पटना। बिहार की सियासत में अपनी एक अलग ही छवि रखने वाले पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार वजह बना है एक वायरल वीडियो, जिसमें वे खुलेआम जरूरतमंदों को पैसे बांटते नजर आ रहे हैं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब पप्पू यादव इस तरह लोगों की मदद करते दिखाई दिए हों। कोरोना महामारी से लेकर बाढ़ जैसी आपदाओं में भी वे हमेशा सड़क पर उतरे नजर आए हैं। उनके समर्थकों का मानना है कि वे अपनी पुश्तैनी संपत्ति से होने वाली आमदनी का एक बड़ा हिस्सा लोगों की मदद में खर्च करते हैं। उनकी इसी सामाजिक सक्रियता ने उन्हें सीमांचल इलाके में “रॉबिनहुड” जैसी छवि दे दी है। हालांकि, पप्पू यादव का राजनीतिक और आपराधिक इतिहास बेहद विवादास्पद रहा है, जिसे पूरी तरह नजरअंदाज करना भी मुश्किल है।
अजित सरकार हत्याकांड: एक खूनी सियासी पन्ना
14 जून 1998 को पूर्णिया में घटा एक खौफनाक वाकया पप्पू यादव के जीवन की सबसे बड़ी कानूनी लड़ाई बना। सीपीआई नेता और तत्कालीन विधायक अजित सरकार की सरेआम हत्या कर दी गई थी। एके-47 से लैस हमलावरों ने उनके वाहन पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं, जिसमें अजित सरकार समेत तीन लोगों की मौत हो गई। इस मामले में पप्पू यादव को आरोपी बनाया गया और उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। हालांकि साल 2013 में उन्हें कोर्ट ने इस मामले में बरी कर दिया।
आनंद मोहन से वर्चस्व की जंग
1990 के दशक में बिहार की राजनीति जातिगत टकराव के चरम पर थी। सीमांचल में यादवों की अगुवाई पप्पू यादव के हाथ में थी, वहीं दूसरी तरफ राजपूतों का नेतृत्व आनंद मोहन कर रहे थे। दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने कोसी इलाके को हिंसा की आग में झोंक दिया। उस दौर में कई बार ऐसा माहौल बन गया था जैसे राज्य के कुछ हिस्सों में गृह युद्ध छिड़ गया हो। एक घटना का ज़िक्र अक्सर होता है, जब किसी गांव में एक यादव युवक की पिटाई के बाद पप्पू यादव अपने समर्थकों के साथ 60 बसों में भरकर उस गांव पर चढ़ दौड़े थे। ग्रामीणों ने उनका डटकर विरोध किया, हथियार छीने और उनकी गाड़ियों को जला दिया। यह टकराव इस बात का गवाह था कि पप्पू सिर्फ नेता नहीं, एक लड़ाकू दस्ता लेकर चलते थे।
राजनीतिक करियर और अपराध के साये
पप्पू यादव ने 1990 में सिंघेश्वर स्थान से निर्दलीय चुनाव जीतकर राजनीति में धमाकेदार एंट्री की, लेकिन उनकी छवि शुरू से ही विवादों से घिरी रही। एक घटना में उन पर पुलिसकर्मी की मूंछ उखाड़ने और पैसे छीनने तक का आरोप लगा। डीएसपी को चलती गाड़ी के सामने फेंकने के मामले से लेकर हत्या के आरोपों तक, 1991 तक उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में कई मुकदमे दर्ज हो चुके थे। यहां तक कि उन पर रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) भी लगाया गया। इसके बावजूद सीमांचल में उनकी पकड़ कमजोर नहीं हुई, बल्कि धीरे-धीरे और मजबूत होती गई।
छवि में बदलाव की कोशिशें
जेल से रिहाई के बाद पप्पू यादव ने अपनी सार्वजनिक छवि में बड़ा बदलाव लाने की कोशिश की। अब वे आम लोगों की मदद करने वाले गरीबों के हक में बोलने वाले और सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय नेता के रूप में दिखने लगे। उन्होंने “जन अधिकार पार्टी” बनाई बाद में इसे कांग्रेस में विलय कर लिया। हालांकि, वर्तमान में वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य हैं या नहीं, इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। पप्पू ने अपने संसदीय क्षेत्र में निजी डॉक्टरों की फीस तक तय करवा दी ताकि गरीबों पर बोझ न बढ़े। बाढ़ या किसी आपदा में वे खुद राहत सामग्री लेकर सबसे पहले पहुंचते हैं।
असर और आलोचना—दोनों कायम
पप्पू यादव की मौजूदगी आज भी सीमांचल की राजनीति में असरदार है। वे जहां गरीबों के लिए मसीहा कहे जाते हैं, वहीं उनके अतीत की वजह से हमेशा आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता है। उनकी मदद के तरीके, जैसे हालिया पैसे बांटने वाला वीडियो, एक तरफ तारीफ बटोरते हैं तो दूसरी तरफ सवाल भी खड़े करते हैं।
फैसला जनता और कानून पर छोड़ देना बेहतर?
क्या यह सच्चे हृदय परिवर्तन का प्रमाण है या छवि सुधारने की रणनीति? यह फैसला जनता और कानून पर छोड़ देना बेहतर होगा। लेकिन इतना तय है कि पप्पू यादव नाम का यह सियासी किरदार बिहार की राजनीति में लंबे समय तक चर्चा में बना रहेगा।
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