मोहम्मद अली जिन्ना को भारत में विभाजन का जिम्मेदार माना जाता है, जबकि पाकिस्तान में उन्हें कायदे आजम के रूप में सम्मानित किया जाता है. इसी प्रकार, उनके मुंबई स्थित निवास जिन्ना हाउस के बारे में भी विभिन्न मत हैं. मालाबार में स्थित इस बंगले को कुछ लोग ध्वस्त करने की मांग करते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि इसे संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि यह ऐतिहासिक धरोहर बनी रहे और इसका उपयोग भी हो सके. हाल ही में यह जानकारी मिली है कि विदेश मंत्रालय इसके पुनरुद्धार के लिए मंजूरी देने वाला है. वर्तमान में इस संपत्ति की देखरेख विदेश मंत्रालय के पास है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस इमारत को एक डिप्लोमैटिक एन्क्लेव के रूप में स्थापित किया जा सकता है, जो दिल्ली के हैदराबाद हाउस की तर्ज पर होगा.

जिन्ना हाउस का असली नाम साउथ कोर्ट है, लेकिन अंग्रेजी शासन के दौरान विभाजन के समय इसे जिन्ना हाउस के नाम से जाना जाने लगा, और तब से यह नाम प्रचलित हो गया. इस घर का निर्माण जिन्ना ने 1936 में अपने निवास के लिए बड़े उत्साह से कराया था, लेकिन जब वह देश के विभाजन की योजना पर आगे बढ़े, तो भारत उनके मन से निकल गया और भौतिक रूप से भी वह इससे दूर हो गए. इसके बाद यह संपत्ति मुंबई में भारत सरकार के अधीन आ गई, जबकि उनकी बेटी दीना वाडिया ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक इस पर अधिकार पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी. 2018 में इस बंगले को भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय को सौंप दिया, जबकि इससे पहले यह भारत संस्कृति संबंध परिषद के पास था. इस बंगले का निर्माण 2 लाख रुपये की लागत से हुआ था, लेकिन आज इसकी बाजार मूल्य 1500 करोड़ रुपये है.
इसकी प्रमुखता का कारण यह है कि यह आज मुंबई के सबसे प्रतिष्ठित क्षेत्र मालाबार हिल्स में स्थित है. इसे इटालियन शैली में डिज़ाइन किया गया था, और इसके लिए मार्बल भी इटली से लाया गया था. जब जिन्ना इंग्लैंड से लौटकर मुंबई आए और मुस्लिम लीग का नेतृत्व संभाला, तो उन्होंने यहां एक आवास का निर्माण कराया. इसका डिज़ाइन क्लॉड बैटले ने तैयार किया, जो भारतीय आर्किटेक्ट्स के प्रमुख थे. इसके निर्माण के लिए इटली से कारीगरों को भी आमंत्रित किया गया था. उस समय इस परियोजना पर 2 लाख रुपये खर्च हुए थे, जो 1947 में एक रुपये की कीमत को देखते हुए काफी महत्वपूर्ण था. यह बंगला ढाई एकड़ में फैला हुआ है और समुद्र के किनारे स्थित है. इटालियन मार्बल से निर्मित इस बंगले की कई दीवारें अब क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं और इसे पुनर्स्थापना की आवश्यकता है.

जिन्ना को यह बंगला लौटाना चाहते थे नेहरू
भारत के विभाजन के बाद इस बंगले को शत्रु संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया, जैसा कि उन सभी संपत्तियों के साथ हुआ जिनके मालिक पाकिस्तान चले गए थे. कहा जाता है कि नेहरू इस बंगले को मोहम्मद अली जिन्ना को वापस लौटाना चाहते थे, या फिर जिन्ना की सहमति से किसी यूरोपीय व्यक्ति को यहां किराए पर रहने की अनुमति देने का विचार भी था. हालांकि, जिन्ना की 1948 में मृत्यु के कारण नेहरू इस बंगले के संबंध में कोई निर्णय नहीं ले सके. अंततः, 1949 में भारत सरकार ने इस बंगले को अपने अधीन ले लिया. 1981 तक यहां ब्रिटिश हाई कमिशन का संचालन होता रहा, और उसके स्थानांतरित होने के बाद पाकिस्तान सरकार ने यहां कौंसुलेट कार्यालय स्थापित करने की अनुमति मांगी.
क्यों बेटी को भी नहीं मिल पाया जिन्ना का बंगला
मोहम्मद अली जिन्ना ने 1939 में अपनी वसीयत तैयार की, जिसमें उन्होंने अपनी सम्पत्ति की पूरी मालिकाना हक अपनी बहन फातिमा जिन्ना को सौंपा. इसका कारण यह था कि उनकी बेटी दीना वाडिया ने पारसी से विवाह किया, जिससे जिन्ना असंतुष्ट थे. विभाजन के समय, फातिमा भी पाकिस्तान चली गईं, जिसके परिणामस्वरूप उनका बंगला शत्रु संपत्ति के रूप में घोषित हो गया. हालांकि, दीना वाडिया ने इस संपत्ति के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी, यह तर्क देते हुए कि वह जिन्ना की कानूनी वारिस हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जिन्ना की संपत्ति पर हिंदू उत्तराधिकार नियम लागू होना चाहिए, क्योंकि जिन्ना का परिवार दो पीढ़ियों पहले हिंदू था.
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