Investment Tips Details: जब भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक या सैन्य तनाव की खबरें सामने आती हैं, तो इसका सीधा असर शेयर बाजार पर भी दिखाई देता है. ऐसे हालात में कई निवेशक असमंजस में पड़ जाते हैं – क्या SIP जारी रखनी चाहिए या फिलहाल रोक देना समझदारी होगी? क्या अभी नए निवेश करने चाहिए या इंतजार करना बेहतर रहेगा?

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घबराने के बजाय रणनीति पर ध्यान दें

वित्तीय सलाहकारों का मानना है कि ऐसे हालात में घबराकर कोई भी निर्णय लेना ठीक नहीं होता. उनका सुझाव है कि SIP को जारी रखना चाहिए, जबकि बड़े एकमुश्त निवेश से फिलहाल बचना बेहतर विकल्प हो सकता है.

सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) का पूरा विचार ही इस पर आधारित है कि आप बाजार के उतार-चढ़ाव के दौरान नियमित रूप से निवेश करते रहें, जिससे लंबी अवधि में औसत मूल्य पर बेहतर यूनिट्स मिल सकें और अच्छा रिटर्न प्राप्त हो.

SIP बंद करना हो सकता है नुकसानदेह

फाइनेंशियल रेडियंस के संस्थापक और प्रमाणित वित्तीय योजनाकार राजेश मिनोचा का मानना है कि अस्थिर समय में SIP को रोकना उचित नहीं है. उनके अनुसार, ऐसे समय में “रुपया कॉस्ट एवरेजिंग” यानी औसत लागत पर यूनिट्स खरीदने का बेहतरीन अवसर होता है. वहीं, एकमुश्त निवेश को कुछ समय के लिए टालना बेहतर होगा क्योंकि अगर हालात और बिगड़ते हैं, तो बाजार में और गिरावट आ सकती है — तब निवेश का अधिक अनुकूल अवसर मिलेगा.

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BankBazaar के सीईओ आदिल शेट्टी की राय भी इसी दिशा में है. उनका कहना है कि SIP को रोकने से निवेशक सस्ते दामों पर यूनिट्स खरीदने का मौका खो सकते हैं, जो लंबी अवधि में रिटर्न को प्रभावित कर सकता है.

यदि आपके पास फिलहाल एकमुश्त निवेश की राशि है, तो उसे सीधे न लगाकर STP (सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान) के माध्यम से धीरे-धीरे इक्विटी में स्थानांतरित करना अधिक सुरक्षित और समझदारी भरा तरीका हो सकता है.

सोना और अंतरराष्ट्रीय फंड्स: संकट में सुरक्षित विकल्प

जब बाजार में अनिश्चितता या भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता है, तब सोना एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में सामने आता है. ऐसे समय में इसकी कीमतें प्रायः स्थिरता दर्शाती हैं, इसलिए यह महंगाई और जोखिम से बचाव का पारंपरिक उपाय माना जाता है.

वहीं, इंटरनेशनल फंड्स (ऐसे म्यूचुअल फंड्स जो विदेशी शेयर बाजार, इंडेक्स और कमोडिटी से जुड़े होते हैं) भौगोलिक विविधता प्रदान करते हैं और भारतीय बाजार की अस्थिरता से सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं.

सोने और विदेशी फंड्स में कितना निवेश करें?

विशेषज्ञों का सुझाव है कि अपने कुल पोर्टफोलियो का लगभग 10% भाग सोने में निवेश किया जाना चाहिए. यह निवेश गोल्ड ETF, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स, या मल्टी-एसेट फंड्स के माध्यम से किया जा सकता है.

आदिल शेट्टी के अनुसार, सोना और अंतरराष्ट्रीय फंड्स मिलकर पोर्टफोलियो को संतुलन प्रदान करते हैं. सोने में 5% से 10% का निवेश न केवल स्थिरता देता है बल्कि इक्विटी में गिरावट की स्थिति में जोखिम को भी कम करता है.

वहीं, इंटरनेशनल फंड्स में 10% से 15% तक निवेश करना भी एक विवेकपूर्ण निर्णय हो सकता है — विशेषकर तब, जब आपकी जोखिम सहनशीलता मध्यम से अधिक हो. अमेरिका, यूरोप जैसे स्थिर बाजारों में निवेश से भारतीय बाजार की कमजोरी से पोर्टफोलियो की रक्षा की जा सकती है.

लंबी अवधि के लक्ष्यों को नज़रअंदाज़ न करें

बाजार की अस्थिरता के कारण अक्सर निवेशक अपने दीर्घकालिक निवेश लक्ष्यों से भटक जाते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि अगर आपका निवेश लक्ष्य 5 से 10 वर्षों बाद का है, तो मौजूदा गिरावट का उस पर अत्यल्प या नगण्य प्रभाव पड़ेगा.

इसलिए ज़रूरी है कि आप अपने मूल निवेश योजना पर टिके रहें और तात्कालिक घटनाओं को ध्यान में रखते हुए जल्दबाज़ी में कोई बड़ा फैसला न लें.

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