रायपुर. विधानसभा चुनाव की जीत सुनिश्चित करने के बाद कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियों में जुट गई है. इस चुनाव में  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की साख दांव पर रहेगी. विधानसभा की 68 सीट जीताने के बाद उसी प्रदर्श को दोहराने की चुनौती मुख्यमंत्री भूपेश पर है. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए भूपेश ने सभी 11 सीटों पर जीत का दावा किया है. बीजेपी ने अपने तीन कार्यकाल में 50 के करीब सीटें जीती और फिर लोकसभा की 11 में से 10 सीटें. अब 68 सीट जीतने वाली कांग्रेस से अपेक्षाएं पूरी 11 की 11 सीटें जीतने की हैं.
तो फिर कांग्रेस से ऐसे कौन से चेहरे होंगे जिनपर कांग्रेस दांव लगाएगी. क्या कांग्रेस नए चेहरों पर दांव लगाएगी. या फिर पुराने चेहरों को ही आज़माएगी. जिन्हें विधानसभा चुनाव में आज़माया गया. चूंकि सरकार का कामकाज अच्छा रहा है. सरकार ने लोक कल्याणकारी फैसले लिए हैं. लिहाज़ा कांग्रेस को इसका फायदा भी मिलेगा. कांग्रेस को बीजेपी के अंतर्कलह का फायदा भी होगा. तो बड़ा सवाल है कि ऐसी स्थिति में क्या नई लीडरशिप उभारने का मौका कांग्रेस भुनाएगी.
राहुल गांधी के दौरे के बाद टिकटों को लेकर मंथन का काम शुरु हो जाएगा. उससे पहले कई दावेदारों ने अपने ताकत की नुमाईश शुरु कर दी है. रायपुर से लोकसभा में टिकट की इच्छा रखने वाले मेयर प्रमोद दुबे ने प्रभारी पीएल पुनिया के सामने नारेबाज़ी करके अपनी दावेदारी ठोंक दी. कांग्रेस के धाकड़ नेता राजेंद्र तिवारी विधानसभा चुनाव से पहले ही लोकसभा चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा से आलाकमान को अवगत करा दिया है. रायपुर सीट के लिए गंभीर प्रयास पूर्व मेयर किरणमयी नायक भी कर रही हैं. उन्होंने हर वार्ड में अपनी टीमें सर्वे के काम में लगा दी हैं. इसी रायपुर की सीट पर बिल्डर शैलेंद्र वर्मा टिकट के ख्वाहिशमंद हैं. जबकि शैलेष नितिन त्रिवेदी और विकास उपाध्याय भी लोकसभा का टिकट कटाना चाहते हैं.
कांकेर सीट से महिला मोर्चा की अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम और नरेश ठाकुर स्वाभाविक दावेदार हैं. कई और दावेदार इस रेस में हैं. दक्षिण बस्तर से कर्मा फिर से अपने परिवार के लिए टिकट चाहता है. जबकि यहां से मंत्री न बन पाने वाले एक-दो विधायक भी दावेदारी ठोंक सकते हैं. बिलासपुर से अटल श्रीवास्तव का दावा टिकट कटने के बाद बनता है. इसी सीट पर वाणी राव भी लाबिंग कर रही हैं. कई साहू दावेदार भी उम्मीदवार बनना चाहते हैं. सरगुजा में रामदेव राम और मेयर डॉ अजय तिर्की टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं. हालांकि यहां टिकट मिलेगी उसे ही. जिसे टीएस सिंहदेव का समर्थन हासिल होगा. लेकिन अगर लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी ने अमरजीत भगत को पार्टी की कमान सौंप दी तो परिस्थियां कुछ और होंगी
जांजगीर से सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास अपने बेटे खुशवंत साहेब के लिए लगे हैं. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर कई और दावेदार हैं. पूर्व महिला विधायक पद्मा मनहर के अलावा कई दावेदार हैं जिन्हें विधानसभा की टिकट नहीं मिल पाई. लेकिन इस सीट का फैसले पर विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत की मुहर जरुरी है. कोरबा करीब-करीब तय है कि ज्योत्सना महंत ही चुनाव लड़ेगीं. बताया जाता है कि चरणदास मंहत के बाद कांग्रेस के पास उनके कद का कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं है.
रायगढ़ सीट पर कई दावेदार हैं. रामपुकार सिंह की बेटी आरती सिंह पिछली दफा यहां से लड़ी थीं. इस बार सांरगढ़ राजघराना फिर से अपने लिए ये सीट चाहता है. जबकि पूर्व आईएएस सरजियस मिंज यहां से टिकट चाहते हैं. एक मौजूदा अधिकारी की भी नज़र इस सीट पर है. लेकिन वे टिकट पक्की होने पर ही अपने पद से इस्तीफा देने की सोच सकते हैं. राजनांदगांव, महासमुंद और दुर्ग में से दो सीट साहू समुदाय को दी जा सकती है. जबकि एक सीट कर्मी को मिलेगी. ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री न बनाने से इस तबके की नाखुशी सोशल मीडिया पर जाहिर हो रही है. काफी नए नाम सोशल इंजीनिरिंग करते वक्त नेतृत्व के सामने आएंगे
रायपुर की तरह ही हाल बाकी सीटों का है. लेकिन कांग्रेस का एक धड़ा मानता है कि इस बार कांग्रेस को नए चेहरों को मौका देना चाहिए. पार्टी के पक्ष में छत्तीसगढ़ में माहौल है. माहौल को कांग्रेस के हक में भुनाना चाहिए. जो गलती बीजेपी ने की. उससे सीख लेते हुए नए लोगों को आज़माना चाहिए. ताकि कांग्रेस का जनाधार व्यापक हो. लेकिन कांग्रेस को जानने वाले बताते हैं कि कांग्रेस के नारे -‘वक्त है बदलाव का’- से जैसे बदलाव की अपेक्षा लोगों को है, वैसा कांग्रेस अपने आप को नहीं बदल सकती.