Bihar News: बिहार में शराबबंदी है…..कम से कम कागजों पर तो यही लिखा है। लेकिन इस कानून की सख्ती ने एक और चौंकाने वाला रिकॉर्ड बना दिया है। शराबबंदी के नाम पर जब्त किए गए वाहनों की नीलामी और जुर्माना वसूली से राज्य सरकार ने अब तक 428.50 करोड़ रुपये का ‘राजस्व’ कमा लिया है। जी हां, जिस कानून का मकसद समाज सुधार और अपराध पर अंकुश लगाना था, उसने सरकार के खजाने को भरने का भी जरिया बन लिया है।
96 हजार से अधिक वाहन जब्त
मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2016 से लेकर 3 जुलाई 2025 तक शराबबंदी कानून के तहत कुल 96,060 वाहन जब्त किए गए हैं। इनमें से 75,989 वाहनों को नीलाम कर 342.85 करोड़ रुपये और 20,071 वाहनों को जुर्माने के बदले छोड़कर 85.65 करोड़ रुपये की वसूली की गई। अकेले जनवरी से जून 2025 के बीच 7,781 वाहन जब्त किए गए हैं।
कई राज्यों तक फैला है तस्करी का नेटवर्क
बिहार पुलिस के अनुसार, राज्य में शराब की तस्करी का नेटवर्क उत्तर प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, राजस्थान और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों तक फैला है। इन राज्यों के डीजीपी और आबकारी आयुक्तों को पत्र भेजकर सहयोग की अपील की गई है। विधानसभा चुनावों को देखते हुए राज्य के 23 सीमावर्ती जिलों में 390 नए चेकपोस्ट बनाए जा रहे हैं, जबकि 161 अतिरिक्त चेकपोस्ट की पहचान हो चुकी है।
63 हजार से अधिक लोग हुए गिरफ्तार
अब तक शराबबंदी कानून के तहत 63,442 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें 38,741 आरोपी शराब पीने वाले और 24,701 आपूर्ति व वितरण से जुड़े लोग हैं। इसके अलावा, राज्य से बाहर के 13,921 तस्करों को भी धर-दबोचा गया है।
9 को सुनाई गई फांसी की सजा
1 अप्रैल 2016 से 3 जुलाई 2025 तक कुल 5,36,921 मामले दर्ज हुए हैं। इन मामलों में अब तक 6,40,379 लोगों को सजा सुनाई जा चुकी है, जिनमें 9 को फांसी, 18 को आजीवन कारावास और सैकड़ों को लम्बी सजा मिली है।
अवैध शराब से अर्जित संपत्ति पर भी सरकार की नजर है। अब तक 240 ऐसे लोगों की पहचान की गई है, जिन्होंने इस धंधे से संपत्ति बनाई। 76 मामलों में संपत्ति जब्ती का प्रस्ताव अदालत में लंबित है।
शराबबंदी पर सरकार की दलील
सरकार का कहना है कि ये सख्त कदम शराबबंदी को प्रभावी बनाने और सामाजिक सुधार लाने के लिए जरूरी हैं। अधिकारी दावा करते हैं कि इससे महिलाओं की सुरक्षा बढ़ी है और अपराध में गिरावट आई है। हालांकि, इस कानून की व्यावहारिक चुनौतियां और इसकी सख्ती को लेकर लगातार आलोचना भी हो रही है।
शराबबंदी लागू करने का इरादा भले ही नेक रहा हो, लेकिन यह कानून अब “शराब नहीं, जुर्माना सही” जैसे तंज को भी जन्म देने लगा है। जब हर बोतल का हिसाब जुर्माने और जब्ती में बदल जाए, तो सवाल उठता है। यह बंदी समाज सुधार है या सरकारी कमाई का नया मॉडल?
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