रायपुर- आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद शहर का प्राचीनतम राजातालाब अब सांसें ले सकेगा. बीते करीब एक दशक से बंधक बने तालाब को अब आजादी मिलने जा रही है. विधायक बनने के बाद से ही इसे जनहित से जुड़ा मानते हुए श्रीचंद सुंदरानी ने सबसे पहले आवाज बुलंद की थी. तालाब पर अवैध तरीके से कब्जे का आरोप लगाते हुए उन्होंने इस मामले को ना केवल विधानसभा में उठाया था,बल्कि आला अधिकारियों ने शिकायत भी दर्ज कराई थी. श्रीचंद सुंदरानी की शिकायत को आधार मानते हुए पूरे मामले की दोबारा नए सिरे से जांच कराई गई और जांच में फैसला हुआ कि तालाब को अवैधानिक तरीके से रजिस्ट्री कराकर गुलाम मोहम्मद नाम के व्यक्ति ने अपनी निजी जागीर बना ली थी. जबकि इलाके के लोग कई दशकों से तालाब के पानी का निस्तार और सार्वजनिक उपयोग करते रहे हैं.
विधायक की शिकायत के बाद शुरू हुई जांच में ये तथ्य सामने आया कि जमीन के नामांतरण के लिए अपनाई गई पूरी प्रक्रिया अवैधानिक है. जांच में यह भी कहा गया कि जिस वक्त तालाब की जमीन का नामांतरण किया गया, उस वक्त तहसीलदार ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया. दरअसल शिकायत के बाद की गई जांच में पता चला कि 20 अक्टूबर 2010 में यह तालाब की जमीन बृजभूषण अग्रवाल, चंद्रवंशी लाल अग्रवाल, सौमित्र लाल, हरबंशी अग्रवाल की जगह गुलाम मोहम्मद के नाम पर कर दिया गया था. शिकायत के आधार पर तहसील न्यायालय ने संलग्न दस्तावेजों का परीक्षण किया, जिसमें यह पाया कि वादभूमि खसरा नंबर 161 रकबा 18.10 एकड़ और खसरा नंबर 167 रकबा 1.88 एकड़ अधिकार सौमित्र लाल, विष्णु प्रसाद के हक में दर्ज थी. तब दोनों ही खसरा तथा तालाब का पार शासन के हक में करने का आदेश पारित हुआ था. लेकिन बाद में पुनः अपील किए जाने के दौरान एसडीएम द्वारा पूर्व में पारित आदेश को रद्द कर भूमि स्वामी को जमीन दे दी गई.
उक्त भूमि 1975-76 से 1979-80 तक रामअवतार के आधार पर पूर्व में नामांतरण हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया था. अनावेदक गुलाम मोहम्मद के द्वारा पूर्व में तहसीलदार रायपुर के समक्ष प्रश्नाधीन वादग्रस्त भूमि को अपंजीकृत दस्तावेज के आधार पर नामांतरण हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया था. जिसे तत्कालीन तहसीलदार द्वारा नामांतरण की कार्यवाही की गई थी, जो प्रथम दृष्टया अवैध एवं शून्य है. क्योंकि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम में यह स्पष्ट प्रावधान है कि 100 रूपए अथवा इससे अधिक मूल्य की संपत्ति का पंजीकरण आवश्यक है. गुलाम मोहम्मद के द्वारा 100 रूपए से अधिक मूल्य की संपत्ति को अपंजीकृत दस्तावेज के आधार पर हक एवं स्वत्व होने के आधार पर नामांतरण हेतु तत्कालीन तहसीलदार रायपुर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया था, जिसे तत्कालीन तहसीलदार को निरस्त किये जाने की कार्यवाही की जानी थी, लेकिन नहीं की गई. जबकि नियम कहता है कि किसी विधिक प्रक्रिया के विरूद्ध किसी संपत्ति पर हक एवं अधिकार अर्जित करता है, तो वह विधि में प्रारंभ से ही शून्य एवं अवैध हो जाता है. छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 51 के तहत पुनर्विलोकन में लिया गया था. मामले की विस्तृत जांच में ये साफ हो गया कि जमीन पर किया गया नामांतरण गलत प्रैक्टिस का नतीजा है.
इस मामले में बीजेपी विधायक श्रीचंद सुंदरानी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि न्याय की जीत हुई है. जनता की जीत हुई है. इसके लिए जनता ने लंबा संघर्ष किया है.