सुप्रीम कोर्ट (Suprem Court)में कुछ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा बार-बार छुट्टी लेने के मामले पर चर्चा हुई, जिसमें कोर्ट ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि अब जजों के कार्य प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए परफॉरमेंस ऑडिट करने का समय आ गया है. आगामी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत(CJI Surykant) ने बताया कि जबकि कुछ जज कार्यभार के कारण अत्यधिक मेहनत कर रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो अनावश्यक रूप से बार-बार छुट्टियां ले रहे हैं, जिससे उनके समय के उपयोग पर सवाल उठते हैं. उल्लेखनीय है कि जस्टिस सूर्यकांत इस वर्ष के अंत तक देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं, जबकि जस्टिस गवई ने आज ही 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने पिला पाहन और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि कुछ न्यायाधीश अत्यधिक मेहनती होते हैं, जबकि अन्य बिना कारण के बार-बार कॉफी ब्रेक लेते हैं. उन्होंने कहा कि लंच के समय और अन्य ब्रेक के नाम पर समय बर्बाद किया जा रहा है, जिससे हाई कोर्ट के जजों के प्रदर्शन पर सवाल उठते हैं. बेंच ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि हमें जजों के प्रदर्शन का ऑडिट करने की आवश्यकता है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि हम कितना खर्च कर रहे हैं और उसका परिणाम क्या है.
HC जजों के कामकाज के ऑडिट का आदेश
शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के कार्यों के ऑडिट का आदेश देने का कारण स्पष्ट किया है. जस्टिस सूर्यकांत ने इस मुद्दे की गंभीरता पर जोर देते हुए कहा कि इसे ध्यान में लाने की आवश्यकता है. यह टिप्पणी उन चार व्यक्तियों की याचिका के संदर्भ में आई है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह दावा किया था कि झारखंड हाई कोर्ट ने 2022 में दोषसिद्धि और आजीवन कारावास के खिलाफ उनकी आपराधिक अपील पर निर्णय सुरक्षित रखा था, लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं सुनाया गया है.
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अधिवक्ता फौजिया शकील ने की पैरवी
अधिवक्ता फौजिया शकील ने बताया कि शीर्ष अदालत के दबाव के बाद, उच्च न्यायालय ने पांच और छह मई को मामले का निर्णय सुनाया. उन्होंने कहा कि अदालत ने चार में से तीन आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि एक मामले में खंडित फैसला सुनाया गया और उसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया, साथ ही आरोपियों को जमानत भी दी गई. शकील ने यह भी उल्लेख किया कि एक सप्ताह पहले उच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद, बरी किए गए तीन व्यक्तियों को जेल से रिहा नहीं किया गया, और अदालत ने निर्णय में आदेश सुरक्षित रखने की तारीख का भी उल्लेख नहीं किया.
झारखंड सरकार के वकील को आदेश
पीठ ने इस पर आपत्ति जताते हुए झारखंड सरकार के वकील से भोजनावकाश से पहले चारों आरोपियों को रिहा करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई को अपराह्न दो बजे के बाद के लिए स्थगित कर दिया. शकील ने बताया कि शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के कारण ही चारों को “ताजी हवा में सांस लेने” का अवसर मिला, और यदि उच्च न्यायालय ने समय पर निर्णय दिया होता, तो वे 3 साल पहले ही जेल से बाहर आ चुके होते. शीर्ष अदालत ने इस मामले में उठाए गए मुद्दे को “सर्वोपरि महत्व” का बताते हुए कहा कि यह “आपराधिक न्याय प्रणाली की जड़ तक जाता है.”
सभी हाई कोर्ट से ऐसे मामले तलब
इसने याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जुड़े एक समान मामले के साथ जोड़ दिया, जिसमें निर्णय सुनाने की तिथि और सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर निर्णय अपलोड करने की तिथि की जानकारी मांगी गई थी. पीठ ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह उच्च न्यायालयों से आवश्यक डेटा एकत्र करे और मामले की सुनवाई जुलाई के लिए स्थगित कर दी. महत्वपूर्ण यह है कि शीर्ष अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों से उन मामलों की जानकारी के साथ रिपोर्ट मांगी है, जिनमें निर्णय सुरक्षित रखे जाने के बावजूद अभी तक कोई फैसला नहीं सुनाया गया है.
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