(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

चौथे नंबर पर भी समर्थक का ही नाम

बीजेपी में जिलाध्यक्ष के चयन को लेकर मंथन चल रहा था। एक जिले में पहले नंबर के नेता का नाम प्रदेश के बड़े नेता के साथ जुड़ा, तो दूसरे नंबर के नाम को आगे किया गया, लेकिन वह भी बड़े नेता का समर्थक निकला। इसी तरह तीसरे और चौथा नाम पर मंथन हुआ तो वह भी बड़े नेता के समर्थक ही निकले। बैठक में चर्चा हो ही गई कि बड़े नेताजी की यही जमीनी कमाई है कि कर कोई समर्थक जो है।

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भरोसा देने वाले हो गए गायब

मध्य प्रदेश में बीजेपी जिलाध्यक्ष के चयन प्रक्रिया शुरू हुई तो जिलों के प्रदेश स्तरीय कई नेता इस दमखम के साथ आ गया है कि वह अपनी पहुंच के दम पर जिलाध्यक्ष बनवा ही देंगे। बैठकें भी खूब हुईं और खूब भोपाल के दौरे भी हुए। अब जब सूची फाइनल होने को है तो ऐसे नेता दावेदारों से किनारा करने के लिए गायब से हो गए हैं।

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डिमांड हाई है…!!!

प्रदेश में एक बार फिर नई कसावट की खबर जोरों पर है। यह कसावट भी प्रशासनिक स्तर पर होगी। लिहाजा एक बार फिर मंत्रालय में बैठे आईएएस अफसर मनपसंद बदली के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं। जिलों की कमान के लिए नए समीकरण तैयार किए जा रहे है। सुनने में आया है कि कई अधिकारी माननीयों से अपनी सिफारिश लगा चुके हैं। वहीं राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी मंत्रियों के चक्कर काट रहे हैं। वैसे मामला सबसे ज्यादा नगरीय प्रशासन, ग्रामीण विकास विभाग, राजस्व में ज्यादा गंभीर है। यहां एक अनार और सौ बीमार की स्थिति है। इन मामलों में मलाईदार प्रतिनियुक्ति की डिमांड हाई है।

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गांवों में साले साहब की सोलर लाइट के बड़े चर्चे

इन दिनों मंत्रालय में एक मंत्रीजी के साले का किस्सा सुर्खियों में है। दरअसल, साली साहब अपने मंत्री जीजा के कहने पर नई विद्या में उतरे। पंचायत स्तर पर सोलर लाइट लगाने का काम कर रहे है। बीते दिनों मंत्रीजी ने मालवा के बड़े अफसरों को फटकारा। दरअसल मंत्रीजी अपने साले साहब को बड़ा काम दिलाना चाहते थे। बड़ा तो ठीक अफसरों ने छोटा काम भी नहीं दिया। साले साहब चक्कर काट-काट कर परेशान हो गए। जब बात नहीं बनी तो जीजा ने मंत्री को फोन लगाया। हालांकि इस मामले की खबर ऊपर तक पहुंच चुकी है। छोटे कामों की आड़ में बड़ा खेल किया जा रहा है।

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