दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला को मकान मालिक-किरायेदार विवाद में महत्वपूर्ण राहत प्रदान की है. यह महिला पिछले 30 वर्षों से जिला अदालत में दीवानी मुकदमे की सुनवाई का इंतजार कर रही थी. जस्टिस मनोज जैन की बेंच ने महिला की उम्र और मामले के लंबित रहने की अवधि को ध्यान में रखते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर इस केस का निपटारा करे.

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महिला ने मामले के शीघ्र निपटारे की उम्मीद न होने पर हाईकोर्ट का सहारा लिया. बेंच ने आदेश दिया कि 27 सितंबर के बाद तीन महीने के भीतर निर्णय सुनाया जाए. इसके साथ ही, निचली अदालत को निर्देश दिया गया कि वह निपटारे की रिपोर्ट हाईकोर्ट में प्रस्तुत करे. अदालत ने यह भी कहा कि यह दीवानी प्रकृति का मामला है और 30 साल तक निर्णय न आना चिंताजनक है. कोर्ट ने महिला की उम्र और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसके मामले को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर बल दिया, क्योंकि वह अब लगातार अदालत में उपस्थित नहीं हो सकती. बेंच ने मुकदमे में हो रही देरी पर असंतोष व्यक्त किया है.

महिला ने 1995 में, जब वह 50 वर्ष की थीं, किरायेदार से अपनी संपत्ति वापस पाने और क्षतिपूर्ति के लिए निचली अदालत में याचिका दायर की थी. इसके बाद से लगातार सुनवाई होती रही, लेकिन कोई निर्णय नहीं आया. अब महिला 80 वर्ष की हो चुकी हैं. उन्होंने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उनकी अंतिम दलीलें प्रस्तुत हो चुकी हैं, जबकि प्रतिवादी पक्ष की दलीलों में अभी और समय लगेगा.

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निचली अदालत ने याचिका खारिज की थी

महिला ने निचली अदालत से अपने मामले को प्राथमिकता देने की गुहार लगाई, लेकिन अदालत ने मुकदमों के भारी बोझ का हवाला देते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया. अदालत ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर नहीं सुन सकती. इस निर्णय के खिलाफ महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी.

बुजुर्ग और पुराने मामलों को मिलती है प्राथमिकता

हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 80 वर्षीय महिला की उम्र और 30 वर्षों से लंबित मामला उसकी पीड़ा को स्वयं दर्शाता है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, बुजुर्गों और 10 साल से अधिक पुराने मामलों को प्राथमिकता के साथ सुनवाई में शामिल किया जाना चाहिए.