जिंदगी हमेशा आसान नहीं होती. कभी-कभी ये बोझिल होती है, अनिश्चित और बेरहम भी. ये बिना चेतावनी के दुख, असफलता और खामोशी लेकर आती है. कई बार सब कुछ टूटता हुआ सा लगता है, रास्ते धुंधले लगते हैं और दिल थक सा जाता है. लेकिन इन्हीं उलझनों के बीच कुछ खामोश सीखें छुपी होती है. संघर्ष सब्र सिखाता है, अकेलापन भीतर की ताकत जगाता है. दर्द दिल को नर्म बनाता है, और डर—वो हमारे भीतर छिपे साहस से मिलाता है. ऐसे ही जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली बातें प्रेमानंद महराज जी ने बताई. आइए जानते हैं जीवन में हार को लेकर प्रेमानंद जी का क्या मत है.

उन्होंने कहा कि हर बात का जवाब तुरंत नहीं मिलता, हर मोड़ साफ नहीं होता. लेकिन फिर भी, किसी न किसी तरह, हम बढ़ते रहते हैं. इसलिए चाहे जीवन कुछ भी लाए मत हारो, गिरो, रुको, रो लो… लेकिन फिर उठो. क्योंकि जिंदगी वहीं से बदलती है, जहां से हम फिर कोशिश करना शुरू करते हैं.
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प्रेमानंद महराज ने कहा कि अगर विद्यार्थी परास्त हो जाता है तो कभी जीवन नष्ट करने की नहीं सोचना. हर जगह फेल है लेकिन एक जगह पास है- हे भगवान में आपका हूं. वो उठाएंगे, वो आपको प्रकाशित करेंगे. बिल्कुल परास्त होने की बात नहीं है. दिमाग में प्रसन्नता रखो. जो होगा मंगलमय होगा. मनुष्य जीवन में किसी भी स्थिति में निराशा नहीं आनी चाहिए. हम फेल हो जाएं, हार जाएं, घाटे में हैं, विपत्ति में हैं, ये सब बनी रहेगी क्या? प्रसन्न रहो. हारना है ही नहीं.
हार को जीत में बदलें
महराज ने आगे कहा कि हार कोई बुरी चीज नहीं है. निराश नहीं होना चाहिए. हमारी और उछाल होगी. खिलाड़ी की गेंद जब नीचे जाती है तो ये मत समझना की वो नीचे गया, वो नीचे से थपक मांगेगी तो अपने लक्ष्य तक जाएगी. हम सब भगवान के हाथ के बाग हैं. हमको चिंता नहीं करनी है. हजार बार हारेंगे तो भी हम दौड़ पड़ेंगे अपने लक्ष्य की ओर. हम हार को जीत में बदलेंगे.
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