यूपी के सरकारी स्कूलों में रामायण और वेद की कार्यशालाएं आयोजित की जा रही है. जिसे लेकर नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने योगी सरकार को घेरा है. उन्होंने इसे संविधान की मूल भावना का उल्लंघन बताया है. सांसद ने एक्स पर लिखा- योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ‘रामायण’ और ‘वेद’ पर एकपक्षीय कार्यशालाएं अनिवार्य करना, न केवल संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है, बल्कि यह देश की सामाजिक विविधता पर सीधा प्रहार है. यह फैसला बताता है कि सरकार शिक्षा नहीं, धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिए राजनीतिक लाभ लेने का काम रही है.
सांसद चंद्रशेखर आजाद ने लिखा- जहां एक ही कक्षा में दलित, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, ईसाई और आदिवासी पृष्ठभूमि के बच्चे साथ पढ़ते हैं, वहां यदि विद्यालयों को एक धर्म विशेष के प्रचार का मंच बना दिया जाए, तो यह न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि इन बच्चों की धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ भी है. संविधान का अनुच्छेद 28 साफ कहता है, किसी राज्य-वित्तपोषित शैक्षणिक संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती और किसी भी छात्र को धार्मिक उपासना में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. इसके बावजूद अगर राज्य सरकार अपने एजेंडे के तहत धार्मिक कार्यशालाएं थोपती है, तो यह संविधान की हत्या जैसा गंभीर अपराध है.
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सीएम योगी से सवाल
सांसद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सवाल करते हुए लिखा- शिक्षा के नाम पर एक धर्म थोपने की साजिश-संविधान की हत्या नहीं तो और क्या? परम पूज्य बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान ने हमें धर्मनिरपेक्षता, समानता और वैज्ञानिक सोच की राह दिखाई थी. आज उसी राह को छोड़कर योगी सरकार शिक्षा को बहुसंख्यकवाद की प्रयोगशाला बना रही है
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सामाजिक न्याय, और नागरिक जिम्मेदारियों पर आधारित हो कार्यशाला
चंद्रशेखर आजाद ने लिखा- भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) का स्पष्ट मत है कि अगर किसी विषय पर कार्यशालाएं होनी ही हैं, तो वे संविधान, मौलिक अधिकारों, वैज्ञानिक सोच, सामाजिक न्याय, और नागरिक जिम्मेदारियों पर आधारित हो. बच्चों को आत्म-सशक्तिकरण, समानता, और कानूनी अधिकारों की जानकारी दी जाए. उन्हें अनुच्छेद 51(A) के अनुसार तर्कशील, वैज्ञानिक और मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित करने की प्रेरणा दी जाए.
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शिक्षा का उद्देश्य धर्म प्रचार नहीं
उन्होंने आगे लिखा- यदि धार्मिक या सांस्कृतिक विषय शामिल किए भी जाएं, तो उसमें ‘सर्वधर्म समभाव’ हो और बच्चे की पसंद और धार्मिक स्वतंत्रता का पूर्ण सम्मान किया जाए. शिक्षा का उद्देश्य धर्म प्रचार नहीं, विवेकशील नागरिकों का निर्माण होना चाहिए. यही भारत की आत्मा है, यही संविधान की पुकार है.
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