आम आदमी पार्टी (AAP) ने जिस मोहल्ला क्लिनिक(Mohalla Clinic) को दिल्ली में व्यापक रूप से शुरू किया था, उसमें कई खामियां हैं, जैसा कि CAG रिपोर्ट बताती है. इनमें से कई क्लीनिकों में बुनियादी मेडिकल उपकरण नहीं थे, जैसे पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, एक्स-रे व्यूअर, थर्मामीटर और ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग डिवाइस. इनमें से कई क्लीनिकों में बुनियादी मेडिकल उपकरण नहीं थे, जैसे पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, एक्स-रे व्यूअर, थर्मामीटर और ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग डिवाइस. डॉक्टरों ने अपने यहां आने वाले ज्यादातर मरीजों को कंसल्ट करने में एक मिनट से भी कम समय लगाया था. सीएजी रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के 14 अस्पतालों में आईसीयू नहीं है, जबकि 12 अस्पतालों में एंबुलेंस नहीं है और मोहल्ला क्लीनिकों में शौचालय नहीं है.

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CAG रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 से निपटने के लिए केंद्र सरकार को मिले 787.91 करोड़ रुपये में से सिर्फ 582.84 करोड़ रुपये खर्च किए गए, बाकी राशि बिना उपयोग के रह गई, जिससे कोरोना संकट के दौरान आवश्यक सुविधाओं में भारी कमी आई.

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिसमें दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बताया गया है कि कोविड-19 से निपटने के लिए केंद्र सरकार से मिले 787.91 करोड़ रुपये में से सिर्फ 582.84 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि बाकी राशि बिना उपयोग के रह गई, जिससे जरूरी सुविधाओं में भारी कमी आई.

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फंड की अनदेखी और भ्रष्टाचार के आरोप

रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य कर्मचारियों की भर्ती और वेतन के लिए मिले 52 करोड़ रुपये में से 30.52 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए. इससे स्पष्ट है कि सरकार ने पर्याप्त स्वास्थ्य कर्मचारियों की भर्ती नहीं की, जिससे महामारी के दौरान लोगों को इलाज करने में बहुत मुश्किल हुई. दवाओं, पीपीई किट और अन्य चिकित्सा के लिए मिले 119.85 करोड़ रुपये में से 83.14 करोड़ रुपये भी खर्च नहीं हुए.

सरकारी अस्पतालों में बेड की भारी कमी

दिल्ली सरकार ने 2016 से 2021 तक 32,000 नए बेड जोड़ने का वादा किया था, लेकिन सिर्फ 1,357 बेड जोड़े गए, जो लक्ष्य का सिर्फ 4.24% है. राजधानी के कई अस्पतालों में बेड ऑक्यूपेंसी 101% से 189% तक रही, यानी दो मरीजों को एक ही बेड पर रखा गया या फर्श पर इलाज कराना पड़ा.

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रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दिल्ली में तीन नए अस्पताल बनाए गए, लेकिन सभी परियोजनाएं पहले की सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई थीं, इसलिए उनके निर्माण में पांच से छह वर्ष की देरी हुई और उनकी लागत भी बढ़ी.

इंदिरा गांधी अस्पताल में 5 वर्ष की देरी से 314.9 करोड़ रुपये की लागत बढ़ी

 बुराड़ी अस्पताल में 6 वर्ष की देरी से 41.26 करोड़ रुपये बढ़ी

एमए डेंटल अस्पताल (फेज-2) में 3 वर्ष की देरी से 26.36 करोड़ रुपये बढ़ी.

डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य विभागों में 8,194 पद खाली हैं

 नर्सिंग स्टाफ की 21% और पैरामेडिकल स्टाफ की 38% की कमी

 राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टरों की 50–74% की कमी

नर्सिंग स्टाफ की 73–96% की भारी कमी.

सर्जरी के लिए लंबा इंतजार, कई उपकरण खराब

-लोक नायक अस्पताल में बड़ी सर्जरी के लिए दो से तीन महीने का इंतजार करना पड़ा, जबकि बर्न और प्लास्टिक सर्जरी के लिए छह से आठ महीने का इंतजार करना पड़ा.

– चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय (CNBC) में 12 महीने की पीडियाट्रिक सर्जरी के लिए इंतजार करना पड़ा.

– CNBC, RGSSH और JSSH जैसे अस्पतालों में बहुत सी एक्स-रे, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड मशीनें काम नहीं कर रही हैं.

जरूरी सेवाओं की कमी और बदहाल मोहल्ला क्लीनिक

27-में से 14 अस्पतालों में ICU सेवा उपलब्ध नहीं थी.

16. कुछ अस्पतालों में ब्लड बैंक की सुविधा नहीं थी.

8 अस्पतालों को ऑक्सीजन नहीं मिलता था.

12 अस्पतालों में एंबुलेंस सुविधा नहीं थी.

– CATS एंबुलेंस भी आवश्यक उपकरणों के बिना चलती थीं.

मोहल्ला क्लीनिकों की स्थिति भी खराब पाई गई

21 मोहल्ला क्लीनिकों में शौचालय नहीं थे

 -15 क्लीनिकों में बिजली बैकअप की सुविधा नहीं थी

 -6 क्लीनिकों में डॉक्टरों के लिए टेबल तक नहीं थे

12 क्लीनिकों में दिव्यांगों के लिए कोई सुविधा नहीं थी.

CAG रिपोर्ट ने दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत को उजागर किया है. यह कोविड काल में सरकार द्वारा मिले धन का सही इस्तेमाल नहीं करना, अस्पतालों में जरूरी सुविधाओं की भारी कमी, स्टाफ की भारी किल्लत और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है. अब सरकार को जनता के स्वास्थ्य से जुड़ी इस लापरवाही पर जवाब देना होगा.

कैग को क्या-क्या खामियां मिली

– कैग रिपोर्ट में दवाओं की उपलब्धता को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है क्योंकि 74 क्लीनिकों को जरूरी ड्रग लिस्ट (ईडीएल) में सूचीबद्ध 165 दवाओं का पूरा स्टॉक रखने में विफल रहे हैं.

– दवा वितरण में आपूर्तिकर्ताओं से अक्सर अधूरे या आंशिक रूप से पूरे किए गए ऑर्डर मिलते हैं, जो सप्लाई चेन की चुनौती है.

– ऑडिट ने पाया कि कई ईडीएल दवाएं या तो केंद्रीय खरीद एजेंसी द्वारा नहीं खरीदी गईं या ऑर्डर दिए जाने के बावजूद विक्रेताओं द्वारा नहीं दी गईं, जिसके कारण क्लीनिक मरीजों को समय पर देखभाल नहीं कर पाए. दवाओं की डिलीवरी में तीन से छह महीने की देरी हुई.

– सीएजी ने पाया कि 16 नवंबर, 2022 से 14 दिसंबर, 2022 तक दिल्ली के क्लीनिकों में लैब सेवाएं पूरी तरह से उपलब्ध नहीं थीं और कोई वैकल्पिक परीक्षण व्यवस्था भी नहीं थी.

– आप सरकार के दस साल के शासन के दौरान, प्लांड (योजना बनाई गई) मोहल्ला क्लीनिकों में से केवल 53 प्रतिशत की स्थापना हुई, जबकि उनके दूसरे कार्यकाल में 38 क्लिनिक बनाए गए, जो उनके स्वास्थ्य सेवा लक्ष्य से कम थे.

– 2015 में आप सरकार ने 1,000 क्लीनिक स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन यह नहीं हुआ.