रमेश सिन्हा, पिथौरा, महासमुंद। छत्तीसगढ़ी संस्कृति के अनुरूप सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए आज तीजा का पर्व मना रही हैं. इसकी शुरुआत महिलाओं ने बुधवार की शाम कड़ू भात यानी करेला और चावल खाकर की. गुरुवार को महिलाओं ने दिन और रात बिना कुछ खाए-पीए निर्जला व्रत रखा हुआ है. इस दौरान भगवान शंकर व माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाएगी.
शंकर को पाने पार्वती ने की थी कठोर तपस्या
छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, बिहार, ओड़िशा आदि राज्यों में भादो शुक्ल तृतीया को तीजा पर्व मनाया जाता है. इसमें महिलाएं एक दिन पहले करेला से बने व्यंजन को ग्रहण कर उपवास शुरू करती हैं और अगले दिन दिनभर भूखी-प्यासी रहकर शाम को भगवान शंकर व पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं. महिलाएं रातभर जागरण करके भजन-कीर्तन में रमीं रहती हैं और गणेश चतुर्थी की सुबह पारणा करती हैं.
शिव पुराण के अनुसार राजा दक्ष अपनी पुत्री पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते थे, लेकिन पार्वती ने मन से भगवान शंकर को ही अपना पति मान लिया था. पार्वती ने यह बात अपनी सहेली को बताई तब उनकी सहेली ने राजा दक्ष के महल से तीज के दिन पार्वती का हरण किया और उन्हें जंगल में ले गई, इसलिए इसे हरतालिका तीज भी कहा जाता है. इसी दिन शंकरजी को पति रूप में पाने के लिए पार्वती ने दिन-रात बिना कुछ खाए पिए कठोर तपस्या की। पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शंकरजी ने पार्वती से विवाह किया.
माता-पिता उपहार देकर करते हैं बेटियों को बिदा
मान्यता है कि माता-पिता अपनी बेटी की शादी के बाद उसे भादो शुक्ल तृतीया (तीजा) पर मायके अवश्य बुलाते हैं. विवाहित महिलाएं मायके में पूजा-अर्चना में शामिल होने के बाद जब वापस अपने ससुराल जाती हैं तो माता-पिता अपनी सामर्थ्य अनुसार साड़ी, ब्लाउज, गहना व अन्य उपहार देकर बेटी को विदा करते हैं.