विक्रम मिश्र, लखनऊ. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में यूपी पीसीएस-जे 2022 परीक्षा विवाद (UP PCS-J 2022 Exam Controversy) के मामले में बुधवार को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति गोविंद माथुर की अध्यक्षता वाली न्यायिक जांच समिति की ओर से प्रस्तुत प्रारंभिक रिपोर्ट को न्यायालय ने खोलकर रिकॉर्ड पर लिया. यह सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ के सामने हुई.

मुख्य याचिकाकर्ता श्रवण पांडेय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फारमान अहमद नकवी, अधिवक्ता शाश्वत आनंद और सौमित्र आनंद ने पक्ष रखा, जबकि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की ओर से अधिवक्ता नीसीथ यादव पेश हुए. न्यायालय ने सभी पक्षों को प्रारंभिक रिपोर्ट कोर्ट के कार्यालय से प्राप्त करने और तीन सप्ताह के भीतर अपनी प्रतिक्रियाएं या शपथ-पत्र, यदि कोई हो, दाखिल करने की अनुमति दी.

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ये मामला 2022 उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा सिविल जज (जूनियर डिवीजन) मुख्य परीक्षा (यूपी पीसीएस-जे मुख्य 2022) में उत्तर पुस्तिकाओं से छेड़छाड़, मूल्यांकन में अनियमितताओं और मेरिट सूची में विसंगतियों के आरोपों से संबंधित है. यूपीपीएससी ने पहले स्वीकार किया था कि दो बंडलों की उत्तर पुस्तिकाओं पर गलत मास्टर फेक कोड चिपकाए गए थे, जिससे कम से कम 50 उम्मीदवारों के अंक प्रभावित हुए.

न्यायमूर्ति गोविंद माथुर को इन अनियमितताओं की जांच का जिम्मा सौंपा गया था, और उनकी प्रारंभिक रिपोर्ट से इस मामले में स्पष्टता आने की उम्मीद है. न्यायालय ने यूपीपीएससी को जांच पूरी होने तक सभी संबंधित रिकॉर्ड सुरक्षित रखने के निर्देश दिए हैं. मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त, 2025 को निर्धारित की गई है, जब पक्षों द्वारा दाखिल प्रतिक्रियाओं पर विचार किया जाएगा. यह मामला उत्तर प्रदेश में न्यायिक भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करता है और इसका परिणाम सार्वजनिक सेवा परीक्षाओं में जवाबदेही के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है.