दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने 1984 के सिख-विरोधी दंगों (Sikh riot cases) से संबंधित 5 मामलों की सुनवाई के दौरान जांच एजेंसी और ट्रायल कोर्ट की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने यह भी बताया कि तीन मामलों के महत्वपूर्ण रिकॉर्ड गायब हैं, जिसके बिना आगे की सुनवाई संभव नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह रिकॉर्ड को पुनर्निर्माण के लिए सभी संभव प्रयास करे. यह आदेश मामले की सुनवाई के दौरान स्वतः संज्ञान लेते हुए दिया गया. इस मामले में 1984 के नवंबर महीने में दिल्ली कैंट के राजनगर क्षेत्र में हुई हिंसा से संबंधित पांच अलग-अलग केस शामिल हैं.
गवाहों के बयान अधूरे और रिकार्ड गायब
इन 3 मामलों में, ट्रायल कोर्ट ने 1986 में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था. हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह बताया कि संबंधित फाइलों में कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और गवाहों के बयान अनुपस्थित हैं. इनमें प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, जांच के दौरान प्रस्तुत किए गए दस्तावेज और धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान शामिल हैं.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना आवश्यक रिकॉर्ड के इन मामलों की सुनवाई आगे बढ़ाना संभव नहीं है. सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि निचली अदालत में दो मामलों में कई महत्वपूर्ण गवाहों को बुलाया नहीं गया, क्योंकि उनके पते दंगों के बाद नष्ट हो गए थे या वे उस क्षेत्र को छोड़ चुके थे. इसके अलावा, समन भेजने के लिए पर्याप्त प्रयास भी नहीं किए गए.
जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल
दिल्ली हाई कोर्ट ने जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि कई मामलों का एक साथ कंपोजिट चालान पेश करना अधूरी जांच का संकेत है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़ितों और समाज के लिए निष्पक्ष जांच और वास्तविक ट्रायल का अधिकार किसी भी स्थिति में प्रभावित नहीं किया जा सकता.
इस मामले को पहले से निर्धारित स्थिति के रूप में छोड़ना उचित नहीं होगा. हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि तीन मामलों के रिकॉर्ड संभवतः सीबीआई के पास हो सकते हैं, क्योंकि उसने दंगों से संबंधित मामलों की जांच की थी. यह रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में भी उपलब्ध हो सकते हैं, जहां इन मामलों से जुड़ी अपीलों के रिकॉर्ड रखे गए हैं.
दिल्ली हाई कोर्ट ने 6 आरोपियों को दोषी ठहराया
इसके अतिरिक्त, वर्षों में स्थापित विभिन्न आयोगों और समितियों के अभिलेखागार में भी ये दस्तावेज उपलब्ध हो सकते हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह कहा कि इन घटनाओं में कई लोगों की जान गई थी, और पीड़ितों के साथ-साथ समाज का यह अधिकार है कि उन्हें निष्पक्ष जांच और न्यायपूर्ण ट्रायल प्राप्त हो.
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय राज सिंह के पूर्व के निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि इन मामलों को हल्के में नहीं लिया जा सकता. अदालत ने यह भी बताया कि सीबीआई की जांच में 5 सिख व्यक्तियों, केहर सिंह, गुरप्रीत सिंह, राघवेंद्र सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह की हत्या के संबंध में 6 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था.
अगली सुनवाई 1 सितंबर
इस मामले की अपील वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. दिल्ली हाई कोर्ट ने तीनों पुराने मामलों के रिकॉर्ड तैयार करने की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है और विभिन्न स्रोतों से दस्तावेज प्राप्त करने की संभावना जताई है. इस मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को निर्धारित की गई है.
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