अभय मिश्रा, मऊगंज। मध्यप्रदेश के मऊगंज जिले से भ्रष्टाचार और लापरवाही का ऐसा मामला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनपद पंचायत नईगढ़ी के उमरिया गांव में 50 साल पहले जिस रामसखा तिवारी की मौत हो चुकी थी, आज भी उन्हें समग्र आईडी में जिंदा दिखाकर मुखिया बनाया गया है। इसी नाम पर 15 सालों से राशन उठाया जा रहा है। इतना ही नहीं, ब्राह्मण परिवार की समग्र आईडी में 11 साल पहले हरिजन परिवार को भी जोड़ दिया गया है।

उमरिया गांव का ये मामला भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है। तिवारी परिवार की समग्र आईडी में न सिर्फ मृतक को जिंदा दिखाया गया, बल्कि ब्राह्मण परिवार की आईडी में हरिजन परिवार तक को जोड़ दिया गया। रामसखा तिवारी की मौत पचास साल पहले हो चुकी थी। सवाल ये है कि जब वो शख्स इस दुनिया में नहीं है, तो प्रशासन ने अब तक उन्हें समग्र आईडी में जिंदा क्यों रखा ?और जब आईडी में जिंदा रखा गया तो उनके नाम से राशन भी उठाया गया और उनकी पत्नी को विधवा पेंशन भी जारी कर दी गई। ये कैसा फर्जीवाड़ा है कि पति रिकॉर्ड में जिंदा है और पत्नी को विधवा पेंशन भी मिल रही है ?

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फर्जी नॉमिनी, ओटीपी से निकाला जा रहा राशन

गड़बड़ी यहीं तक नहीं रुकी। सेल्समैन के द्वारा फर्जी नॉमिनी खुद अपने नाम पर बनाकर हर महीने ओटीपी से राशन निकाला गया। अब तक उसके द्वारा करीब 60 क्विंटल राशन निकाला जा चुका है। लेकिन घर में रहने वाली 85 साल की बुजुर्ग महिला दूअसिया तिवारी तक अनाज का एक दाना भी नहीं पहुंचा। इस फर्जीवाड़े में ग्राम पंचायत का रोजगार सहायक बृजेश तिवारी तक शामिल है। उसका नाम भी आईडी में जोड़ दिया गया है, जबकि न वो परिवार का सदस्य है और न ही पड़ोसी। साफ है कि बिना मिलीभगत के इतना बड़ा खेल संभव ही नहीं। क्योंकि समग्र आईडी बनाने और हटाने की पूरी जिम्मेदारी ग्राम रोजगार सहायक की होती है।

उठे कई सवाल

एक आईडी में 9 अतिरिक्त नाम जोड़ दिए गए, मृतक को मुखिया बना दिया गया और हर महीने राशन हड़प लिया गया। अब जब ये मामला उजागर हुआ है, तो ग्रामीण और सोशल मीडिया पर लोग प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं। तो सबसे बड़ा सवाल यही है… जब 50 साल पहले रामसखा तिवारी की मौत हो चुकी थी, तो आज तक उन्हें समग्र आईडी में जिंदा क्यों रखा गया ? और जब जिंदा रखा गया, तो पेंशन किस आधार पर जारी की गई ?

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इतना ही नहीं, ब्राह्मण परिवार की समग्र आईडी में 11 साल पहले हरिजन परिवार को कैसे जोड़ दिया गया ? क्या यही है मऊगंज की प्रशासनिक व्यवस्था, जहां मृतकों को जिंदा दिखाकर और फर्जी नाम जोड़कर सरकारी योजनाओं की बंदरबांट की जाती है ? अब देखना ये होगा कि इस फर्जीवाड़े पर जिम्मेदार कब और क्या कार्रवाई करते हैं।

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