं बल्कि काडर की ताकत से ही लड़ेगी। दोनों नेता मायावती और आकाश आनंद उपचुनाव में प्रचार से दूर रहेंगे।

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शायद ये वजह होगी!

साल 2014 के बाद से ही यूपी में चुनाव दो ध्रुवों पर हो रहे हैं। इस बार भी इसके त्रिकोणीय होने की संभावनाएं कम ही दिख रही हैं। ऐसे में मायावती और आकाश आनंद को पीछे ही रखने का फैसला लिया गया है जिससे परिणामों को उनकी साख के साथ जोड़कर चर्चा न की जाए।