यदि आप चाहते हैं कि आपका मन भगवान के नाम में लगे, आत्मा शुद्ध हो और नाम जप में सच्चा आनंद मिले, तो सबसे पहले अपने भोजन को दोषरहित बनाना होगा. धर्मशास्त्रों और संतों की वाणी बार-बार इस सत्य की पुष्टि करती है कि जैसा अन्न, वैसा मन.

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आज की भागदौड़ और दिखावे की दुनिया में लोग भले ही पूजा-पाठ कर लें, लेकिन अगर उनका आहार अशुद्ध, तामसिक या हिंसक है, तो मन ईश्वर में टिक नहीं पाता. सात्विकता केवल मंदिर जाने या पूजा करने से नहीं आती. वह तो रसोईघर से शुरू होती है. यदि आप चाहते हैं कि भगवान का नाम आपके मन में बसे, ध्यान में स्थिरता आए और आत्मा पवित्र हो, तो सबसे पहले अपने भोजन को दोषरहित और सात्विक बनाइए. क्योंकि भोजन शुद्ध होगा, तभी जीवन में भक्ति की सच्ची मिठास आएगी.

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दोषरहित भोजन क्या है?

  • सात्विक भोजन: जिसमें प्याज, लहसुन, मांस, शराब, बासी या अति तैलीय चीजें न हों.
  • भावनात्मक शुद्धता: भोजन बनाते और ग्रहण करते समय मन में शांत, श्रद्धामयी और प्रसन्न भाव होना चाहिए.
  • ईश्वर अर्पण: भोजन को पहले भगवान को अर्पित करके प्रसाद रूप में लेना चाहिए.

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