शिखिल ब्यौहार, भोपाल। विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जल जीवन मिशन में हजारों करोड़ के सुनियोजित भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। कटारे ने कहा- भारत सरकार की प्रदेश के गांवों में “हर-घर-जल” पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना “जल जीवन मिशन” (JJM) राजनेता, प्रशासनिक एवं विभागीय अधिकारियों द्वारा किये गये 10,000 करोड़ रुपये के सुनियोजित भ्रष्टाचार और लापरवाही के खेल के कारण योजना अब “जल्दी-जल्दी-मनी” मिशन बनकर रह गयी है।
समस्त अधिकारी लूट के लिए टूट पडे
केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश को जल जीवन मिशन में सभी गांवों में जल पहुंचाने के पावन उद्देश्य के लिए कुल 30 हजार करोड़ का आवंटन दिया था। प्रदेश के PHE विभाग को कभी इतनी बड़ी धनराशि नहीं मिली थी, इस कारण पूरा विभाग जिसमें मंत्री, प्रमुख सचिव, प्रमुख अभियंता सहित समस्त अधिकारी लूट के लिए टूट पडे और उन्होंने भ्रष्टाचार की सुनियोजित योजना बनाकर कमीशन और कागजी खानापूर्ति को प्राथमिकता देकर जल्दबाजी और बिना तैयारी के लागू कर स्वयं व चहेते ठेकेदारों की जेबें भर लीं।
योजना बनाने में जल्दबाजी
“मुख्यमंत्री नल जल योजना” पूर्व से ही फेल थी फिर भी “जल्दी-जल्दी-मनी” डकारने के उद्देश्य से उसी मॉडल पर 27,000 ट्यूबवेल आधारित योजनाएं बनाकर कई तकनीकी विकल्पों की अनदेखी की। बेहतर होता कि सतही जल योजना (Surface Water Scheme) बनाई जाती। योजना में केन्द्र व राज्य की 45-45 प्रतिशत भागीदारी व शेष 10 प्रतिशत ग्राम पंचायत के अंश का प्रावधान था किन्तु “जल्दी-जल्दी-मनी” डकारने में यह तथ्य भूल ही गये।
मेटेंनेंस का प्रावधान नहीं
हर छोटी से छोटी योजना में रख-रखाव मेटेंनेंस (Maintenance) का प्रवधान रखा जाता किन्तु इसमें यह प्रावधान ही नहीं है। “जल्दी-जल्दी-मनी” डकारने के चक्कर में अथवा जानबुझकर छोड़ा गया है।
DPR बनाने में भी बड़ा फर्जीवाड़ा हुआ
प्रमुख अभियंता कार्यालय के नोडल अधिकारी आलोक अग्रवाल द्वारा ई-मेल के माध्यम प्रदेश के सभी जिलों को एक मॉडल DPR का प्रारूप भेजकर निर्देशित किया कि वह इसमें आंकडे फीड कर भेज दें, उसी के अनुरूप क्रियान्वयन हुआ। जबकि वास्तविक DPR बनानी थी। इस हेतु कंसल्टेन्ट को प्रति DPR 10 हजार की राशि फीस के रूप में भुगतान हुये जिनके द्वारा मात्र गूगल के आंकडों के आधार पर DPR तैयार कर भेजी, जिन्हें बाद में भारी बदलाव (रिवाईज) करना पड़ीं।
पैसे लेकर फंड दिया
प्रदेश में जिस अधिकारी को जितना फंड चाहिये होता था वह आलोक अग्रवाल और महेन्द्र खरे से बात कर एक प्रतिशत कमीशन राशि पहुंचाने पर ही यह लोग सीधे प्रमुख अभियंता से उसी दिन फंड जारी करवा देते थे। जबकि आफिस में SE, CE & Finance Director भी थे जिन्हें बायपास कर योजनाओं हेतु फंड जारी किये गये। इस तथ्य की सत्यता के. के. सोनगरिया आलोक अग्रवाल, महेन्द्र खरे के मोबाईल नंबरों की सीडीआर/रिकार्डिंग से सिद्ध होगी कि जिस दिन बात हुई उसी दिन फंड जारी हुआ।
प्रमुख अभियंता की नियुक्ति
योजना में भ्रष्टाचार के अहम किरदार के. के. सोनगरिया, जिन्हें पांच वरिष्ठ व नियमित CE मौजूद होने के बावजूद संविदा पर ENC के रूप में नियुक्ति कर सभी प्रशासनिक व वित्तीय अधिकार सौंपे। इन अधिकारी की सहायता व योग्यता से ही जल जीवन मिशन की धनराशि का बंदरबांट सम्पन्न हुआ।
बेकार यंत्र, करोडों की लूट
योजना के नोडल अधिकारी मौखिक निर्देश पर योजना में Silver Ionizer यंत्र जोडा जिसकी बाजार में कीमत 4000 रुपए है। जिसे आलोक अग्रवाल सोनगरिया के परिजनों की मिलीभगत से 70 हजार से एक लाख में खरीदा गया। जबकि IIT चेन्नई की रिपोर्ट अनुसार इस यंत्र की कोई उपयोगिता नहीं थी।

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