रायपुर। रमज़ान माह का एक एक मिनट बहुत क़ीमती होता है. रमज़ान रहमत बरकत और मगफिरत का महीना है. इस पूरे महीने में मुसलमान भूखा प्यासा और बुरे कामों से तौबा कर हर अच्छे से अच्छे कार्य करने के साथ रोजे रखते हैं. रमजान उल मुबारक का पहला रोजा मंगलवार 7 मई से रखा जाएगा.

यह घोषणा दारुल कजा इमारत-ए-शरिया फुलवारीशरीफ के काजी-ए-शरियत मौलाना अब्दुल जलील कासमी ने दी है. सहारनपुर के इमाम एवं जमीयत दावतुल मुसलीमीन के संरक्षक कारी इसहाक गोरा ने बताया कि अल्लाह ने मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज फरमाए हैं जिससे अपने अंदर तकवा परहेज़गारी पैदा कर सके.

यदि कोई व्यक्ति भूखा प्यासा रहता है और बुरे काम नहीं छोड़ता तो उसका रोजा सिर्फ फांके के सिवा कुछ नहीं है. अल्लाह को ऐसे लोगों के रोजे पसंद नहीं जो बुरे काम न छोड़े. अल्लाह रमजान में हर इंसान को मौका देता है कि वह अपने बुरे कामों से तौबा करे और अच्छे काम करने की ऐहेद करें. रमजान में हर नेक और बुरे काम का बदला 70 गुना अधिक होता है. शरीयत की किताबों में आया है यदि कोई व्यक्ति रमजान में बुरे कार्य करता है तो उसके बुरे कामों का बदला 70 गुना अधिक मिलेगा और इसी तरह अच्छे काम करेगा तो उसको 70 गुना अधिक सवाब मिलेगा.

नमाज और कुरान के नियम

मानसिक आचरण भी शुद्ध रखते हुए पांच बार की नमाज और कुरान पढ़ी जाती है. इस दौरान मन में किसी भी प्रकार के बुरे विचार या मन में किसी के भी प्रति गलत भावना नहीं लानी चाहिए.

इन बातों से टूट जाता है रोजा

इस्लाम धर्म में बताए नियमों के अनुसार पांच बातें करने पर रोजा टूट जाता है. वे हैं- झूठ बोलना, बदनामी करना, पीठ पीछे किसी की बुराई करना, झूठी कसम खाना और लालच करना.