अमृतसर. तरनतारन में 32 साल पहले पुलिस ने एक मुठभेड़ में दो लोगों को आतंकवादी बताकर मारने का दावा किया था। लेकिन अदालत में यह मुठभेड़ फर्जी साबित हुई। मोहाली की CBI स्पेशल कोर्ट ने दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को हत्या और अन्य आरोपों में दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है।
अदालत ने उस समय तरनतारन के पट्टी में तैनात तत्कालीन पुलिस अधिकारी सीता राम (80) को उम्रकैद और 2 लाख रुपये जुर्माने की सजा दी। वहीं, एसएचओ पट्टी राजपाल (57) को पांच साल की कैद और 50,000 रुपये जुर्माना लगाया गया। यह राशि मृतकों के परिवारों को मुआवजे के रूप में दी जाएगी।
इस मामले में 11 पुलिस अधिकारियों पर अपहरण, गैरकानूनी हिरासत और हत्या के आरोप लगे थे। इनमें से चार आरोपियों की मुकदमे के दौरान मौत हो गई, जबकि पांच को बरी कर दिया गया। पीड़ित परिवारों का कहना है कि वे बरी हुए आरोपियों को सजा दिलाने के लिए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अपील करेंगे।
फर्जी एनकाउंटर के लिए पुलिस ने गढ़ी झूठी कहानी
CBI जांच में सामने आया कि पुलिस ने दो युवकों के फर्जी एनकाउंटर के लिए झूठी कहानी बनाई थी। पुलिस के अनुसार, जब उन्होंने चेक पोस्ट पर इन युवकों को रोकने की कोशिश की, तो उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में दोनों की मौत हो गई। लेकिन अदालत में यह दावा झूठा साबित हुआ।

असल में, 30 जनवरी 1993 को तरनतारन के गलीलीपुर के रहने वाले गुरदेव सिंह उर्फ देबा को पुलिस चौकी के इंचार्ज एएसआई नौरंग सिंह की टीम ने उसके घर से उठा लिया था। इसके बाद, 5 फरवरी 1993 को एएसआई दीदार सिंह की टीम ने सुखवंत सिंह को पट्टी थाना क्षेत्र के बाहमणिवाला गांव से पकड़ लिया।
6 फरवरी 1993 को दोनों को पट्टी थाना क्षेत्र के भागूपुर इलाके में फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। पुलिस ने उनकी लाशों को लावारिस हालत में जला दिया, जिससे परिवार वालों को उनका अंतिम दर्शन भी नहीं मिला। पुलिस ने दावा किया था कि दोनों युवक हत्या और जबरन वसूली जैसे अपराधों में शामिल थे, लेकिन अदालत में यह भी झूठा साबित हुआ।
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