(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

पूर्व मंत्री लाए, प्रभारी मंत्री के हो गए बड़े साहब

बड़े राजघराना से ताल्लुक रखने वाले नेताजी के इलाके में बड़े साहब की पोस्टिंग में पूर्व मंत्री ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्षेत्रीय नेता के तौर पर अपना वीटो लगाया और चहेते अफसर को जिले के बड़े साहब बनवा लाए। पूर्व मंत्री इस बात को लेकर खुश थे कि जिले में उनकी ही चलेगी। पूर्व मंत्रीजी को उम्मीद थी कि जब जिला स्तर पर तबादले होंगे तो बड़े साहब उनकी सिफारिशों को तवज्जो देंगे, लेकिन जब जरूरत की बारी आई तो बड़े साहब ने सहायता करने से किनारा कर लिया। साहब प्रभारी मंत्री के अनुमोदन पर तो चिड़िया बैठती रही लेकिन पूर्व मंत्री की सिफारिशों को नजरअंदाज करते रहे। अब पूर्व मंत्री और बड़े साहब में दूरियां बढ़ गई हैं।

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गजब के दो दिग्गज की गजब कहानी

एक जिले के दो दिग्गजों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। चर्चा इस बात कि दोनों दिग्गज पार्टी कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों, अधिकारियों और कर्मचारियों को क्षेत्र की जनता के साथ खास में खास बने लोगों के भी काम नहीं आते। इन दिग्गजों के यहां बिना अनुमति एक पत्ता तक नहीं हिलता। अच्छी बात है यह होना भी चाहिए, लेकिन इनका पत्ता तो किसी भी बात पर नहीं हिलता। बड़े-बड़े सूरमा भी इनसे हलाकान। अब इसे स्वभाव की बात कहे या तानाशाही। राम ही जाने। एक कहावत है न… मुंह में राम बगल में छुरी, बस यही मानिए। एक दिग्गज के यहां तो रसोईए, ड्राइवर तक नहीं टिकते। दूसरे के यहां निजी स्टाफ ही घन चक्कर हुआ पड़ा है। सुनने में आया है कि इनकी शिकायत भी ऊपर लेवल पर हुई है। जाहिर सी बात है ऊपर लेवल पर बात पहुंचाने का माजदा भी किसी तुर्रम खां में ही होगा। एक बात जरूर समझने की है, कहते हैं राजनीति में दो मूल मंत्र आधार हैं, एक आपका स्वभाव, दूसरी क्षेत्र की जनता की सुनवाई और खुशहाली। समझिए और सुनिए।

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यहां राह कठिन है पनघट की

कांग्रेस में अक्सर कुछ ठीक नहीं चलता। बीते दिनों देखा कि कैसे पीएचक्यू में दिग्गजों के अलावा मीडिया के सामने ही एक वरिष्ठ नेता ने एक शीर्ष नेता की लू उतार दी थी। अब प्रवक्ताओं में घमासान का एक और मामला सामने आया। घमासान भी ऐसा कि दो प्रवक्ताओं को वाट्सएप ग्रुप से ही बाहर निकाल दिया गया। वैसे एक प्रवक्ता जो पीसीसी चीफ समेत मीडिया विभाग के अध्यक्ष की चरण वंदना का मौका सार्वजनिक रूप से नहीं छोड़ते, उन पर कई आरोप लगे थे। जूनियर प्रवक्ता को कांग्रेस मीडिया विभाग की कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी पहले से दे रखी हैं। आरोप यह लगाए कि चमचागिरी कर जूनियर प्रवक्ता महोदय खुद को मीडिया विभाग का चीफ समझते हैं। सीनियर्स की चुगली करते हैं और गुटबाजी भी। जब दो प्रवक्ताओं का पारा हाईवोल्टेज पर पहुंचा तो रोजाना सुबह होने वाली प्रवक्ताओं की मीटिंग में मुद्दा उठा। फिर क्या था, बात कहीं से शुरू हुई और कहीं पहुंच गई। पोलखोल में तब्दील हुई मीटिंग के बाद दोनों प्रवक्ताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। वैसे जूनियर को सीनियर की मिली जिम्मेदारी से मीडिया विभाग के कई सदस्य न खुश हैं। इतना कि ज्यादातर ने तो प्रदेश कार्यालय आने से ही तौबा कर ली है। कहते हैं मूर्खों से दूरी अच्छी…

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