कुमार इंदर, जबलपुर। मध्य प्रदेश में सरकारी बिजली कम्पनियों का फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है। इसे उजागर किया है भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी CAG ने। CAG की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है कि प्रदेश में 100% इलेक्ट्रिफिकेशन के नाम पर करोड़ों का फर्जीवाड़ा किया है। फर्जी दावों के जरिए करोड़ों के अवार्ड भी हासिल किए गए हैं। कैग की रिपोर्ट मानें तो तीनों ही डिस्कॉम कंपनियों ने फर्जी आंकड़े पेश कर करोड़ों रुपए का इंसेंटिव और लाखों के कैश प्राइज हथिया लिए हैं। सवालों के घेरे में तीनों डिस्काम कंपनियां मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी और मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी शामिल हैं। कैग की रिपोर्ट के सामने आते ही तीनों ही कंपनियों के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

शहर के नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने कैग की रिपोर्ट का खुलासा करते हुए मामले की जांच की मांग की है। मंच के रजत भार्गव और पी जी नाजपांडे ने कहा है कि सरकार ने ‘पीएम सहज बिजली हर घर योजना’ यानी ‘सौभाग्य योजना’ ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ के नाम पर फर्जी आंकड़े और फर्जी रिपोर्ट पेश कर बड़े पैमाने पर घपलेबाजी की है। इतना ही नहीं CAG की रिपोर्ट में इस बात का साफ तौर पर जिक्र किया गया है कि मध्यप्रदेश के कई गांवों में अब भी बिजली नहीं पहुंची है साथ ही कई स्थानों पर ट्रांसफार्मर और पोल तो लगाए गए हैं लेकिन बिजली का वहां नामोनिशान तक नहीं है। मंच ने मामले की गहराई से जांच के साथ ही प्रदेश सरकार से श्वेत पत्र लाने की मांग की है।

दरअसल मध्य प्रदेश का बिजली मुख्यालय जबलपुर में और यहां के ‘शक्ति भवन’ से ही बिजली कंपनियों का कामकाज संचालित किया जाता है। कैग रिपोर्ट खुलासे के बाद हड़कंप मचा हुआ है। इस रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि प्रदेश सरकार ने झूठे आंकड़े और झूठी सर्वे रिपोर्ट पेश कर केंद्र सरकार से करोड़ों रुपए के अवार्ड हासिल किए हैं। प्रत्येक कंपनी को 100 करोड रुपए का इंसेंटिव तो मिला ही है साथ ही 50 लाख रुपए का कैश प्राइज भी झूठ की बुनियाद पर हासिल की हैं। पूरे मामले को मुखरता के साथ उठाने वाले नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने चेतावनी दी है कि अगर प्रदेश सरकार ने मामले की गहराई से जांच कर दोषियों पर कार्रवाई नहीं की तो हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा।

कैसे नॉमिनेट हो गई कंपनियां

इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर तमाम योजनाओं के नाम पर 100% विद्युतीकरण करने के नाम पर काम कर रही कंपनी बिना काम किए आखिर अवार्ड के लिए कैसे नॉमिनेट हो गई। जानकारों का मनना है कि इसमें राज्य सरकार या अधिकारियों के इंवॉल्वमेंट के बिना संभव नहीं है।

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